शनिवार, 17 अगस्त 2024

...जब महिलाओं का ओलिंपिक में खेलना प्रतिबंधित था!

  

फ्रांसिस विद्वान पियरे
डी कुबर्टिन ने जब प्राचीन ओलंपिक खेलों को पुनर्गठित करने का इरादा बनाया, तब उनके जेहन में पुरूषों और महिलाओं की समान भागीदारी की कोई कल्पना नहीं थी। इन खेलों में महिलाओं की भागीदारी के बारे में कुबर्टिन की स्थिति दूसरे ओलंपिक संस्करण में बदलनी शुरू हुई।


ओलंपिक खेल अपनी पूरी धूम के साथ संपन्न हो गये हैं। खुशी की बात है कि इस बार आधी आबादी अपने पूरे हक के साथ खेली। इस खेल के महाकुंभ में महिलाओं ने अपनी भागीदारी का 50 फीसदी का आंकड़ा छू लिया है। इस आंकड़े तक पहुंचने में महिलाओं को कुल 124 वर्ष का समय लगा। जब 1900 में इन खेलों में शामिल होने की अनुमति मिली थी, तब कोई नहीं सोच सकता था कि महिलायें अपने घरेलू जिंदगी से निकलकर हर तरह के खेलों में न केवल भाग लेंगी, बल्कि अच्छा प्रदर्शन भी कर सकेंगी। इन वर्षों में 1900 से 2024 तक महिलाओं की संख्या 22 से 5000 तक पहुंचने की यह यात्रा बहुत ही अद्भुत रही है, इसे स्वयं महिलाओं को भी जानना चाहिये। 

प्राचीन ओलंपिक खेल जो ओलंपिया में 776 से 393 ई.पू. तक आयोजित होते थे, तब यह खेल का एक धार्मिक पवित्र आयोजन होता था। इतना पवित्र कि इसमें महिलाओं को भाग लेने की मनाही होती थी। बाद में जब आधुनिक ओलंपिक का आयोजन वैश्विक सहमति से 1896 में हुये, तब भी इसमें महिलाओं के खेलने को लेकर कोई बात नहीं सोची गई थी। भले ही इसे ‘मार्डन ओलंपिक’ कहा जा रहा था। फ्रांसिस विद्वान पियरे डी कुबर्टिन ने जब प्राचीन ओलंपिक खेलों को पुनर्गठित करने का इरादा बनाया, तब उनके जेहन में पुरूषों और महिलाओं की समान भागीदारी की कोई कल्पना नहीं थी। इन खेलों में महिलाओं की भागीदारी के बारे में कुबर्टिन की स्थिति दूसरे ओलंपिक संस्करण में बदलनी शुरू हुई। तब 1900 में पेरिस में आयोजित आधुनिक ओलंपिक खेलों के इस दूसरे संस्करण में महिलाओं ने ओलंपिक खेलों में भाग लिया। कुल 22 महिलाओं ने इसमें भागीदारी की थी।

1900 में पेरिस में आयोजित आधुनिक ओलंपिक खेलों के इस दूसरे संस्करण में महिलाओं ने ओलंपिक खेलों में भाग लिया। कुल 22 महिलाओं ने इसमें भागीदारी की थी।

कहा जाता है 1896 के ओलंपिक में एक ‘अनाम’ महिला ने मैराथन में भाग लेने की कोशिश की। जाहिर है वहां महिलाओं की मनाही थी। इसलिये उस महिला को पुरूषों के बाद दौड़ने की अनुमति दे दी गई और उसने 4.5 घंटे में मैराथन पूरी कर ली, ऐसा कहा जाता है। यह विडंबना ही है कि उस महिला का उल्लेख समकालीन विदेशी स्रोतों में तो मिल जाता है। लेकिन ग्रीक समाचार पत्रों में उसके नाम का खुलासा कभी नहीं किया गया। बाद में लोगों ने एक प्राचीन त्रासदी की ग्रीक देवी ‘मेलपोमीन’ का नाम उस मैराथन दौड़ने वाली अनाम महिला को दे दिया। आज मेलपोमीन नाम से उस महिला को संबोधित किया जाता है। ओलंपिक में भाग लेने वाली पहली महिला माना जाता है। तो ऐसे हुई इन खेलों में महिलाओं की एंट्री।

इस घटना के बाद आधुनिक ओलंपिक के दूसरे संस्करण 1900 में बकायदा महिलाओं को प्रवेश दिया गया। इस बार पेरिस में आयोजित इस संस्करण में 22 महिला खिलाड़ियों ने भाग लिया। 997 पुरूष खिलाड़ियों के बीच से इन 22 महिला खिलाड़ियों को ‘स्त्रियों वाले’ खेल में भाग लेने की अनुमति मिली। ये खेल थे- टेनिस, घुड़सवारी, नौकायन, क्राॅकेट और गोल्फ। ओलंपिक स्काॅलर रीता अमरल नून्स अपनी एक रिसर्च पेपर में बताती है कि 20 शताब्दी के प्रारम्भ में कुछ कुलीन महिलाओं ने घर और परिवार से समय निकालकर कुछ ‘शिष्ट’ और महिला माफिक खेलों को चुना। ज्यादा शारीरिक श्रम वाले खेल जैसे हाॅकी, क्रिकेट, तैराकी और एथलेटिक्स उनके लिये सामाजिक रूप से स्वीकार नहीं थे। टीम आधारित ज्यादातर खेल पुरूषों के लिये थे, जबकि महिलायें व्यक्तिगत खेलों को ही भाग ले पाती थीं। महिलाओं की इन खेलों में स्वीकार्यता दो विश्वयुद्धों के बाद बढ़ी, जब महिलाएं घर चलाने के लिये बाहर े निकलने लगीं। और फैक्ट्री, कार्यालयों और कार्यशालाओं में कामकाज करने के लिये उन्हें अपनी वेशभूषा में बदलाव लाना पड़ा। उन्होंने कोर्सेट पहनना बंद कर दिया, ताकि वे छोटी स्कर्ट पहन सकें और बाल भी छोटे रखने लगी। इसके बाद से वे जिमनास्टिक और तैराकी जैसी प्रतियेागिताओं में आराम से भाग ले पायीं।

