सोमवार, 24 दिसंबर 2018

एकल महिलाओं का संघर्ष

single woman
वैसे तो हमारी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्थाएं यही हैं कि किसी भी स्त्री को एकल जीवन न जीना पड़े। फिर भी कुछ महिलाएं आजीवन अविवाहित रह जाती हैं, कुछ शादी ही नहीं करती हैं। कुछ महिलाएं शादी के बाद छोड़ दी जाती हैं तलाकशुदा हो जाती हैं। कुछ महिलाओं के पति शहरों में दूसरी शादी करने के बाद पहली पत्नी को यूं ही छोड़ देते हैं। जबकि कुछ महिलाएं पतियों के साथ तालमेल न बैठने के कारण स्वेच्छा से अलग हो जाती हैं। कुछ महिलाओं के पतियों की मृत्यु हो जाने और दूसरी शादी न होने के कारण अकेली रह जाती हैं। ये तमाम तरह की महिलाएं जो किसी न किसी कारण से एक परिवार के बगैर अपना जीवन व्यतीत करती हैं, उनकी गिनती एकल महिलाओं के रूप में होती है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 71.4 मिलियन एकल महिलाएं हैं, जो कुल महिला जनसंख्या के मुकाबले 12 फीसदी बैठता है। यह आंकड़ा 2001 की जनगणना के आंकड़ों से (51.2 मिलियन) 39 फीसदी अधिक है। यानी एकल महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

महिलाओं की सामाजिक स्थिति दोयम होने के कारण उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर महिलाएं परिवार से अलग हो जाती हैं, तो उन्हें और भी कई दूसरी समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है। इसका पता इस तथ्य से चलता है कि जहां साथी की मृत्यु और तलाक होने के बाद पुरुषों को दूसरा जीवनसाथी आसानी से मिला जाता है, वहीं महिलाएं इस मामले में भेदभाव का शिकार हो जाती हैं। आंकड़े कहते हैं कि जहां इस प्रकार के पुरुषों की संख्या देश में 1 करोड़ 39 लाख है, वहीं इस तरह की महिलाओं की संख्या लगभग साढ़े चार करोड़ है। इस कारण ऐसी महिलाएं दूसरों के भरोसे अपना जीवन व्यतीत बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता हैं।

वास्तव में पुरुष प्रधान समाज में एकल महिलाओं की स्थिति अधिक सोचनीय हो जाती है। अधिकांश एकल महिलाओं को शारीरिक हिंसा, शोषण, उपेक्षा, तिरस्कार, मुफ्त में कार्य करने के अतिरिक्त सबसे ज्यादा यौन शोषण का दंश झेलना पड़ता है। समाज में ऐसी महिलाओं पर लोगों की बुरी नजर होती है। कई बार ये महिलाएं अपवाह का भी शिकार हो जाती हैं। ऐसी महिलाओं के चरित्र पर न केवल उंगली उठाई जाती है, बल्कि उनकी इमेच एक चरित्रहीन स्त्री की भी बना दी जाती है। कहीं-कहीं ग्रामीण इलाकों में इन्हें डायन तक घोषित करके मौत के घाट उतार दिया जाता है। अगर शहरों की बात की जाए, तो उन्हें किराये पर मकान तक मिलना कठिन हो जाता है। कई जगह क्लब की सदस्यता तक नहीं दी जाती है। यात्रा के दौरान होटल और गेस्ट हाउस में ठहरने के लिए मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
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समाज में एकल महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलती है। कई बार शादी न करने के कारण महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति और घर में हिस्सा भी नहीं दिया जाता है। इसी तरह विधवा महिलाएं भी अपने ससुराल में पति की संपत्ति में अपने अधिकार के लिए बोल तक नहीं पाती हैं। ऐसे में प्रश्न है कि 71.4 मिलियन एकल महिलाओं का भविष्य कैसा होगा? उनकी समस्याओं का निदान क्या हो सकता है? क्या उनकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए केंद्र और राज्य सरकारें क्या कुछ कर रही हैं? केंद्र और राज्य सरकारें जो योजनाएं चला रही हैं, वे किस हद तक उनके लिए लाभप्रद हो रही हैं। इस समय एकल महिलाओं के अधिकारों के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि विभिन्न तरह की सामाजिक सुरक्षा वाली योजनाओं से एकल महिलाएं प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित नहीं हो पा रही हैं। सामाजिक सुरक्षा के नाम पर दी जाने वाली पेंशन (कहीं-कहीं सिर्फ 300 रुपये प्रति महीने) भी काफी कम होती हैं और यह भी प्रत्येक महीने नहीं मिल पाती है, बल्कि कई-कई महीनों बाद एक साथ मिलती है। और दूसरी बात कि इस तरह की सहायता में व्याप्त विसंगतियां और भ्रष्टाचार इन महिलाओं की समस्याओं को और बढ़ा देता है।

