इस रौशनी में आइये जानते हैं कि वे कौन सी विद्वत् महिलाएं थीं जिनके विचारों और कार्याें का प्रभाव संविधान निर्माण पर इस हद तक पड़ा कि आज हमें उन्हें याद कर गर्व महसूस होता है-
अम्मू स्वामीनाथन
केरल के नायर समुदाय से आने वाली अम्मू स्वामीनाथन का स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण स्थान है। उन्हें प्यार से अम्मुकुट्टी भी बुलाया जाता था, वे अपने विचारों और कार्यों में काफी निडर थीं, यह उनके सामाजिक कार्यों एवं एक राजनेता के रूप में उनके जीवनकाल से स्पष्ट होता है। अपने काम के माध्यम से उन्होंने महिला श्रमिकों के आर्थिक मुद्दों और समस्याओं को सबसे आगे रखा। संविधान निर्माण के समय उन्होंने महिलाओं के लिए वयस्क मताधिकार और संवैधानिक अधिकारों की मांग का मुखर होकर समर्थन किया था। 1952 में वे राज्यसभा की सदस्य चुनी गईं और कई संस्थाओं से जुड़कर काम करती रहीं।
एनी मस्कारेन
स्ंाविधान सभा में एनी मस्कारेन ने केरल का प्रतिनिधित्व किया था। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रीय रहते हुये वे कई बार जेल भी गईं। राजनीतिक रूप से काफी सक्रीय रहीं। वे कांग्रेस की राज्य कार्यकारिणी की सदस्य भी नियुक्त हुई थीं। स्वतंत्रता के बाद एनी मस्कारेन रियासतों के एकीकरण के लिए चलाए गए आंदोलनों की नेताओं में से एक थीं। जब राजनीतिक दल त्रावणकोर स्टेट कांग्रेस का गठन हुआ, तो वह इसमें शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं। उन्होंने संविधान सभा की चयन समिति में भी काम किया, जिसने हिंदू कोड बिल पर विचार किया।
दक्षायनी वेलायुधन
संविधान सभा के लिए चुनी जाने वाली एकमात्र दलित महिला थीं, वे एर्नाकुलम के पुलया समुदाय से संबंध रखती थीं। वे देश की पहली अनुसूचित जाति की स्नातक तक शिक्षित महिला थीं। उन्होंने विधानसभा की सदस्य के रूप में कार्य किया। 1946-52 तक अनंतिम संसद का हिस्सा रहीं। 34 वर्ष की उम्र में, वह विधानसभा की सबसे कम उम्र की सदस्यों में से एक थीं। वेलायुधन ने केरल में जड़ जाति व्यवस्था को अपने जीवन और कार्याें से प्रभावित और परिभाषित किया। साथ ही संविधान सभा में जाति आधारित भेदभाव को मिटाने के लिये जोरदार तर्क दिये।
बेगम ऐजाज रसूल
वेलायुधन की तरह बेगम ऐजाज संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं। रसूल मालरकोटला के राजपरिवार से ऐजाज का ताल्लुक था। ऐजाज रसूल ने औपचारिक रूप से 1937 में पर्दा त्याग दिया था, जब उन्होंने गैर-आरक्षित सीट से अपना पहला चुनाव जीता और उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य बनीं। 1952 में वे राज्यसभा के लिये चुनी गयी थीं। उन्होंने महिला हॉकी को लोकप्रिय बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
दुर्गाबाई देशमुख
किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रीय होने वाली दुर्गाबाई देशमुख महिला अधिकारों के प्रति अपने पूरे जीवन सक्रीय रहीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान ही उन्होंने आंदोलन में महिला सत्याग्रहियों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें 1930 और 1933 के बीच तीन बार कैद किया। 1936 में उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो आगे जाकर बहुत महत्वपूर्ण संस्था बन गई। दुर्गाबाई पहली महिला थीं जिन्होंने चीन, जापान की अपनी विदेश यात्राओं के दौरान अध्ययन करने के बाद अलग-अलग पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना की आवश्यकता पर जोर दिया।
हंसा जीवराज मेहता
बड़ौदा, गुजरात से संबंध रखने वाली हंसा जीवराज मेहता संविधान सभा की प्रमुख सदस्य थीं। वे इस दौरान मौलिक अधिकार उप-समिति, सलाहकार समिति और प्रांतीय संवैधानिक समिति की सदस्य बनी थीं। 15 अगस्त 1947 को आधी रात के कुछ मिनट बाद, मेहता ने “भारत की महिलाओं” की ओर से सभा को राष्ट्रीय ध्वज भेंट किया- जो स्वतंत्र भारत पर फहराया जाने वाला पहला ध्वज था। हंसा ने इंग्लैंड से पत्रकारिता और समाजशास्त्र में पढ़ाई करने के बाद देश की महिलाओं के लिये काम करना शुरू किया। 1945 में उन्हें अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया था। हैदराबाद में आयोजित अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का चार्टर प्रस्तावित किया था।
कमला चौधरी
कमला चौधरी एक हिंदी साहित्यकार के रूप में आजादी के आंदोलन में सक्रीय रहीं। उन्होंने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे आंदोलन के दौरान छह बार जेल भी गईं। उन्होंने महिलाओं केा देश की आजादी के संघर्ष से जोड़ने का काम किया। वे संविधान सभा की सदस्य बनीं और संविधान अपनाए जाने के बाद, उन्होंने 1952 तक भारत की प्रांतीय सरकार के सदस्य के रूप में कार्य किया।
