बुधवार, 18 सितंबर 2024

जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट : सब चंगा सी नहीं

 

जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के शोषण को सामने ला दिया है। इस रिपोर्ट के आने के बाद से अन्य क्षेत्रीय सिनेमा इंडस्ट्री से भी छन-छन कर खबरें आने लगी हैं, क्योंकि शोषण का किसी प्रगतिशील सिनेमा से कोई लेना देना नहीं है, यह सर्वव्यापी है। बस रोशनी डालने भर की जरूरत है।

 

 

जबसे जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट आई है, मलयालम समाज और मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में हंगामा मचा हुआ है। फिल्म उद्योग से जुडे़ लोगों के मनों में उथल-पुथल मची हुई है। इसकी नजर में देश के कई क्षेत्रीय सिनेमा उद्योगों से भी आवाज उठने लगी है, पर यह आश्चर्य की बात है कि देश की एक बड़ी हिंदी फिल्मी इंडस्ट्री ने मनचाही चुप्पी ओढी हुई है। यहां सब चंगा सीके मुगालते में वे सब शुतुर्गमुर्गी रवैया अख्तियार किये हुये हैं। जिस तेजी से यह बयार चल रही है, उसमें सिनेमा के बहुत से पर्दे उड़ने की पूरी संभावना दिख रही है, देर या सबेर।

खैर, आते है मलयालम फिल्म इंडस्ट्री और रिपोर्ट पर। हाल ही में 19 अगस्त को जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट आने के बाद से मलयालम सिनेमा से जुड़ी कई महिलाओं ने सामने आकर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के जानेमाने और दिग्गज अभिनेताओं, निर्माताआंे, निर्देशकों और राजनेताओं पर आरोप लगाये हैं। इनमें से कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं और हो रही हैं। जैसे-जैसे यह मामला आगे बढ़ रहा है मलयालम सिनेमा के कई आईकन धराशायी हो रहे हैं। इसी का परिणाम है कि 27 अगस्त को मलयालम सिनेमा का सबसे शक्तिशाली 17 सदस्यीय संगठन एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट यानी एएमएमए को भंग कर दिया गया है। चर्चित अभिनेता मोहनलाल और ममूटी ने अपने-अपने पदों से इस्तीफे भी दे दिये हैं। फिल्म से जुड़ी इस शक्तिशाली बाॅडी को इसलिये भंग करना पड़ा, क्योंकि इससे जुड़े लोगों पर लगातार सिनेमा से जुड़ी महिलाओं ने यौन शोषण के आरोप लगाये थे। फिल्म निर्देशक रंजीत का नाम सबसे पहले आया, जो राज्य की फिल्म एमप्लाई फेडरेशन आॅफ केरला अकेडमी के चेयरमेन भी थे जिससे उनका इस्तीफा हो चुका है। इसके बाद अभिनेता सिद्दकी और मुकेश पर भी गंभीर आरोप लगे और उन्होंने एएमएमए से इस्तीफा दिये।

एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट पर और बात करने से पहले जस्टिस हेमा कमेटी के गठन पर बात कर लेते हैं। फरवरी 2017 में मलयालम की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के अपहरण और यौन उत्पीड़न के बाद उठे असंतोष पर बात करने के लिये के. हेमा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। जिसकी रिपोर्ट पांच साल बाद तमाम उहापोह के बाद केरल सरकार ने 19 अगस्त को 44 पेज हटाने के बाद रिलीज कर दी है। इस रिपोर्ट में जो बातें सामने आई हैं और जैसी बातों पर अब बात होनी संभव हुई है, उसका पूरा श्रेय जस्टिस हेमा कमेटी को जाता है। इस रिपोर्ट के डाॅक्यूमेंटेशन के बाद अब उन आरोपों को मजबूती मिल गई है जिसे इस मर्दवादी और मर्द नियंत्रित फिल्म इंडस्ट्री हवा में उड़ा दिया करती थी। या सच कहने वालों की माॅरल लिंचिंगकरा देती थी। इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि इस फिल्म इंडस्ट्री को 15 से 20 फिल्मी हस्तियों का एक ग्रुप संचालित कर रहा है। रिपोर्ट में जिसे माफियातक कहा गया है। जो इस शक्तिशाली ग्रुप की बातें उचित-अनुचितनहीं मानता, उसे इस इंडस्ट्री से गाहे-बगाहे बेदखल कर दिया जाता। इस माफिया ग्रुप के सभी भागीदार एक दूसरे को बचाने में लगे रहते हैं। इस इंडस्ट्री में काम करने वालों का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण किया जाता। उनको उचित मेहनताना तक नहीं दिया जाता है, बेसिक कार्यस्थल की सुविधायें भी नहीं प्रदान की जाती हैं जैसे वाशरूम और पानी पीने तक की सुविधा। यहां बहुत ही सुनियोजित तरीकेसे महिलाओं के शोषण को सांगठित रूप दे दिया गया है। इस इंडस्ट्री में प्रवेश करने वाली महिलाओं को किसी न किसी बहाने यह समझाने की कोशिश की जाती कि यहां टिकने के लिये कुछ समझौतेऔर एडजस्टमेंटकरने पड़ेगें। महिला आर्टिस्ट के एक बार समझौताकर लेने के बाद उसका एक कोडनंबर जारी कर दिया जाता, जिसके बाद कोडबताने के बाद उसे काम मिलने में उतनी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।

इस रिपोर्ट के आने के बाद और रिपोर्ट से व्यक्तिगत पहचान न जाहिर करने के एवज में कुछ पेज हटाने के बावजूद अभिनेत्रियां, मेकअप आर्टिस्ट, तकनीशियन और फिल्म इंडस्ट्री के दूसरे क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं ने सामने आकर कई दिग्गजों के खिलाफ आरोप लगाये और रिपोर्ट लिखाई। लगभग 17 मलयालम सिनेमा की हस्तियों पर अब तक केस दर्ज किये जा चुके हैं। जिनमें लगातार कई गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं। इन लोगों में निर्माता रंजीत, अभिनेता जयसूर्या, अभिनेता सिद्दकी, अभिनेता और विधायक मुकेश, अभिनेता जयसूर्या, अभिनेता एडवेला बाबू, अभिनेता सुधीश, अभिनेता और निर्माता एम. राजू, अभिनेता और निर्माता निविन पाॅली प्रमुख रूप से हैं। इनमें कई अभिनेता एएमएमए से जुड़े हुये थे, जिनके इस्तीफे होने के बाद इसे ही भंग करना पड़ा। प्रसिद्ध अभिनेता एवं एएमएमए के पूर्व अध्यक्ष मोहनलाल हेमा कमेटी रिपोर्ट आने के बाद पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि मैं मलयालम सिनेमा के किसी पाॅवर ग्रुप का हिस्सा नहीं हूं। जिन्होंने गलत किया है उनको सबूतों के आधार पर दंड मिलना चाहिये। वे एएमएमए पर लगने वाले आरोपों से खासे दुखी नजर आये और उन्होंने मीडिया से कहा कि एएमएमए पर पत्थरबाजी न करें। ...उन्होंने इस इंडस्ट्री को बरबाद न करनेकी गुजारिशकी। जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट पर अब तक अपनी कोई प्रतिक्रिया न देने और इंडस्ट्री में किसी पाॅवर ग्रुप के अस्तित्व से अब तक इंकार करने वाले प्रसिद्ध अभिनेता मोहनलाल ने किस डर, शायद नैतिकता का रहा होगा, के कारण एएमएमए पूरी कार्यकारणी सहित इस्तीफा देना पड़ा।

एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट संगठन मलायालम सिनेमा का 30 साल में ऐसा संगठन बन कर उभरा जिसने मर्दवादी सिनेमा इंडस्ट्री की तरह ही इसे भी संचालित किया। 1994 में मलयालम फिल्म के अभिनेता और अभिनेत्रियों को एक ऐसे प्लेटफार्म के लिये बनाया गया था, जहां वे अपनी समस्याओं पर बात कर सकें। लेकिन यह संस्था भी शोषितों के साथ बहुत कम खड़ी रही। 2017 में जब एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के अपहरण और यौन शोषण का मामला आया और उसके आरोपी प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप पर मामला चला और कई मुश्किलों के बाद गिरफ्तारी हुई, तब कहीं जाकर दिलीप को उनके पदों से हटाया गया। इस घटना से पहले भी उक्त अभिनेत्री ने अपनी कई शिकायतें की लेकिन उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया गया। अंततः जब इतनी बड़ी घटना हुई तब इसकी जिम्मेदारी किसकी बनती है। यहां यह जानना जरूरी है कि उस समय उक्त अभिनेत्री और आरोपी दिलीप दोनों ही इस संगठन के हिस्सा थे। दिलीप की गिरफ्तारी के एक साल बाद और जमानत पर बाहर आने के बाद एक आम सभा में चुपचाप अभिनेता को बहाल कर दिया गया। मीडिया रिपोर्ट से पता चलता है कि अधिकांश अभिनेताओं ने दिलीप के पक्ष में मतदान किया था। संगठन में दिलीप को लाने के बाद चार महिला सदस्य कलाकारों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया।

एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट यानी एएमएमए के ऐसे संदिग्ध रवैये के चलते उस समय एक बड़ी घटना भी आकार ले रही थी। 2017 की यौन उत्पीड़न घटना के बाद शक्तिशाली लोगों से लोहा लेने के लिये इस इंडस्ट्री और एएमएमए से जुड़ी कई जानीमानी महिला कलाकारों ने एक वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से जुड़कर संघर्ष करने की ठानी। यही ग्रुप आगे चलकर ‘वुमेन इन सिनेमा कलेक्टिव’ यानी डब्ल्यूसीसी के नाम से जाना गया। यह संगठन अपनी तरह का पहला और विश्व में दूसरा संगठन 2017 की घटना के कुछ ही महीने के बाद अस्तित्व में आया। इस संगठन का उद्देश्य समान अवसर और महिलाओं के सम्मान के लिये काम करना था। इसको इस रूप में लाने में जिन महिलाओं का योगदान था उनमें से बीना पाॅल, मंजू वाॅरियर, पार्वती, अंजली मेनन, रीमा कालिंगल, सजिता, विधु विंसेंट और दीदी दामोदरन प्रमुख थीं।

डब्ल्यूसीसी ने मई 2017 में केरल सरकार से पहली अपील की कि बनने वाली प्रत्येक फिल्म के लिये यौन उत्पीड़न हेतु एक आईसीसी का गठन किया जाना चाहिये। इस अपील में 21 महिला अभिनेत्री, निर्देशक, तकनीशियन और गायिकाओं के नाम और हस्ताक्षर शामिल थे। आईसीसी एक आंतरिक शिकायत समिति है, जो यौन उत्पीड़न की रोकथाम और यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण के लिये प्रत्येक कार्यस्थलों में गठित की जाती है। इस संगठन ने सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि अगर यह मानदंड पूरा नहीं होता है, तो फिल्मेंा को बनाने की अनुमति ही नहीं दी जानी चाहिये। यह अपने किस्म की अलग मांग थी क्यांेकि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री एक उद्योग होते हुये भी राज्य के दृष्टिकोण से सिनेमा एक उद्योग नहीं है, इसलिए यहां कार्यस्थल को परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

वुमेन इन सिनेमा कलेक्टिव का हेमा कमेटी रिपोर्ट को जमीनी संघर्ष करने में काफी मदद की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि डब्ल्यूसीसी की 32 महिलाओं ने कमेटी द्वारा जारी प्रश्नोत्तर फार्म को भर कर अपने साथ हुये दुव्र्यहार को हमसे शेयर किया। साथ ही कमेटी द्वारा ग्रुप और व्यक्तिगत डिस्कसन में भाग लिया। इस तरह हेमा कमेटी रिपोर्ट तैयार करने में तीन सदस्यीय कमेटी को काफी सहायता मिली। 2019 में रिपोर्ट सरकार के पास पहुंचने के बाद भी जारी न करने पर भी डब्ल्यूसीसी का संघर्ष जारी रहा। अब जब पांच सालों के बाद रिपोर्ट हमारे सामने है, तब डब्ल्यूसीसी के पास एक और चुनौती है कि हेमा कमेटी रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लागू कैसे कराया जाये। आखिर यहां महिलाओं के लिये बेसिक सुविधाओं रेस्टरूम, वाॅशरूम यहां तक चेंजिंग रूम पर बात करने के लिये ऐसे ही किसी प्रतिबद्ध महिला संगठन की जरूरत थी। आज यहां समान मेहनताना और नाॅन-कांट्रेक्टचुअल वर्क कल्चर पर बात हो रही है, जो किसी समय असंभव थी, इसी संगठन की मेहनत की वजह से संभव हुआ है। अगर इस प्रगतिशील सिनेमा की प्रगतिशील महिलाओं ने यह कर दिखाया है तो यह बयार अन्य बाॅलीवुडतक पहुंचनी चाहिये, जहां अभी चुप्पी का आलम है।