ऐसे समय में देश में एकल महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों में से एक संगठन नेशनल फोरम फॉर सिंगल वूमन’स राइट्स (एनएफएसडब्ल्यूआर) ने मांगों की एक लिस्ट बनाई है जिससे आने वाले बजट में इस संदर्भ में अलग से आवंटन किया जा सके। उनकी मांगों में एकल महिलाओं के लिए पेंशन और उनके देखभालकर्ताओं को सहायता मिल सकें। एनएफएसडब्ल्यूआर का मानना है कि एकल महिलाओं में समस्या केवल ज्यादा उम्र की महिलाओं के साथ ही नहीं है, बल्कि कई तरह की समस्याएं सभी उम्र की विधवाओं, अविवाहित, तलाकशुदा, पतियों से विलग महिलाएं एवं परित्यक्त महिलाओं में भी है। इस संगठन ने न केवल केंद्र सरकार बल्कि राज्य सरकारों से लगभग तीन हजार रुपये तक की मासिक पेंशन सभी प्रकार की एकल महिलाओं के लिए निश्चित करने की मांग की है। देश भर में इस संगठन की 1.3 लाख महिला सदस्य हैं।

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

देश का पहला महिला मॉल

केरल के कोझीकोड जिले के बीचोबीच स्थापित पांच मंजिला कुदुंबश्री महिला मॉल की विशेषता यह है कि यहां महिलाओं से संबंधित सभी प्रकार की वस्तुएं और सेवाएं उपलब्ध होंगी। और इनको उपलब्ध कराने वाली सभी महिला कर्मचारी ही होंगी। बताने वाली सबसे बड़ी खूबी यह भी है कि इतने बड़े उद्यम को खड़ा करने वाली भी सभी दस महिलाएं ही हैं। कुदुंबश्री महिला मॉल कोझीकोड कॉरपोरेशन कुदुंबश्री का प्रोजेक्ट था जिसे कोझीकोड डिस्ट्रिक कुदुंबश्री मिशन के सहयोग से पूरा किया गया है। कोझीकोड कॉरपोरेशन कुदुंबश्री के तहत उन दस महिलाओं के साहस को धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने इतनी बड़ी योजना के बारे न केवल सोचा, बल्कि उसे मूर्तरूप भी दिया। इस मॉल की परिकल्पना में 36 हजार स्क्वायर फीट की जगह पर 60 दुकानें हैं, जहां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम से कम 300 महिलाओं को रोजगार मिलेगा। इस मॉल की देखभाल और प्रशासन महिलाओं के हाथों में ही रहेगा। मॉल का सारा स्टॉफ भी महिला होंगी। इस मॉल में सुपर मॉर्केट, फूडकोर्ट, ड्राई क्लीनिंग, कार वॉशिंग, हैंडीक्रॉफ्ट, बेबी केयर, विभिन्न घरेलू सामान और बुक स्टॉल होंगे। इन सबके अतिरिक्त यहां भविष्य में कांफ्रेंस रूम, ट्रेनिंग सेंटर और कार पार्किंग की सुविधाएं देने की योजना भी हैं।
देश की महिलाओं के लिए यह एक उत्साहवर्द्धक खबर है, इसलिए नहीं कि देश में एक ऐसा मॉल है जहां महिलाओं से संबंधित सभी तरह का सामान और सेवाएं उपलब्ध होंगी और देरसबेर ऐसा मॉल हमारे आसपास भी खुल जाएगा, जहां हम जा सकेंगी। वास्तव में महिलाओं के लिए यह खबर इसलिए उत्साहवर्द्धक है कि यह एक ऐसा मॉल या उद्यम है जिसे न केवल महिलाओं ने मिलजुल कर स्थापित किया है, बल्कि उसे चलाने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं। यही बात इस खबर