रविवार, 30 जनवरी 2011

चेहरों की बेचेनी


शाम के समय
घर लौटते हुए चेहरों
की बेचेनी
सिमट आती है
पैरों में!!!
तेज चलने के लिए..

कभी कभी गाड़ी के पहियों में भी
ऐसी ही बेचैनी मिलती है
जब ख़ाली सड़क को देखती है.
तेज दौड़ने के लिए..

घर लौटने वाले चेहरों की
बेचेनी तब ...
मुस्कराहट में बदल जाती है
जब ....
घर जाने वाली बस
समय पर आ जाती है .