बुधवार, 28 अगस्त 2024

'प्रगतिशील सिनेमा' पर जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट

 

मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में एक आम धारणा है कि महिलाएं सिनेमा में पैसे बनाने आती हैं, इसलिये वे किसी भी मांग के लिये सहमत हो जायेगी। सिनेमा में काम करने वाले आदमी इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि अभिनय के प्रति जुनून के चलते वे यहां आती हैं। लेकिन यहां आदमियों को गलतफमी है कि वे पैसों और मशहूर होने के लिये आती हैं और फिल्म में एक मौका पाने के लिये वे किसी भी आदमी के साथ सो जायेगी।

कुछ ऐसी घटनाएं सुनकर दुख हुआ जिसमें बताया गया कि इस सिनेमा जगत के बहुत ऊंचे पदों पर बैठे लोग शामिल थे। ये वे लोग हैं जिन्हें समाज बहुत सम्मान और आदर से देखता है। जैसे-जैसे हम आगे बढ़े कई प्रतिष्ठित हस्तियां ढहने लगीं। ये वे लोग हैं जिनके पास मलयालम सिनेमा की दिशा बदलने की शक्ति है। दुर्भाग्य से ये वे लोग हैं, जो इस पेशे के पतन में योगदान दे रहे हैं।

अध्ययन के दौरान हमें पता चला कि कुछ पुरुषों को भी इस इंडस्ट्री ने परेशान किया हुआ है। इनमें से कुछ तो बहुत ही प्रमुख कलाकार हैं। इन लोगों को बिना अनुमति के सिनेमा में काम करने से प्रतिबंधित कर दिया गया था... उन्होंने जाने अनजाने में पावरफुल लाॅबी के किसी न किसी व्यक्ति के क्रोध को आमंत्रित किया होगा।


बहुत साल नहीं गुजरे हैं जब हिन्दी फिल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने जाने-माने अभिनेता नाना पाटेकर पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाकर देश में मीटू मुहिमकी शुरूआत कर दी थी। इसके बाद तो समाज के हर क्षेत्रों से ऐसी ही खबरें आने लगी। महिलाओं ने आगे बढ़कर अपने साथ हुयी ज्यादतियों पर बयान दिये। इसके साथ ऐसी शर्मनाक ज्यादतियों का एक पुलिंदा ही खुल गया। एक के चुप्पी तोड़ने से सभी को चुप्पी तोड़ने का साहस मिल गया। ऐसा ही कुछ इस समय प्रोग्रेसिव सिनेमाके नाम से पहचाना जाने वाला मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में भी घटित हो रहा है। 19 अगस्त को जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट आने के बाद से मलयालम सिनेमा वह स्याह पक्ष सामने आया है, जो शायद न होता तो अच्छा होता।

दरअसल मलयालयम सिनेमा में महिलाओं की स्थिति को लेकर जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट केरल सरकार को 2019 में ही सौंप दी गई थी। इसको देखने के बाद मलयालम फिल्म इंडस्ट्री का जो सच सामने आ रहा था, उससे हंगामा मचने के डर से पिनरई विजयन सरकार इसको सार्वजनिक करने से आनाकानी कर रही थी। इस रिपोर्ट के कारण राज्य में तूफान न आ जाये, इसके लिये राज्य सरकार ने कुछ नियमों का सहारा लेकर दो साल तक रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया। महिलाओं के लिये काम कर रहे संगठनों जब इसकी मांग की, तब सरकार ने अपने बयान में कहा कि रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से कई लोगों की निजता खतरे में पड़ जायेगी। पर सरकार ने जनवरी 2022 में एक पैनल बनाया जिसके जरिये फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वालों की बेहतरी के लिये कुछ सुझाव दिये। इस रिपोर्ट के दर्पण में मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वालों के लिये कांट्रैक्ट को अनिवार्य करना, शूटिंग की जगहों पर नशा करने आदि पर रोक, और साथ ही महिलाओं के लिये कार्यस्थल पर सुरक्षित माहौल तैयार करने के उपाय शामिलकिये गये थे।

