सोमवार, 16 दिसंबर 2019

न्याय मिलेगा तब, जब महिला पुलिस में होगा दम

इंडियन जुडिशल रिपोर्ट-2019 इस माह आई है। यूं तो यह नागरिकों और उनके न्यायक्षेत्र से संबंधित है, पर इसका एक आवश्यक भाग पुलिस भी है। जिस पर नागरिकों की सुरक्षा भार और उत्तरदायित्व होता है। एक अच्छी पुलिस आम नागरिकों को न केवल सुरक्षा उपलब्ध कराती है, बल्कि उसके साथ हुई  हिंसा या अपराध में न्याय दिलाने में सहायक भी होती है, यह माना हुआ तथ्य है। इसलिए रिपोर्ट में पुलिस जैसे महत्वपूर्ण और सबसे जरूरी अंग पर काफी विश्लेषण किया गया है। इसमें पुलिस की संख्या बल, पुलिस में विभिन्न धर्मों, जातियों, महिलाओं का प्रतिनिधित्व एक बड़ा मुद्दा है। इसमें आधी आबादी के लिए काम की बात यह है कि पुलिस विभाग में महिला बल न केवल बहुत कम है, बल्कि हमारा सिस्टम निर्धारित लक्ष्य का पीछा जिस कछुआ गति से कर रहा है, उसमें 100-300 साल भी लग सकते हैं। जुडिशल रिपोर्ट यह मानती है कि महिलाओं और बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों में बढोत्तरी और न्याय न मिल पाने की एक बहुत बड़ी वजह महिलाओं का पुलिस संख्या बल में न केवल कम होना है, बल्कि ऑफीसर रैंक में भी उचित प्रतिनिधित्व में न होना भी है।
देश के पूरे पुलिस महकमे में महिलाओं की संख्या 7 फीसदी है। केवल चार राज्या और चार केंद्रशासित प्रदेशों में 10 फीसदी से अधिक संख्या में है। राष्ट्रीय स्तर पर चंडीगढ़ और दादर-नागर हवेली में महिला पुलिस की संख्या सबसे अधिक 18 और 15 फीसदी है। इसीतरह तमिलनाडु में 13 फीसदी, हिमाचल प्रदेश में 12 फीसदी है जबकि आठ राज्यों जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, आंध्रप्रदेश, मेघालय, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और त्रिपुरा में केवल पांच फीसदी महिला पुलिस संख्या बल है। इस रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि महिलाओं की पुलिस महकमें ऊंची रैंक पर भी कम काम कर रही हैं, जिसके कारण बहुत से मामलों में ठीक ढंग से जांच नहीं हो पाती है। इसी बात को कॉमनवेल्थ ह्युमन राइट्स इनीसियेटिव ने 06 मार्च, 2018 को ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एडं डेवलपमेंट्स एनुअल रिपोर्ट के आंकड़ों का इस्तेमाल कर इस बात का पता लगाया था। इसमें पुलिस बल में ऑफीसर रैंक में महिलाओं की बहुत अधिक कमी देखी गई। इस रिपोर्ट के अनुसार, महिला पुलिस में सबसे अधिक कांस्टेबल के पद पर नियुक्ति होती है, जोकि कुल नियुक्ति का 71.75 फीसदी होता है। कमाल की बात यह होती है कि महिला इसी पद पर नियुक्ति होने के बाद इसी पद पर रिटायर भी हो जाती हैं। यह इस विभाग का महिलाओं की योग्यता के प्रति कम विश्वास को दिखाता है। इसके अतिरिक्त महिला पुलिस की कुल नियुक्ति में हेड कांस्टेबल 17.63 फीसदी, सब-इस्पेक्टर 5.34 फीसदी, इस्पेक्टर 1.69 फीसदी, एएसपी, डिप्टी एसपी 0.46 फीसदी, एडीसनल एसपी 0.13, एआईजीपी, एसएसपी 0.20 फीसदी, डीआईजी 0.02, आईजीपी 0.03, एडीशनल डीजी 0.01 एवं डीजीपी 0.01 नियुक्त होती हैं। समझा जा सकता है कि पुलिस महकमे में महिलाओं की उपस्थिति किस कदर कम है।
