सोमवार, 21 मई 2018

इस बार मॉरीशस में होगा जुटान

यूं तो 2015 में दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन, भोपाल में ही निश्चित हो गया था कि ग्यारहवां विश्व हिन्दी सम्मेलन मॉरीशस में 18 से 20 अगस्त तक आयोजित किया जाएगा। अब इसकी आधिकारिक घोषणा पिछले दिनों कर दी गई। इस सम्मेलन के विषय में जानकारी देने के लिए मॉरीशस से एक विशेष प्रतिनिधि दल भारत आया। मॉरीशस की शिक्षा, मानव संसाधन मंत्री लीला देवी दुकन लछुमन और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस सम्मेलन का लोगो और वेवसाइट जारी करते हुए इस संबंध में जानकारी दी। इस अवसर पर सुषमा स्वराज ने कहा कि भाषा और संस्कृति साथ-साथ चलते हैं। एक के खत्म होने पर दूसरा अपने आप ही विलीन हो जाता है। ऐसे में भारत के बाहर भी हिन्दी को जीवित रखने में इस सम्मेलन की बड़ी भूमिका है। साथ ही लीला देवी ने हिन्दी भाषा की दशा पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि आज हिन्दी की हालत पानी में जूझते जहाज की तरह हो गई है।
मॉरीशस में यह तीसरा सम्मेलन होगा। इस का आयोजन स्वामी विवेकानंद अंतर्राष्ट्रीय संस्थान में होगा। इस सम्मेलन का विषय वैश्विक हिन्दी और भारतीय संस्कृति है। इससे पहले यहां पर 1976 और 1993 में विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन हो चुका है। इस बार खासतौर पर गंगा आरती का एक कार्यक्रम रखा गया है। गंगा नदी भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, इसलिए इस सम्मेलन गंगा आरती का रखा जाना अच्छा संदेश है। ग्यारहवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के दौरान एक विषय भोपाल से मारीशसरखा गया है, जहां भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिन्दी दिवस के दौरान गठित समितियां यहां अपने एक साल के कामकाज का लेखाजोखा प्रस्तुत करेंगी सम्मेलन स्थल पर हिन्दी भाषा के विकास से संबंधित कई प्रदर्शनियां लगाई जाएंगी। सम्मेलन के दौरान शाम को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, नई दिल्ली द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम और कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरीशस की सम्मेलन सामग्रियों को तैयार करने और प्रकाशन में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद द्वारा गगनांचल का विशेष अंक निकाला जाएगा, जो सम्मेलन को समर्पित होगा। जैसा कि हर साल होता है, इस वर्ष भी भारत एवं अन्य देशों के हिन्दी सेवियों को उनके विशेष योगदान के लिए "विश्व हिन्दी सम्मानसे सम्मानित किया जाएगा।
विश्व हिन्दी सम्मेलन हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, इसमें विश्व भर से हिन्दी के विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी प्रेमी जुटते हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की राष्ट्रभाषा के प्रति जागरूकता पैदा करने, समय-समय पर हिन्दी की विकास यात्रा का आकलन करने, लेखक व पाठक दोनों के स्तर पर हिन्दी साहित्य के प्रति सरोकारों को और दृढ़ करने, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने तथा हिन्दी के प्रति प्रवासी भारतीयों के भावुकतापूर्ण व महत्वपूर्ण रिश्ते को गहराई से मान्यता प्रदान करना ही इन सम्मेलनों का मुख्य उद्देश्य रहा है। 1975 से अब तक दस विश्व हिंदी सम्मेलन संपंन हो चुके हैं। ये सभी सम्मेलन माॅरीशस, भारत, त्रिनिडाड व टोबेगो, लंदन और सूरीनाम जैसे विश्व के विभिन्न देशो में संपंन हुएहै। 2007 में आठवां विश्व हिन्दी सम्मेलन न्यूयार्क में हुआ तथा नौवां विश्व हिन्दी सम्मेलन सितंबर 2012 में दक्षिण अफ्रीका में हुआ और  दसवां सम्मेलन, भोपाल यानी भारत में हो चुका है।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की स्थापना एक स्वयं संचालित संस्था के रूप में की थी। तब इसके संस्थापकों में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन, पं जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस, आचार्य नरेन्द्र देव, आचार्य काका कालेलकर, सेठ जमनालाल बजाज आदि गणमान्य एवं स्वतंत्रता प्रेमी थे। जिन्होने हिन्दी को एक राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित किया। इसी संगठन ने 1975 में प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की पहल पर विश्व हिन्दी सम्मेलनों की एक श्रृंखला की परिकल्पना की। इस तरह नागपुर में पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन संपंन हुआ। सम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिलाया जाएगा। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक भाषा का स्थान दिलाया जा, के लिए अभी भी प्रयास किया जा रहा है। 

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