क्यों बनी जस्टिस हेमा कमेटी

17 फरवरी, 2017 को मलयालम सिनेमा की जानी मानी अभिनेत्री का चलती कार में अपहरण और गैंगरेप किया गया। इस रेप में पांच लोग शामिल थे, जिसकी भूमिका प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप ने अभिनेत्री से बदला लेने के लिये रची थी। अभिनेत्री की रिपोर्ट के बाद यह शर्मनाक घटना सामने आई। इसके सार्वजनिक होते ही लोग और इंडस्ट्री के लोग आंदोलित हो गये। लोगों के बढ़ते आंदोलन से पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार करना पड़ा। लेकिन अभिनेता दिलीप की गिरफ्तारी 03 अक्टूबर, 2017 हो सकी। अभिनेता दिलीप मलयालम मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष थे, जो केरल में प्रभाव रखने वाली एक शक्तिशाली उद्योग संस्था है, इससे उन्हें बाहर कर दिया गया। इस शर्मनाक घटना के बाद केरल सरकार ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिला कलाकारों और कर्मचारियों की सुरक्षा, काम की शर्तों और उनके साथ हो रहे शोषण को लेकर आवाज उठने लगी। इसलिये केरल सरकार ने हाईकोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस के. हेमा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन जुलाई, 2017 को कर दिया। इस कमेटी में अभिनेत्री टी. शारदा और केरल की प्रिंसिपल सेक्रेटरी के पद से सेवानिवृत्त के. बी. वाल्साला कुमारी को भी शामिल किया गया। इस कमेटी के गठन का उद्देश्य मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में महिला कलाकारों, अन्य महिला कर्मचारियों की सेवा शर्तें एवं भुगतान, उनकी बेसिक जरूरतें, उनकी सुरक्षा के तमाम इंतजाम आदि का पता लगाकर रिपोर्ट देना था। जिससे मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वाली महिलाओं की वास्तविक स्थिति के बारे में पता लगाया जा सके।

क्या है जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट

अपने सीमित कार्यकाल में इस कमेटी ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के हर पहलू पर काम किया और उम्मीद से अधिक सच सामने लाने में मदद की। हालांकि ऐसा नहीं था कि इस रिपोर्ट से पहले मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में लग रहे महिला शोषण के विषय में किसी को पता नहीं था। समय समय पर आने वाली कई रिपोर्ट में यह बात छन-छनकर सामने आ रही थी। इस रिपोर्ट ने सच्चाई सामने लाने के लिये सैकड़ों महिला कलाकारों, टेक्नीशियनों, निर्माताओं और निर्देशकों से बात की। और उनके बयानों को रिकार्ड भी किया। कमेटी ने यह रिपोर्ट 2019 को सरकार को सौंप दी थी। इस रिपोर्ट को रोके रखने के पीछे जो शक्तियां काम कर रही थीं और रिपोर्ट जिस तरह से पांच सालों तक धूल खाती रही उससे पता चलता है कि रिपोर्ट में क्या हंगामाखेज था और किसकी कारगुजारियां सामने आने की संभावना थी। तमाम प्रयासों के बाद अब जब खुद केरल सरकार ने इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर दिया है, तो बहुत से पर्दे गिर गये हैं।

