रविवार, 13 जुलाई 2014

जिंदगी में कविता

जिंदगी के हर बिखरे हर्फ को सजाती हूँ
दरख्तों के बीच से आती धूप को सम्हालती हूँ
दरवाजें की ओट से रास्ता निहारती हूँ
आँखों में आये खारे पानी को छुपाती हूँ मैं !!



2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पर प्रेम को छुपाना कहाँ आसान होगा ... ये तो फैलेगा खुशबू की तरह ...

कौशल लाल ने कहा…

बहुत सुन्दर....