‘बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी’ को यूं भी कहें कि ‘आवाज उठेगी तो दूर तक जाएगी’,
तो इसके अर्थ में कोई अंतर नहीं आएगा। मौजूं सिर्फ यही है कि आवाज
उठनी चाहिए। शुरूआत हुई, तो परिणाम भी निकलेगा। इधर, हैशटैग मी टू के साथ जो अभियान महिलाओं ने चलाया है, उससे समस्या का अंत हो या न हो, पर चुप्पी पर लगा ताला
तो हट ही गया। अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए फिल्म हॉलीवुड
अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने सोशल मीडिया को माध्यम बनाया और लोगों से हैशटैग मी टू
के सा महिलाओं से अपील की कि वे भी अपने साथ हुए यौन दुर्व्यहारों पर अपनी चुप्पी
तोड़ें। कुछ देर बाद देखते ही देखते दुनिया भर की महिलाओं और पुरुषों ने अपनी प्रतिक्रिया
में हैशटैग मी टू के साथ अपनी आपबीती बताई। इस हैशटैग के साथ इस तरह की घटनाएं
बयां करने वाले कोई साधारण लोग नहीं थे, बहुत संख्या में
जाने माने लोग भी शामिल थे, जिन्होंने अपनी जिंदगी में कभी न
कभी यौन उत्पीड़न सहा था। हैशटैग मी टू के साथ एक ही दिन में 12 मिलियन लोगों ने अपने अनुभवों को शेयर किया। खुद अभिनेत्री की पोस्ट पर ही
हजारों लोगों ने उत्तर दिया, अपने अनुभव साझा किए।
हॉलीवुड के मशहूर प्रोड्यूसर हार्वे
विंस्टीन पर अभिनेत्री एलिसा मिलानो ने जो यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए, उसके परिप्रेक्ष्य में न्यूयार्क टाइम्स ने बताया कि इस महीने विंस्टीन ने
कोर्ट के बाहर आठ महिलाओं के साथ अपने विरूद्ध लगाए गए यौन शोषण के आरोपों पर
समझौता किया है। इसी दौरान एशिया अर्जेंटो, लुसिया एवांस,
लिसे एंटोनी और रोज मैकगॉउन ने हॉलीवुड के इस शहंशाह पर रेप के आरोप
लगाए। हाई-प्रोफाइल हॉलीवुड अभिनेत्रियों जिनमें एंजोलिना
जॉली, केट बिंस्लेट, ग्वेनेथ पाल्ट्रो
ने भी विंस्टीन के खिलाफ उत्पीड़न के आरोप लगाए। अभिनेत्री एलिसा के चुप्पी तोड़ने
के साथ एक ही व्यक्ति के खिलाफ इतनी महिलाओं, कहा जाए तो
समृद्ध महिलाओं ने अपनी चुप्पी तोड़ी। अगर अभिनेत्री एलिसा भी चुप रहती तो…?
तो कुछ नहीं होता। एक ऐसे व्यक्ति के बारे में, हम इतने घिनोने पक्ष को नहीं जान पाते। यही होता है और यही होता आ रहा
है। क्योंकि महिलाएं किसी न किसी दबाव वश अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की बातें घर
तक में नहीं कह पाती हैं। या घर में उन्हें इज्जत का वास्ता देकर चुप करा दिया
जाता है। वास्तविकता तो यह कि उनके साथ ऐसी घटनाएं घर पर, बेहद
सुरक्षित लोगों के घेरे के बीच ही होती हैं। इस बात को हाईवे फिल्म में बहुत ही
संवेदनशील तरीके से दिखाया गया था।
हॉलीवुड अभिनेत्री एलिसा के इस
अभियान की गूंज दुनिया भर में हो चुकी है। मी टू हैशटैग के साथ भारत में भी इस तरह
के अभियान को सोशल मीडिया पर जमकर प्रतिक्रिया मिली। सोशल मीडिया का उपयोग करने
वाली काफी महिलाओं ने हैशटैग मी टू के साथ अपने साथ होने वाली घटनाओं पर खुलकर
लिखा। चर्चित कॉमेडियन मल्लिका दुआ ने भी बचपन में अपने साथ हुई यौन शोषण
की घटना का खुलासा किया है। कुछ पुरुषों ने भी इसके समर्थन में