295 पन्नों की इस रिपोर्ट से प्रारंभिक 44 पन्नों को हटाने के बाद जारी किया गया है। इन बाकी बचे पन्नों में काॅस्टिंग काउच से लेकर निर्देशकों, निर्माताओं और अभिनेताओं के 10 से 15 पुरुषों के एक कट्रोल ग्रुपकी कहानी है। इस इंडस्ट्री को कुछ शक्तिशाली पुरुषनियंत्रित करते हैं। ये लोग एक माफियाकी तरह काम करते हैं। इनके विरूद्ध कोई जाकर काम नहीं कर सकता। जो महिलाएं उनकी शर्तों से सहमत नहीं होती, उन्हें यह इंडस्ट्री छोड़नी पड़ती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्देशक और निर्माता अक्सर महिलाओं के शोषण के लिये उन पर दबाव डालते हैं। उनसे बार बार समझौताऔर एडजस्टमेंटकरने के लिये कहते हैं। आधी रात को उनके दरवाजों में दस्तक दी जाती, उन्हें जबरदस्ती छुआ या चूमा जाता, अच्छे रोल के लिये उनसे सेक्सुअल फेवर मांगा जाता, यह सब इस रिपोर्ट में दर्ज है। इसके अलावा उन्हें अनियमित भुगतान किया जाता। उनके लिये बेसिक सुविधाएं जैसे वाशरूम, चेंजिंग या रेस्ट रूम तक नहीं होते हैं।

कामोवेश इस रिपोर्ट के आने के बाद कुछ अभिनेत्रियों ने सार्वजनिक रूप से बाहर आकर प्रसिद्ध शख्सियतों पर आरोप लगाये हैं। इसके परिणाम स्वरूप एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी अर्टिस्टस के सीनियर मेंबर रंजीत के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है। फलतः उन्हें केरल स्टेट चलचित्र अकेडमी से जाना पड़ा। साथ ही प्रसिद्ध अभिनेता सिद्दीकी पर आरोप लगने के बाद एक्टर एसोसिएशन जनरल सिक्रेटरी के पद से हटा दिया गया है। इन सब आरोपों को देखते हुये केरल सरकार ने एक एसआईटी गठित कर दी है, जो आने वाले मामलों की जांच करेगी।

 


शनिवार, 17 अगस्त 2024

...जब महिलाओं का ओलिंपिक में खेलना प्रतिबंधित था!

  

फ्रांसिस विद्वान पियरे
डी कुबर्टिन ने जब प्राचीन ओलंपिक खेलों को पुनर्गठित करने का इरादा बनाया, तब उनके जेहन में पुरूषों और महिलाओं की समान भागीदारी की कोई कल्पना नहीं थी। इन खेलों में महिलाओं की भागीदारी के बारे में कुबर्टिन की स्थिति दूसरे ओलंपिक संस्करण में बदलनी शुरू हुई।


ओलंपिक खेल अपनी पूरी धूम के साथ संपन्न हो गये हैं। खुशी की बात है कि इस बार आधी आबादी अपने पूरे हक के साथ खेली। इस खेल के महाकुंभ में महिलाओं ने अपनी भागीदारी का 50 फीसदी का आंकड़ा छू लिया है। इस आंकड़े तक पहुंचने में महिलाओं को कुल 124 वर्ष का समय लगा। जब 1900 में इन खेलों में शामिल होने की अनुमति मिली थी, तब कोई नहीं सोच सकता था कि महिलायें अपने घरेलू जिंदगी से निकलकर हर तरह के खेलों में न केवल भाग लेंगी, बल्कि अच्छा प्रदर्शन भी कर सकेंगी। इन वर्षों में 1900 से 2024 तक महिलाओं की संख्या 22 से 5000 तक पहुंचने की यह यात्रा बहुत ही अद्भुत रही है, इसे स्वयं महिलाओं को भी जानना चाहिये। 

प्राचीन ओलंपिक खेल जो ओलंपिया में 776 से 393 ई.पू. तक आयोजित होते थे, तब यह खेल का एक धार्मिक पवित्र आयोजन होता था। इतना पवित्र कि इसमें महिलाओं को भाग लेने की मनाही होती थी। बाद में जब आधुनिक ओलंपिक का आयोजन वैश्विक सहमति से 1896 में हुये, तब भी इसमें महिलाओं के खेलने को लेकर कोई बात नहीं सोची गई थी। भले ही इसे ‘मार्डन ओलंपिक’ कहा जा रहा था। फ्रांसिस विद्वान पियरे डी कुबर्टिन ने जब प्राचीन ओलंपिक खेलों को पुनर्गठित करने का इरादा बनाया, तब उनके जेहन में पुरूषों और महिलाओं की समान भागीदारी की कोई कल्पना नहीं थी। इन खेलों में महिलाओं की भागीदारी के बारे में कुबर्टिन की स्थिति दूसरे ओलंपिक संस्करण में बदलनी शुरू हुई। तब 1900 में पेरिस में आयोजित आधुनिक ओलंपिक खेलों के इस दूसरे संस्करण में महिलाओं ने ओलंपिक खेलों में भाग लिया। कुल 22 महिलाओं ने इसमें भागीदारी की थी।

