शनिवार, 24 जुलाई 2021

कितना होगा महिला सशक्तिकरण


हालिया मंत्रिपरिषद विस्तार में सात महिलाओं को स्थान मिलने की खबर काफी चर्चा बटोर रही हैं। इन सात महिलाओं के शामिल होने के बाद अब
78 सदस्यीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं की संख्या कुल जमा 11 हो गई है। इस तरह अब तक की गठित सरकारों में सर्वाधिक महिलाओं को इस मंत्रिपरिषद में प्रतिनिधित्व मिल गया है। मई, 2019 में जब एनडीए सरकार का गठन हुआ था, तब छह महिला नेत्रियों को मंत्रिपरिषद में जगह मिली थी। नवनियुक्त महिला मंत्रियों में दर्शना जरदोश, प्रतिमा भौमिक, शोभा कारंदलजे, भारती पवार, मीनाक्षी लेखी, अनुप्रिया पटेल और अन्नपूर्णा देवी हैं। इनमें अनुप्रिया पटेल ही ऐसी सांसद हैं, जो दूसरी बार मंत्री बनी है, जबकि शेष सभी पहली बार मंत्रिपरिषद में स्थान पाई हैं। इन सात महिला नेत्रियों के अलावा इस समय केंद्रीय मंत्रिपरिषद में निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी और साध्वी निरंजन ज्योति और रेणुका सिंह सरूता पहले से ही मौजूद हैं। कुल मिलाकर मंत्रिपरिषद में महिला प्रतिनिधित्व और इस मंत्रिपरिषद विस्तार को लेकर फिर बहस छिड़ गई कि यह विस्तार माकूल है। क्या इतना प्रतिनिधित्व पर्याप्त है? या मात्र महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिए ही महिला विस्तार दे किया गया है?

 

17वीं लोकसभा का चुनाव परिणाम इस मायनों में अनूठे थे कि इन चुनावों में महिला उम्मीदवारों ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिखाया था। इस बार 16वीं लोकसभा के मुकाबले इनकी संख्या बढ़कर 78 हो गई थी। सर्वाधिक महिला सांसद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से चुनकर आई थीं। इनकी संख्या उस समय 41 थी, जो इनके चुने गए कुल सांसदों यानी 303 में से 14 फीसदी को कवर करता था। 2019 की लोकसभा चुनाव के लिए 2014 के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी ने ज्यादा महिलाओं को टिकट बांटे थे, जो कुल बांटे गए टिकटों में से मात्र 12 फीसदी ही थे। फिर भी कमाल की बात यह रही कि दिए गए इन 55 टिकटों पर लड़ी महिलाओं का प्रदर्शन 74 फीसदी रहा यानी कुल 41 महिला उम्मीदवारों ने अपनी जीत दर्ज की। इसके बावजूद मंत्रिपरिषद में 06 महिला नेत्रियों को जगह दी गई। इनमें से तीन निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी और हरसिमरत कौर बादल को कैबिनेट में जगह दी गई थी।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली सरकार में महिला मंत्रियों की संख्या 11 थी, हालांकि यूपीए के दोनों कार्यकालों में अधिकतम 10 महिला सांसदों को ही मंत्री बनाया गया था। जबकि 2014 के कार्यकाल में भी 06 महिलाएं मंत्री पद तक पहुंची थी और इस 2019 के कार्यकाल में भी सिर्फ छह महिलाओं को मंत्री बनाया गया जबकि सर्वाधिक 78 महिलाएं चुनकर संसद तक पहुंची थीं। इस विरोधाभास का क्या कारण हो सकता है। अच्छे प्रदर्शन के बाद भी उचित प्रतिनिधित्व न दिए जाने पर सम्यक विकास की कल्पना कैसे की जा सकती है। इस मंत्रिपरिषद विस्तार के बाद केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने खुशी जाहिर करते हुए टृविटर के माध्यम से कहा कि भारत के इतिहास में सबसे कम उम्र की महिला मंत्रियों का महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व है... एक नए आत्मनिर्भर भारत की आकांक्षाएं।लेकिन सोचने वाली बात की एक आत्मनिर्भर भारत के लिए सत्ता में महिला भागीदारी की कितनी जरूरत है, इसे समझने में अभी कितना वक्त लगेगा?

प्हली बात तो यह है कि संसद में महिला प्रतिनिधित्व काफी कम है। इसीलिए महिला आरक्षण की बात की जाती है, जो सभी दलों की आपसी मौन सहमति से किसी ठंडे बस्ते में अब तक पड़ा हुआ है। इसके बरक्स राजनीतिक दलों को भी महिलाओं के वोट में अधिक दिलचस्पी रहती है पर उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देने में कोई रुचि नहीं होती। इसलिए संसद तक की महिलाओं की दौड़ बहुत ही चिंताजनक है। 2019 तक वैश्विक स्तर पर महिला सांसदों का औसत 24.3 फीसदी है। हमारे पड़ोसी बांग्लादेश संसद में महिला प्रतिनिधित्व 21 फीसदी है। यहां तक रवाण्डा जैसे देश में यह प्रतिनिधित्व आधे से अधिक यानी 61 फीसदी है। विकसित देश यूके और अमेरिका में महिला सांसद क्रमशः 32 और 24 फीसदी है। अगर इन सांसदों को अहम जिम्मेदारी यानी मंत्रिमंडल और मंत्रिपरिषद में स्थान देने की बात की जाए तो भी हमारे मुकाबले कई देश आगे हैं। जून, 2018 को जब स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज अपने मंत्रिमंडल के 17 में से 11 अहम पदों के लिए महिलाओं को चुना, तो यह नया रिकाॅर्ड बन गया, जिसकी उन दिनों काफी चर्चा हुई थी। यह महिला प्रतिनिधित्व 61 फीसदी होता है।