प्रतिक्रिया दी। इस समस्या का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि हैशटैग मी
टू के साथ मिलने वाली प्रतिक्रियाओं में चौबीस घंटों में ट्वीटर पर पांच लाख
ट्वीट्स और फेसबुक पर बारह मिलियन पोस्ट लिखे गए।
दिल्ली के निर्भया कांड के बाद जिस
मुखरता से यौन हिंसा के विरोध में अवाजें उठी थी, उससे लग रहा
था कि ऐसी घटनाओं में कुछ कमी आएगी, लेकिन ऐसा नहीं है। देश
में तो बिलकुल नहीं है। आंकड़े दूसरी ही कहानी कहते हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड
ब्यूरो के अनुसार देश में 2010 में 22,000 बलात्कार के केस दर्ज हुए, वहीं 2014 में बढ़कर 36,000 हो गए यानी पूरे 30 प्रतिशत की बढ़त्तरी हुई। एनसीआरबी ने ही 2016 में
बताया कि बलात्कार के 95.5 केस में पीड़िता रेपिस्ट को जानती
थी। ताजा आंकड़ों में 2016 में ही 4,437 बलात्कार के केस दर्ज हुए थे। इसी से समझा जा सकता है कि महिलाओं के प्रति
यौन उत्पीड़न, शरीरिक हमले, विदेश में
लड़कियां भेजना, पति और संबंधियों द्वारा हिंसा, अपहरण के बाद बलात्कार और हत्या के सभी प्रकार के मामले मिलाकर कितने
होंगे? इस हैशटैग के बीच ही में थाम्पसन रिटर्नस फांउडेशन ने
अपने एक पोल में बताया कि दिल्ली यौन हिंसा के मामले में सबसे असुरक्षित जगह है।
दिल्ली में महिलाएं रेप, यौन उत्पीड़न और यौन हमलों के प्रति
हमेंशा सशंकित रहती हैं। दिल्ली को पहले भी रेप राजधानी कहा गया है। यह सर्वे
संसार की 19 बड़े शहरों में जून और जुलाई 2017 के दौरान किया गया। यह आंकड़े निर्भया केस के पांच वर्ष होने की वर्षी से
कुछ समय पहले ही आए हैं। यह आश्चर्य की बात है कि कराची और टोक्यो दिल्ली से बेहतर
जगहें हैं।
2013 में मशहूर सितार वादक पं. रविशंकर की बेटी अनुष्का ने जब इस बात का खुलासा किया कि बचपन में उसके एक करीबी जानकार व्यक्ति ने उनका यौन शोषण किया तो इस पर विश्वास किया जाना मुश्किल हो रहा था। अब हैशटैग मी टू के बहाने जब इतनी घटनाएं सामने आई हैं, तब इस पर हम विश्वास करें या न करें, पर इस समस्या की गहराई तक जाना होगा। अपने आसपास के चेहरों का पहचानना होगा, जो इस तरह की हरकतों को अंजाम देकर हमारे बीच अच्छे मुखौटों के बीच छुपे बैठे हुए हैं। इनके चेहरों से अगर हिम्मत करके मुखौटे ही हटा दिए जाए, तो समस्या का काफी बड़ा समाधान निकल सकता है, इसके लिए बस चुप्पी ही तोड़नी होगी। कुछ हैशटैग मी टू का मार्ग अपनाना होगा। घर पर बताना होगा, सबको बताना होगा। कुछ दिन पहले फेसबुक पर महिलाओं ने अपनी डीपी काली रखकर यौन हिंसा के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया था। सोशल मीडिया पर उनकी काली डीपी इस बात का संकेत दे रही थी कि महिलाएं केवल सोशल मीडिया में ही न दिखे, तो यह जगह कितनी बदरंगीन हो जाएगी। फिर पूरे संसार से ही महिलाएं गायब हो जाए तो…। क्या ऐसी स्थिति आ सकती है?
(लेख युगवार्ता साप्ताहिक में प्रकाशित है। आंशिक रूप से यहां प्रस्तुत है।)
1 टिप्पणी:
Very nice article. Thanks
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