1900 में पेरिस में आयोजित आधुनिक ओलंपिक खेलों के इस दूसरे संस्करण में महिलाओं ने ओलंपिक खेलों में भाग लिया। कुल 22 महिलाओं ने इसमें भागीदारी की थी।

कहा जाता है 1896 के ओलंपिक में एक ‘अनाम’ महिला ने मैराथन में भाग लेने की कोशिश की। जाहिर है वहां महिलाओं की मनाही थी। इसलिये उस महिला को पुरूषों के बाद दौड़ने की अनुमति दे दी गई और उसने 4.5 घंटे में मैराथन पूरी कर ली, ऐसा कहा जाता है। यह विडंबना ही है कि उस महिला का उल्लेख समकालीन विदेशी स्रोतों में तो मिल जाता है। लेकिन ग्रीक समाचार पत्रों में उसके नाम का खुलासा कभी नहीं किया गया। बाद में लोगों ने एक प्राचीन त्रासदी की ग्रीक देवी ‘मेलपोमीन’ का नाम उस मैराथन दौड़ने वाली अनाम महिला को दे दिया। आज मेलपोमीन नाम से उस महिला को संबोधित किया जाता है। ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली महिला माना जाता है। तो ऐसे हुई इन खेलों में महिलाओं की एंट्री।

इस घटना के बाद आधुनिक ओलंपिक के दूसरे संस्करण 1900 में बकायदा महिलाओं को प्रवेश दिया गया। इस बार पेरिस में आयोजित इस संस्करण में 22 महिला खिलाड़ियों ने भाग लिया। 997 पुरूष खिलाड़ियों के बीच से इन 22 महिला खिलाड़ियों को ‘स्त्रियों वाले’ खेल में भाग लेने की अनुमति मिली। ये खेल थे- टेनिस, घुड़सवारी, नौकायन, क्राॅकेट और गोल्फ। ओलंपिक स्काॅलर रीता अमरल नून्स अपनी एक रिसर्च पेपर में बताती है कि 20 शताब्दी के प्रारम्भ में कुछ कुलीन महिलाओं ने घर और परिवार से समय निकालकर कुछ ‘शिष्ट’ और महिला माफिक खेलों को चुना। ज्यादा शारीरिक श्रम वाले खेल जैसे हाॅकी, क्रिकेट, तैराकी और एथलेटिक्स उनके लिये सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं थे। टीम आधारित ज्यादातर खेल पुरूषों के लिये थे, जबकि महिलायें व्यक्तिगत खेलों को ही भाग ले पाती थीं। महिलाओं की इन खेलों में स्वीकार्यता दो विश्वयुद्धों के बाद बढ़ी, जब महिलाएं घर चलाने के लिये बाहर े निकलने लगीं। और फैक्ट्री, कार्यालयों और कार्यशालाओं में कामकाज करने के लिये उन्हें अपनी वेशभूषा में बदलाव लाना पड़ा। उन्होंने कोर्सेट पहनना बंद कर दिया, ताकि वे छोटी स्कर्ट पहन सकें और बाल भी छोटे रखने लगी। इसके बाद से वे जिमनास्टिक और तैराकी जैसी प्रतियेागिताओं में आराम से भाग ले पायीं।

कुछ कुलीन महिलाओं ने घर और परिवार से समय निकालकर कुछ ‘शिष्ट’ और महिला माफिक खेलों को चुना। ज्यादा शारीरिक श्रम वाले खेल जैसे हाॅकी, क्रिकेट, तैराकी और एथलेटिक्स उनके लिये सामाजिक 