में निहित है, जिसे महिलाओं को समझना होगा। देश में महिलाएं अपना खुद का बिजनेस खोलने और चलाने के लिए ज्यादा उत्सुक नहीं रहती हैं। इसके बहुत से सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं। अगर ग्रामीण स्तर पर बात की जाए तो कृषि और पशुपालन के जरिए अपनी घरेलू आमदनी बढ़ाने तक सीमित हो जाता है। शहरों में महिला उद्यमियों की बात की जाए तो वे अपने घरों में कुछ सेवाएं देने का काम शुरू कर देती हैं। वास्तव में हमारी सामाजिक संरचना के चलते महिलाएं भी अपना बिजनेस खड़ा करने से अधिक एक निश्चित घंटों के लिए जॉब पर जाना अधिक पसंद करती हैं।ऐसी परिस्थतियों में बिजनेस करना उनके लिए अधिक जोखिम वाला हो जाता है। एक बिजनेस उनका अधिक समय और समर्पण मांगता है। हमारी सामाजिक संरचना में जहां महिलाओं को घरेलू जिम्मेदारी के लिए भी फुल टाइम जिम्मेदार माना जाता है, वहां महिलाएं इस तरह का जोखिम उठाने के लिए खुद को असमर्थ पाती हैं।
केरल महिला साक्षरता और महिला उद्यमियों की दृष्टि से संवर्द्धक राज्य है। पर देश के बहुत से इलाकों में महिलाएं अपना उद्यम लगाने के बारे में सोचती तक नहीं हैं। हां, उन्हें अपने कॅरियर की दृष्टि और आर्थिक परेशानी होने पर वे कहीं नौकरी कर पैसे कमाने के बारे में ज्यादा उत्सुक रहती हैं। जिस तरह महिला अपने कॅरियर के बारे में सोचें और उस पर अमल भी करें, यह बात भारतीय परिवेश में जुदा बात होती है, उसी तरह महिलाएं अपना उद्यम खोले और चलाएं यह भी समाज के लिए अनोखी बात होती है। सवाल है कि महिला उद्यमशीलता पर इतना जोर क्यों दिया जाना चाहिए? विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संथानों का मानना है कि यदि देश की श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए, तो देश की जीडीपी में ढाई प्रतिशत तक का उछाल देखा जा सकेगा। जीडीपी के अतिरिक्त महिलाओं की इस तरह भागीदारी सामाजिक चेतना का भी निर्माण करती है, जो देश को समग्र रूप से आगे ले जाने का काम करेगी। पिछले साल इन्हीं दिनों यानी नवंबर, 2017 को महिला उद्यमियों के बारे में देश में शीटवर्क डॉट कॉम ने एक शोध किया। इसके अनुसार महिलाएं उद्यमी हों, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके यहां महिला कितनी शिक्षित और जागरुक हैं। इसके अध्ययन से पता चलता है कि देश के दक्षिण के राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल,पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में सबसे अधिक लघु और मध्यम तरह की महिला उद्यमियों को देखा गया है। इसका कारण यहां महिला शिक्षा की उच्च दर और महिला सशक्तिकरण बताया गया।
