
बस आज 'एक दिन'
अलार्म बजने पर
क्या नहीं उठूंगी सबसे पहले
कोई दे जायेगा सुबह की चाय
क्या मेरे बिस्तर पर
नही बेलनी पड़ेगी आज रोटियां ।
दफ्तर जाते समय
आज, नहीं घूरेगा मेरा पडोसी
नुक्कड़ पर बैठे लडके
नहीं गायेगे वह गाना
'एक बार ...आ जा आ जा '
बस की भीड़ में आज नहीं
लेगा कोई चिकोटी...
ऑफिस में बगल की सीट में
बैठने वाले वर्मा जी
नहीं सुनायेंगे कोई
...नॉनवेज चुटकला...
मुझे कमतर न मानते हुए मेरे बॉस
आज देगे मुझे 'योग्यतम' जिम्मेदारी
इसी ख़ुशी के साथ
जब मैं पहुचुगी घर
थोड़ी देर से,
तो पति की निगाहे नहीं करेगी
कोई सवाल...
बस आज एक दिन
'महिला दिवस' पर !!!
8 टिप्पणियां:
sach me bahut bdhiya likha hain aapne
वाह क्या बात है !!! कितनी सारी परिस्थितियों को आपने अपनी एक कविता मे समेट लिया .हार्दिक बधाई .
chand shabdo mein ek nari ki sari vyatha kahne ki kalatmakta ki khamta aap mein hi ho sakti hai. nice very nice.
बहुत खूब प्रतिभा जी , सच में आपने बहुत ही सुन्दर शब्दो के साथ स्त्रीयों के साथ होनी वाली व्यथा को वर्णित किया है ।
सो कोल्ड सभ्य समाज को.. खींच के कठघरे में ला खड़ा करते है ये शब्द..
nice
very good
APNI MAATI
MANIKNAAMAA
आपके शब्दों ने जैसे मानो अपनी जान फूंक दी हो..मेरी बधाई स्वीकारें.
आपकी लेखनी में श्याही भरी रहे और आप लिखते रहे..
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