रूप से स्वीकार नहीं थे।

1976 तक आते आते महिलाएं इन खेलों में भाग तो ले रही थी पर उनकी भागीदारी 20 फीसदी से नीचे ही रही। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति पिछले तीन दशकों से खेलों में लैंगिक समानता के लिये प्रयासरत है। इसके लिये काफी सारे प्रावधान किये गये। साथ ही साथ अपनी समितियों में भी महिला भागीदारी को लेकर सतर्क हुआ। 1996 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने अपना ओलंपिक चार्टर अपडेट किया, जिसमें सभी खेलों और सभी स्तरों में महिलाओं के प्रवेश और साथ ही साथ अपनी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की संस्थाओं में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देना शामिल किया गया। इसी वर्ष अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने खेलों में महिलाओं पर पहली विश्व कांफ्रंेस आयोजित की। इसमें यह निश्चित किया गया कि 2000 तक निर्णय लेने वाली जगहों में कम से कम 10 फीसदी महिलायें हों और यह संख्या 2005 तक 20 फीसदी हो जानी चाहिये।

इन सब प्रावधानों के बावजूद भी इन खेलों में महिलाओं को समय समय पर भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ा। 2012 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने महिला मुक्केबाजी को शामिल करने के बाद इस बात पर बहस हो गयी कि पुरूष मुक्केबाज खिलाड़ियों से महिला खिलाड़ियों को अलग दिखने के लिये स्कर्ट पहननी चाहिये क्योंकि खेलते समय सभी मुक्केबाज हेडगियर पहने रहते हैं। इससे स्त्री और पुरूष खिलाड़ियों में अंतर किया जा सकेगा। महिलाओं के खेलों को समय का आवंटन में भी भेदभाव देखा जाता रहा। महिलाओं के मुकाबले चाहे वे फाइनल ही क्यों न हो, दोपहर में रखे जाते जबकि शाम के मुख्य समय स्लाॅट पुरूषों के मुकाबलों से भरे रहते। साथ ही यह भी देखा गया कि लैंगिक समानता के लिये मिक्स जेंडर टीम बनाये जाने का प्रावधान बनाया गया। लेकिन इन मामलों में भी अक्सर पुरूषों को फेवर मिल जाता है। उदाहरण के लिये स्कीट शूटिंग प्रतियोगिता 1992 तक एक ओपन स्पोर्ट था। चीनी खिलाड़ी हान सान ने इसमें स्वर्णपदक जीत लिया था। इसके बाद से स्कीट शूटिंग को जेंडर के हिसाब से अलग अलग कर दिया गया।

महिलाओं के खेलों को समय का आवंटन में भी भेदभाव देखा जाता रहा। महिलाओं के मुकाबले चाहे वे फाइनल ही क्यों न हो, दोपहर में रखे जाते जबकि शाम के मुख्य समय स्लाॅट पुरूषों के मुकाबलों से भरे रहते। 

अगर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति में महिलाओं की भागीदारी की बात करें, तो यह काफी संतोषजनक कहा जा सकता है। 2012 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति में 134 मानद सदस्यों सहित 134 सदस्य थे जिनमें 24 महिला सदस्य थीं। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के 141वें सेशन की मीटिंग मुंबई में अक्टूर, 2023 में आयोजि हुई। यहां समिति के आठ सदस्यों का चुनाव किया गया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति में महिला मेंबर की संख्या का प्रतिशत 41.1 तक पहुंच गया है। इन कई उपलब्धियों के बावजूद, अभी भी लैंगिक भेदभाव है। भले ही 2012 का ओलंपिक ऐसा पहला ओलंपिक था जिसमें लगभग हर देश ने कम से कम एक महिला खिलाड़ी को भेजा था, फिर भी कई मुस्लिम देश अभी भी महिला एथलीटों को इन खेलों में भाग लेने से रोका जाता है। यह जरूर है कि इस पेरिस ओलंपिक में आधी आबादी  को अपना हक मिलता हुआ दिखा है, पर यह कुछ देशों में महिलाओं को प्रोत्साहन मिलने के परिणामस्वरूप दिख रहा है। पर सच्चाई यही है कि अभी काफी सफर बाकी है।