देश में कई अध्ययनों और परामर्शदात्री कमेटियों ने पुलिस में महिलाओं की संख्या बढ़ाकर 33 फीसदी करने का परामर्श दिया है। ये अध्ययन इस बात की ओर इशारा करते हैं कि महिला पुलिस महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को पुरुषों की अपेक्षा अधिक बेहतर ढंग से हैंडल कर सकती हैं। यूनाइटेड नेशंस वूमेन ने अपनी रिपोर्ट (प्रोग्रेस ऑफ द वर्ल्डस वुमेन: इन परसुएट ऑफ जस्टिस,2011-12) 39 देशों के आंकड़े जुटाए जिससे बताया गया कि पुलिस बल में महिलाओं की उपस्थिति से सकारात्मक रूप से यौनहिंसात्मक अपराधों की सही ढंग से रिपोर्टिंग हुई थी। इससे यह महिलाओं को न्याय दिलाने के प्रति यह महत्वपूर्ण उत्तरदायित्वपूर्ण अंग बन सका। शायद इसलिए 2009 में केंद्रीय गृहमंत्रालय ने पुलिस में महिला प्रतिनिधित्व का एक बेंचमार्क 33 फीसदी निर्धारित किया। इसके बावजूद केवल नौ राज्यों ने पुलिस में महिलाओं की संख्या 33 फीसदी करने की नीति को स्वीकार किया, जबकि पांच राज्यों ने 30 फीसदी और दूसरे पांच राज्यों ने 30 फीसदी से नीचे की संख्या निर्धारित की। इन सबके बीच बिहार ने 38 फीसदी महिला प्रतिनिधित्व करने की बात की।
इसके अतिरिक्त 2013 में ही गृह मंत्रालय ने परामर्श दिया था कि प्रत्येक पुलिस स्टेशन में कम से कम तीन महिला सब-इस्पेक्टर और 10 महिला कांस्टेबल सहित महिला हेल्प डेस्क वाला स्टॉफ होना चाहिए। इसी तरह 2015 में मंत्रालय ने प्रस्ताव दिया कि राज्यों को ज्यादा अपराध वाली जगहों के पुलिस स्टेशन में महिलाओं के प्रति अपराधों के लिए एक इनवेस्टिगेटिव यूनिट बनानी चाहिए। जिसमें इस तरह के अपराधों को डील करने वाले 15 विशेषज्ञों को रखा जाना चाहिए। इसमें कम से कम एक तिहाई महिलाएं होंनी चाहिए। वास्तव में इस तरह के एडवाइजरी या परामर्श या प्रस्ताव इस बात को बता रहे हैं कि महिलाओं और बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों को इस तरह नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन यह महिलाओं और बच्चों का दुर्भाग्य है कि इन्हें जमीन पर उतारने के नाम पर कुछ खास नहीं किया जा रहा है।
भारतीय पुलिस सेवा का प्रमुख स्वरूप पुरुषों के अनुरूप अधिक है। यह मानकर चला जाता रहा है कि सेना और पुलिस जो रक्षा का काम करते हैं, मुख्यत: पुरुषों का काम है। इसलिए इस महिलाओं के अनुकूल बनाया भी नहीं गया है। इसलिए महिलाएं इस काम के प्रति जल्दी आकर्षित भी नहीं होती हैं और जो महिलाएं इस विभाग में काम कर रही हैं, उनकी अलग ही प्रकार की कठिनाइयां हैं। जिन्हें पुलिस विभाग में काम करने वाली महिलाओं की तमाम कठिनाइयों और समस्याओं पर स्टेटस ऑफ पुलिसिंग इन इंडिया रपोर्ट-2019 में हाल ही में बताया है। अगर इस विभाग की ऐसी बहुत सी समस्याओं को ध्यान दिया जाए, तो यह विभाग वुमन फ्रेंडली बन सकता है। आखिर सुरक्षा और न्याय पाने के लिए महिला पुलिस की हम उपेक्षा कब तक कर सकते हैं?