इसी तरह नार्थ-ईस्ट के राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और नागालैंड में भी अन्य राज्यों की तुलना में महिला उद्यमी कम, पर पुरुषों के मुकाबले यहां महिला उद्यमी अधिक पाई गईं। इसी तरह इस शोध से यह भी पता लगाया कि लगभग 80 फीसदी महिला उद्यमियों ने अपना बिजनेस अपने पैसों से खकेरल के कोझीकोड जिले के बीचोबीच स्थापित पांच मंजिला कुदुंबश्री महिला मॉल की विशेषता यह है कि यहां महिलाओं से संबंधित सभी प्रकार की वस्तुएं और सेवाएं उपलब्ध होंगी। और इनको उपलब्ध कराने वाली सभी महिला कर्मचारी ही होंगी। बताने वाली सबसे बड़ी खूबी यह भी है कि इतने बड़े उद्यम को खड़ा करने वाली भी सभी दस महिलाएं ही हैं। कुदुंबश्री महिला मॉल कोझीकोड कॉरपोरेशन कुदुंबश्री का प्रोजेक्ट था जिसे कोझीकोड डिस्ट्रिक कुदुंबश्री मिशन के सहयोग से पूरा किया गया है। कोझीकोड कॉरपोरेशन कुदुंबश्री के तहत उन दस महिलाओं के साहस को धन्यवाद देना चाहिए जिन्होंने इतनी बड़ी योजना के बारे न केवल सोचा, बल्कि उसे मूर्तरूप भी दिया। इस मॉल की परिकल्पना में 36 हजार स्क्वायर फीट की जगह पर 60 दुकानें हैं, जहां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम से कम 300 महिलाओं को रोजगार मिलेगा। इस मॉल की देखभाल और प्रशासन महिलाओं के हाथों में ही रहेगा। मॉल का सारा स्टॉफ भी महिला होंगी। इस मॉल में सुपर मॉर्केट, फूडकोर्ट, ड्राई क्लीनिंग, कार वॉशिंग, हैंडीक्रॉफ्ट, बेबी केयर, विभिन्न घरेलू सामान और बुक स्टॉल होंगे। इन सबके अतिरिक्त यहां भविष्य में कांफ्रेंस रूम, ट्रेनिंग सेंटर और कार पार्किंग की सुविधाएं देने की योजना भी हैं।
देश की महिलाओं के लिए यह एक उत्साहवर्द्धक खबर है, इसलिए नहीं कि देश में एक ऐसा मॉल है जहां महिलाओं से संबंधित सभी तरह का सामान और सेवाएं उपलब्ध होंगी और देरसबेर ऐसा मॉल हमारे आसपास भी खुल जाएगा, जहां हम जा सकेंगी। वास्तव में महिलाओं के लिए यह खबर इसलिए उत्साहवर्द्धक है कि यह एक ऐसा मॉल या उद्यम है जिसे न केवल महिलाओं ने मिलजुल कर स्थापित किया है, बल्कि उसे चलाने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं। यही बात इस खबर में निहित है, जिसे महिलाओं को समझना होगा। देश में महिलाएं अपना खुद का बिजनेस खोलने और चलाने के लिए ज्यादा उत्सुक नहीं रहती हैं। इसके बहुत से सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं। अगर ग्रामीण स्तर पर बात की जाए तो कृषि और पशुपालन के जरिए अपनी घरेलू आमदनी बढ़ाने तक सीमित हो जाता है। शहरों में महिला उद्यमियों की बात की जाए तो वे अपने घरों में कुछ सेवाएं देने का काम शुरू कर देती हैं। वास्तव में हमारी सामाजिक संरचना के चलते महिलाएं भी अपना बिजनेस खड़ा करने से अधिक एक निश्चित घंटों के लिए जॉब पर जाना अधिक पसंद करती हैं।ऐसी परिस्थतियों में बिजनेस करना उनके लिए अधिक जोखिम वाला हो जाता है। एक बिजनेस उनका अधिक समय और समर्पण मांगता है। हमारी सामाजिक संरचना में जहां महिलाओं को घरेलू जिम्मेदारी के लिए भी फुल टाइम जिम्मेदार माना जाता है, वहां महिलाएं इस तरह का जोखिम उठाने के लिए खुद को असमर्थ पाती हैं।
