सोमवार, 13 जनवरी 2020

माननीयों के घड़ियाली आंसू


निर्भया जैसे भीभत्स कांड के बाद, और सख्त कानून बनने, कई तरह की गाइड लाइन जारी होने के बावजूद कई जघन्य अपराध हो चुके हैं और भी होने की पूरी संभावना है। प्रश्न है कि देश के नियंता माननीय अब तक महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के प्रति जरा भी संवेदनशील क्यों नहीं हुए हैं? क्या यह देश की एक भयावह समस्या नहीं है, जहां प्रत्येक बच्ची, किशोरी, महिलाएं एक असुरक्षा की भावना के साथ जी रही हैं। क्या देश का कोई भी सांसद इस बात का दम भर सकता है कि उसके क्षेत्र में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में जरा भी कमी आई है। क्या यह कोई बड़ी बात है कि प्रत्येक सांसद या विधायक अपने-अपने क्षेत्रों की महिलाओं को यह अश्वासन नहीं दे सकता है कि हमारे क्षेत्र की मां-बेटी-बहन सुरक्षित होगी। क्या यह इतना मुश्किल है? या फिर इच्छा शक्ति का अभाव है? अगर यह जरा भी सच है, तब तो आपका गुस्सा भी बनावटी है।
और हो भी क्यों न। राजनीति में महिलाओं के लिए कोई खास स्पेस नहीं रखा गया है। भारतीय राजनीति अन्य क्षेत्रों की तरह अभी भी महिला विरोधी ही है। संसद में महिला आरक्षण की बात हो, या राजनीतिक दलों में महिला भागीदारी, सभी का स्तर काफी निम्न स्तर का है।इसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि आजादी के सात दशक बात भी इस नई लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या कुल जमा सर्वाधिक 78 सांसद ही है, जो कि कुल सासंदों का 17 फीसदी बैठता है। आजादी के सात दशकों बाद राजनीति में महिला भागीदारी यह चेहरा यह बताने के लिए काफी है कि महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए माननीयों से ज्यादा अपेक्षाएं क्यों रखे। नेशनल इलेक्शन वॉच ने हैदराबाद की घटना के बाद देश की संसद का महिला विरोधी हाल बयान किया है। वैसे देश की राजनीति का अपराधीकरण और ऐसे लोगों का सांसद और विधायक बनना भी इसी समस्या से जोड़कर देखा जा सकता है।   
हाल ही में नेशनल इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोर्म्स ने 4,896 में से 4,822 सांसदों और विधायकों के शपथपत्रों का विश्लेषण किया है। इससे पता चलता है कि 2009 से 2019 तक लोक सभा चुनाव में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से संबंधित मामले घोषित करने वाले उम्मीदवारों की संख्या में 231 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं इसी दौरान लोकसभा चुनाव में महिलाओं पर अत्याचार से संबंधित मामले घोषित करने वाले सांसदों की संख्या में 850 फीसदी की वृद्धि हुई है। नेशनल इलेक्शन वॉच की इस रिपोर्ट की माने तो कहा जा सकता है कि महिलाओं के मामले में आरोपित माननीयों से महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने की अपेक्षा हम कैसे कर सकते हैं। हां, दूसरी बात है कि इस तरह के आरोपों को सभी सांसद और विधायकआरोपही मानकर चलते हैं।
यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि पिछले पांच सालों में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से संबंधित मामले घोषित करने वाले कुल 572 उम्मीदवारों ने लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा चुनाव लड़ा था, इनमें से किसी भी उम्मीदवार पर आरोप दोषसिद्ध नहीं हुआ है। इन्हीं वर्षों में ऐसे मामले घोषित करने वाले 162 निर्दलीय उम्मीदवारों ने लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा था। इस विश्लेषण से यह भी पता चलता है कि राजनीतिक दल महिलाओं पर अत्याचार के मुद्दों पर ज्यादा चिंतित दिखाई नहीं देते हैं। यहां तक महिला नेतृत्व वाले राजनीतिक दल जैसे कांग्रेस, बीएसपी और एआईटीसी भी ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दे रहे हैं। राज्यों में पश्चिम बंगाल से सबसे अधिक 16 सांसद और विधायक, ओडीशा और महाराष्ट्र दोनों से 12-12 सांसद और विधायक हैं, जिन्होंने महिलाओं से संबंधित अपराध घोषित किए हैं। पिछले पांच वर्षों में राज्यों में महाराष्ट्र से सबसे अधिक 84 उम्मीदवार, दूसरे नंबर पर बिहार से 75 और तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल से 69 उम्मीदवारों (निर्दलीय उम्मीदवारों सहित) को राजनीतिक दलों ने टिकट दिया, जबकि उन्होंने अपने शपथपत्र में महिलाओं के ऊपर अत्याचार से संबंधित मामले घोषित किए थे।
कारण सिर्फ इतना ही नहीं है कि राजनीति का अपराधीकरण हुआ और सांसद-विधायक कई-कई मामलों में आरोपित हैं, वास्तव में महिला विहीन राजनीति अधिक मात्रा में पुरुष सत्ता का पोषण कर रही है। इसलिए देखा गया है कि न केवल पुरुष सांसद बल्कि महिला सांसद भी महिला मुद्दों के प्रति इतनी संवेदनशील नहीं रहती है, जितना उन्हें होना चाहिए। उनकी प्राथमिकता महिला मुद्दों से कही ज्यादा अपने दलों के प्रति रहती है। इसलिए वे समय-समय पर महिला मुद्दों के प्रतिसिलेक्टिवरवैया भी अख्तियार कर लेती हैं। इसकी वजह राजनीति का वही मेल डॉमिनेशन होता है। इसके लिए जरूरी है कि पहले न केवल राजनीति में बल्कि राजनीतिक दलों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाए, ताकि महिलाएं अधिक से अधिक संख्या में संसद, विधानसभा पहुंच सके। परिणामस्वरूप राजनीति महिला मुखी होगी और माननीय कहीं अधिक महिलाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझेगे, और महिला मुद्दों पर केवल घड़ियाली आंसू नहीं बहायेंगे।