कुछ कुलीन महिलाओं ने घर और परिवार से समय निकालकर कुछ ‘शिष्ट’ और महिला माफिक खेलों को चुना। ज्यादा शारीरिक श्रम वाले खेल जैसे हाॅकी, क्रिकेट, तैराकी और एथलेटिक्स उनके लिये सामाजिक 

रूप से स्वीकार नहीं थे।

1976 तक आते आते महिलाएं इन खेलों में भाग तो ले रही थी पर उनकी भागीदारी 20 फीसदी से नीचे ही रही। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति पिछले तीन दशकों से खेलों में लैंगिक समानता के लिये प्रयासरत है। इसके लिये काफी सारे प्रावधान किये गये। साथ ही साथ अपनी समितियों में भी महिला भागीदारी को लेकर सतर्क हुआ। 1996 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने अपना ओलंपिक चार्टर अपडेट किया, जिसमें सभी खेलों और सभी स्तरों में महिलाओं के प्रवेश और साथ ही साथ अपनी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की संस्थाओं में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देना शामिल किया गया। इसी वर्ष अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने खेलों में महिलाओं पर पहली विश्व कांफ्रंेस आयोजित की। इसमें यह निश्चित किया गया कि 2000 तक निर्णय लेने वाली जगहों में कम से कम 10 फीसदी महिलायें हों और यह संख्या 2005 तक 20 फीसदी हो जानी चाहिये।

इन सब प्रावधानों के बावजूद भी इन खेलों में महिलाओं को समय समय पर भेदभाव और असमानता का सामना करना पड़ा। 2012 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने महिला मुक्केबाजी को शामिल करने के बाद इस बात पर बहस हो गयी कि पुरूष मुक्केबाज खिलाड़ियों से महिला खिलाड़ियों को अलग दिखने के लिये स्कर्ट पहननी चाहिये क्योंकि खेलते समय सभी मुक्केबाज हेडगियर पहने रहते हैं। इससे स्त्री और पुरूष खिलाड़ियों में अंतर किया जा सकेगा। महिलाओं के खेलों को समय का आवंटन में भी भेदभाव देखा जाता रहा। महिलाओं के मुकाबले चाहे वे फाइनल ही क्यों न हो, दोपहर में रखे जाते जबकि शाम के मुख्य समय स्लाॅट पुरूषों के मुकाबलों से भरे रहते। साथ ही यह भी देखा गया कि लैंगिक समानता के लिये मिक्स जेंडर टीम बनाये जाने का प्रावधान बनाया गया। लेकिन इन मामलों में भी अक्सर पुरूषों को फेवर मिल जाता है। उदाहरण के लिये स्कीट शूटिंग प्रतियोगिता 1992 तक एक ओपन स्पोर्ट था। चीनी खिलाड़ी हान सान ने इसमें स्वर्णपदक जीत लिया था। इसके बाद से स्कीट शूटिंग को जेंडर के हिसाब से अलग अलग कर दिया गया।

महिलाओं के खेलों को समय का आवंटन में भी भेदभाव देखा जाता रहा। महिलाओं के मुकाबले चाहे वे फाइनल ही क्यों न हो, दोपहर में रखे जाते जबकि शाम के मुख्य समय स्लाॅट पुरूषों के मुकाबलों से भरे रहते। 

अगर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति में महिलाओं की भागीदारी की बात करें, तो यह काफी संतोषजनक कहा जा सकता है। 2012 में अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति में 134 मानद सदस्यों सहित 134 सदस्य थे जिनमें 24 महिला सदस्य थीं। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के 141वें सेशन की मीटिंग मुंबई में अक्टूर, 2023 में आयोजि हुई। यहां समिति के आठ सदस्यों का चुनाव किया गया। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति में महिला मेंबर की संख्या का प्रतिशत 41.1 तक पहुंच गया है। इन कई उपलब्धियों के बावजूद, अभी भी लैंगिक भेदभाव है। भले ही 2012 का ओलंपिक ऐसा पहला ओलंपिक था जिसमें लगभग हर देश ने कम से कम एक महिला खिलाड़ी को भेजा था, फिर भी कई मुस्लिम देश अभी भी महिला एथलीटों को इन खेलों में भाग लेने से रोका जाता है। यह जरूर है कि इस पेरिस ओलंपिक में आधी आबादी  को अपना हक मिलता हुआ दिखा है, पर यह कुछ देशों में महिलाओं को प्रोत्साहन मिलने के परिणामस्वरूप दिख रहा है। पर सच्चाई यही है कि अभी काफी सफर बाकी है। 

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