केरल महिला साक्षरता और महिला उद्यमियों की दृष्टि से संवर्द्धक राज्य है। पर देश के बहुत से इलाकों में महिलाएं अपना उद्यम लगाने के बारे में सोचती तक नहीं हैं। हां, उन्हें अपने कॅरियर की दृष्टि और आर्थिक परेशानी होने पर वे कहीं नौकरी कर पैसे कमाने के बारे में ज्यादा उत्सुक रहती हैं। जिस तरह महिला अपने कॅरियर के बारे में सोचें और उस पर अमल भी करें, यह बात भारतीय परिवेश में जुदा बात होती है, उसी तरह महिलाएं अपना उद्यम खोले और चलाएं यह भी समाज के लिए अनोखी बात होती है। सवाल है कि महिला उद्यमशीलता पर इतना जोर क्यों दिया जाना चाहिए? विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संथानों का मानना है कि यदि देश की श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए, तो देश की जीडीपी में ढाई प्रतिशत तक का उछाल देखा जा सकेगा। जीडीपी के अतिरिक्त महिलाओं की इस तरह भागीदारी सामाजिक चेतना का भी निर्माण करती है, जो देश को समग्र रूप से आगे ले जाने का काम करेगी। पिछले साल इन्हीं दिनों यानी नवंबर, 2017 को महिला उद्यमियों के बारे में देश में शीटवर्क डॉट कॉम ने एक शोध किया। इसके अनुसार महिलाएं उद्यमी हों, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपके यहां महिला कितनी शिक्षित और जागरुक हैं। इसके अध्ययन से पता चलता है कि देश के दक्षिण के राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल,पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में सबसे अधिक लघु और मध्यम तरह की महिला उद्यमियों को देखा गया है। इसका कारण यहां महिला शिक्षा की उच्च दर और महिला सशक्तिकरण बताया गया।
इसी तरह नार्थ-ईस्ट के राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और नागालैंड में भी अन्य राज्यों की तुलना में महिला उद्यमी कम, पर पुरुषों के मुकाबले यहां महिला उद्यमी अधिक पाई गईं। इसी तरह इस शोध से यह भी पता लगाया कि लगभग 80 फीसदी महिला उद्यमियों ने अपना बिजनेस अपने पैसों से खड़ा किया या बहुत कम स्तर पर सरकारी स्कीमों, जो महिला उद्यमियों को अपना बिजनेस खड़ा करने में मदद देती हैं, की मदद से खड़ा किया। इस कारण शायद इन योजनाओं के बारे में बहुत कम जानकारी होना था। साथ ही इसमें यह भी बताया गया कि देश में गोवा, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, राजस्थान और पश्चिम बंगाल ऐसे राज्य हैं, जहां सबसे अधिक योजनाएं इस संदर्भ में बनाई गई। जिसका परिणाम आज हमें दिख भी रहा है। इसलिए कहना न होगा कि देश में महिला उद्यमियों की अधिक संख्या हम देखना चाहते हैं तो शिक्षा जागरुकता के साथ-साथ महिला उद्यमियों को प्रेरित करने वाली नीतियों की जरुरत हैं। तभी देश के हर कोने में महिला मॉल जैसी योजनाएं मूर्तरूप में दिखेगीं।