लीला रॉय
संविधान सभा में असम का प्रतिनिधित्व लीला राॅय ने किया था। असम के गोलपाड़ा से संबंध रखने वाली लीला राॅय एक उच्च शिक्षित एवं राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन करने वाले परिवार से आती थीं। उन्होंने देश की महिलाओं के अधिकारों के लिये काफी संघर्ष किया। साथ ही वे कई संगठनों से जुड़ी भी रहीं। 1937 में लीला कांग्रेस में शामिल हुईं और बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना भी की। बंगाल से विधानसभा में चुनी गई एकमात्र महिला सदस्य थीं। वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक करीबी सहयोगी थीं।
मालती चौधरी
एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाली मालती चौधरी की शिक्षा शांति निकेतन से हुई थी। वे बंगाल की प्रगतिशील महिलाओं में से प्रमुख चेहरा थीं। नमक आंदोलन के समय वे कांग्रेस से जुड़ी और अपने पूरे जीवन देश के लिये समर्पित रहीं। स्वतंत्रता के बाद, मालती चौधरी ने संविधान सभा की सदस्य और उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका निभाई। ग्रामीण पुनर्निर्माण में शिक्षा, विशेष रूप से वयस्क शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। वह आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी शामिल हुईं। वे टैगोर और गांधी दोनों से बहुत प्रभावित हुईं।
पूर्णिमा बनर्जी
पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से संबंध रखने वाली थीं। उन्होंने देश की स्वतंत्रा के लिये संघर्ष किया। सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई। वे इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति की सचिव भी रहीं। उन्होंने ट्रेड यूनियन के साथ भी काम किया। वे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और कार्यकर्ता अरुणा आसफ अली की छोटी बहन थीं।
राजकुमारी अमृत कौर
अमृत कौर संयुक्त प्रांत से संविधान सभा के लिए चुनी गई थीं। उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान महिलाओं की व्यापक राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना था। उनका संबंध कपूरथला राजघराने से था। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ पर काफी काम किया। वे रेडक्राॅस सोसाइटी से भी जुड़ी रहीं। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कैबिनेट पद संभालने वाली पहली महिला बनीं। अखिल भारतीय महिला सम्मेलन केंद्र, दिल्ली में लेडी इरविन कॉलेज और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) कुछ प्रतिष्ठित संगठन हैं जिनमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहीं।
रेणुका रे
पश्चिम बंगाल से संविधान सभा सदस्य के रूप में उन्होंने विधानसभा में महिला अधिकार मुद्दों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और द्विसदनीय विधायिका जैसे प्रावधानों पर अपना महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया। वे अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में भी शामिल हुईं। महिलाओं के अधिकारों और पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार के अधिकारों के लिए जोरदार अभियान चलाया। 1952 से 1957 तक उन्होंने प. बंगाल विधानसभा में मंत्री के रूप में कार्य किया।
सरोजिनी नायडू
सरोजिनी नायडू जानीमानी भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और कवियत्री थीं। सरोजनी एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है। नायडू की कविताओं में बच्चों की कवितायें और देशभक्ति, रोमांस और त्रासदी पर उनकी कविताएं आज भी याद की जाती हैं। स्वतंत्रता के बाद उन्हें संयुक्त प्रांत का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
सुचेता कृपलानी
सुचेता कृपलानी को 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है। उन्होंने 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला शाखा की स्थापना की थी। उन्होंने संविधान सभा के स्वतंत्रता सत्र में वंदे मातरम् गाया। वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री भी थीं।
विजयलक्ष्मी पंडित
एक राजनीतिक कार्यकर्ता, मंत्री, राजदूत और राजनयिक के रूप में विजयलक्ष्मी पंडित ने राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका में क्रांतिकारी बदलाव लाईं। ब्रिटिश काल में पहली महिला कैबिनेट मंत्री विजयलक्ष्मी पंडित संविधान बनाने के लिए भारतीय संविधान सभा की मांग करने वाले पहले नेताओं में से एक थीं। वे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गईं। संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली विश्व की पहली महिला थीं।