घर पर
अपने छज्जे पर
आती थोड़ी सी
गुनगुनी धूप,
बादल की छांव,
बारिस की फुहार
बचाए रखना
चाहती हूँ
उन धूधली, विसूरती
खाली शामों
के लिए
रूखे पलों मे जब
मेरी आँखों में
नमी नहीं
बची रह सकेगी
तब बारिस की
इन फुहारों की तरह
बरस जाएगी आँखें मेरी
लौट आएगी
जिंदगी की नमी
इस खुशी के अंकुरण
के लिए
काफी होगी
मेरे छज्जे पर आती
गुनगुनी धूप
जिसकी गर्माहट में
अंकुर बनेगा वृक्ष
खुशी का एक
छायादार वृक्ष
इसकी बादलों जैसी
पारदर्शी छांव में
इस महानगर में
अपने लिए
एक छज्जे जितनी
जगह की
कल्पना में
इक पल के लिए
ऊंघ जाऊगी।
अपने छज्जे पर
आती थोड़ी सी
गुनगुनी धूप,
बादल की छांव,
बारिस की फुहार
बचाए रखना
चाहती हूँ
उन धूधली, विसूरती
खाली शामों
के लिए
रूखे पलों मे जब
मेरी आँखों में
नमी नहीं
बची रह सकेगी
तब बारिस की
इन फुहारों की तरह
बरस जाएगी आँखें मेरी
लौट आएगी
जिंदगी की नमी
इस खुशी के अंकुरण
के लिए
काफी होगी
मेरे छज्जे पर आती
गुनगुनी धूप
जिसकी गर्माहट में
अंकुर बनेगा वृक्ष
खुशी का एक
छायादार वृक्ष
इसकी बादलों जैसी
पारदर्शी छांव में
इस महानगर में
अपने लिए
एक छज्जे जितनी
जगह की
कल्पना में
इक पल के लिए
ऊंघ जाऊगी।
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर कविता ! बधाई स्वीकार करें !
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आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया
Madam,
You are an amazing Poetess...
Keep it up!
thanx..Ghazala
बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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