मंगलवार, 4 दिसंबर 2018

उड़ान भरने की बेकरारी

कोई भी वाहन चलाना वैसे ही महिलाओं के लिए जोखिम वाला काम माना जाता हैऐसे में हवा में कुलांचे भरने को क्या कहा जाए। इसे आश्चर्य ही कहा जाएगा कि देश में महिला पायलटों की संख्या विश्व में सबसे अधिक हो गई है। इस पर हमें गर्व होना चाहिए कि यह संख्या महिला पायलटों के वैश्विक औसत से भी अधिक है। अमेरिकाब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों में जहां हमारे देश की तुलना में उड्डयन अधिक विस्तृत हैवहां की तुलना में हमारी महिला पायलटों की अधिक संख्या होना एक दूसरी कहानी कहता है।

हाल ही में इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ विमिन एयरलाइन पायलट्स ने पायलटों के संदर्भ में अपने नवीन आंकड़ें जारी किए हैं। इससे पता चलता है कि देश में कुल 8,797 पायलट हैंइनमें से1,092 महिला पायलट हैं। इन महिला पायलटों में से 385 कैप्टन के पद पर हैं। विश्व में हमारी महिला पायलटों की हैसियत का अंदाजा आकड़ों के विश्लेषण से और अधिक चलता है। विश्व में कुल 1.5 लाख पायलट हैंजिनमें से 8,061 महिला पायलट हैं। पुरुषों की तुलना में महिला पायलटों की यह संख्या 12.4 फीसदी बैठती है जिसमें भारतीय महिला पायलटों का प्रतिशत 5.4 है। देश में महिला पायलटों की संख्या पिछले चार सालों में लगभग दोगुनी हो चुकी है। 2014 में घरेलू विमानन कंपनियों के 5,050 पायलटों में 586 महिला पायलट थीं। देश की एक बड़ी विमान कंपनी इंडिगो एयरलाइन में जहां 2013 में महिला पायलटों की संख्या सिर्फ 69 थीवह आज 300 पार कर गई है। कामोबेश आज स्पाइसजेटगो एयरवेज और जेट एयरवेज के महिला पायलटों की संख्या में कई गुना वृद्धि हो चुकी है। एयर इंडिया में भी पिछले चार-पांच वर्षों में 25 से 35 फीसदी के लगभग महिला पायलटों की संख्या में वृद्धि हुई है।
महिलाओं का किसी वाहन को चलाना देश-दुनिया में आश्चर्य का विषय रहा है। चाहे वह साइकिल होस्कूटर होबस होरेल होया फिर हवाई जहाज। आज मैट्रो सिटीज और छोटे शहरों में निजी वाहन चलाना आमतौर पर देखा जाता हैपर आज भी किसी सार्वजनिक वाहन चलाती एक स्त्री को देखना कइयों को सुखद आश्चर्य दे जाता है। समय के साथ महिलाओं का विभिन्न क्षेत्रों में जितना हस्ताक्षेप बढ़ा है, उसमें महिलाओं का किसी लड़ाकू विमान का उड़ाना भी आश्चर्य का विषय नहीं होना चाहिए। फिर भी महिला चालकों को शक की निगाह से देखा जाता है। उन पर उतना भरोसा नहीं किया जाता है, जितना पुरुष चालकों पर किया जाता है। प्रीति कुमारी पश्चिम रेलवे की पहली महिला ड्राइवर हैं। जब उन्हें 2010 में मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली शहरी रेल सेवा में ट्रेनें दौड़ाने की जिम्मेदारी दी गईतब उन्होंने एक बात कही कि मुझे अन्य चालकों से अधिक मेहनत करनी होगी, ताकि कभी कोई यह न कह सके कि वे महिला थीं, इसलिए गड़बड़ी हो गई। इसी तरह मुंबई की 45 वर्षीय मुमताज एमकाजी जिन्हें एशिया की पहली महिला डीजल इंजन चालक होने का गौरव प्राप्त हो चुका हैउन्हें एक रेलवे ड्राइवर बनने के लिए खुद अपने पिता का विरोध झेलना पड़ा। जबकि उनके पिता स्वयं एक वरिष्ठ रेलवे कर्मचारी थे। तो मुद्दा महिलाओं पर विश्वास करने का है।
इन सबके बावजूद सेना में महिलाएं को लड़ाकू विमान उड़ाने की अनुमति मिल गई है। इंडियन एयरफोर्स में इस वक्त करीब एक सैकड़ा महिला पायलट मौजूद हैं। यहां महिलाओं को हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ाने की ही अनुमति है। इसी तरह नेवी में भी पुरुष वर्चस्व तोड़कर महिलाएं नौसेना में टोही विमानों में तैनात हो रही हैं। पर वे जंग में नहीं जा सकेंगी। धीरे-धीरे ही सही महिलाएं ऐसे क्षेत्रों में अपनी भूमिका मजबूत करने की ओर बढ़ रही हैंजहां कभी पुरुषों का वर्चस्व माना जाता था। यह क्या कम है कि आज महिलाएं ऐसे सपने देखने के लिए स्वतंत्र हैं, जहां जाने के लिए कभी वे सपने भी नहीं देख सकती थीं।