2017 संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर की सरकारों पर एक अध्ययन किया था। इस अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया कि उस दौरान किसी भी देश के मंत्रिमंडल में 52.9 फीसदी से ज्यादा महिलाएं नहीं थीं। सिर्फ छह देश ऐसे थे जहां मंत्रिमंडल में पचास फीसदी या उससे अधिक महिलाएं स्थान पा रही थीं। गौर करने वाली बात यह कि तेरह ऐसे देश भी थे जिनके मंत्रिमंडल में कोई महिला ही नहीं थी। महिलाएं अपनी योग्यता से संसद तक पहुंचने में अपनी जगह बना भी लेती है, तो उन्हें मंत्रिमंडल और मंत्रिपरिषद में स्थान मिलना इतना सहज नहीं होता है। हां, महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिए महिला प्रतिनिधित्व का जो दबाव पड़ता है, उससे कहीं अच्छा होता कि महिला शक्ति का उपयोग बेहतर तरीके से आगे बढ़कर किया जाए। महिलाओं की योग्यता में कोई शक नहीं है, जहां इस मंत्रिपरिषद बदलाव में 12 मंत्रियों से इस्तीफे लिए गए उसमें से केवल एक महिला मंत्री थी।  

रविवार, 11 जुलाई 2021

महिला वैज्ञानिक की काम पर फिर वापसी

 

पिछले दिनों एक ऐसी बुकलेट से रूबरू हुई जिसमें सौ महिलाओं की कहानियां दी गई हैं। ये इन महिलाओं की कहानियों से अधिक इस समाज की समस्या को इंगित करती हुई संबोधित है। ये सभी महिलाएं विज्ञान-टेक्नाॅलजी में रची-बसी उच्च शिक्षित महिलाएं हैं जिन्हें शादी और परिवार की जिम्मेदारियों के चलते अपना फलता-फूलता कैरियर
पर विराम लगाना पड़ा। कुछ सालों बाद जब उन्हें लगा कि बाहर निकलकर अपनी योग्यता के अनुसार कुछ काम मिल जाए, तो उन्हें निराशा ही हाथ लगी। ऐसे में किरण ने इनकी जिस तरह से मदद की उसकी सराहना की जानी लाजिमी है। इस तरह की पहल से और दूसरी स्ट्रीम में काम कर रही महिलाओं के हौसले बुलंद होने की उम्मीद भी बन गई है। किरण जैसी दूसरी तरह की पहल होनी चाहिए जिससे महिलाएं एक कैरियर विराम के बाद अपना कैरियर फिर से शुरू कर सके और देश के ऐसे वेल एजुकेटेड रिसोर्स बरबाद होने से बच जाए। शायद सरकार इस ओर सोच रही है पर उसे जल्द-जल्द से अपना दायरा बड़ा भी करना होगा।

इस बुकलेट में दी गई कहानियों को हंड्रेड सक्सेज स्टोरी आॅफ वूमेन साइंसटिस्ट स्कीम शीर्षक से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी ने एकत्र किया है। डीएसटी का नॉलेज इंवॉल्वमेंट इन रिसर्च एडवांसमेंट थ्रू नर्चरिंग (किरन) प्रभाग है जिसने बीच में अपना करियर छोड़ देने वाली महिला वैज्ञानिकों का सहयोग किया। महिला वैज्ञानिक योजना के तहत इन महिलाओं को विज्ञान की तरफ लौटने में सहायता की। पुस्तिका में 100 महिला वैज्ञानिक योजना प्रशिक्षुओं के बारे में बताया गया है। इसमें इन महिलाओं की जिंदगी की दास्तान है कि कैसे उन्होंने अपने जीवन की बाधाओं को पार कर कामयाबी हासिल की। महिला वैज्ञानिकों का सफर दिखाने के अलावा, किताब में उनकी शैक्षिक योग्यता, विशेषज्ञता, वर्तमान रोजगार की स्थिति, अनुभव और बौद्धिक सम्पदा अधिकार में तकनीकी योग्यता के बारे में बताया गया है, जिसे इन महिला वैज्ञानिकों ने प्रशिक्षण पूरा करने के बाद हासिल किया है।

किताब में दी गई महिला वैज्ञानिकों के बारे में जानना अधिक रोचक है। किस तरह यह प्रशिक्षण महिलाओं के जीवन में परिवर्तन ला रहा है। केमिकल साइंस से पीएचडी डाॅ. अंजली जेटली ने इस प्रशिक्षण को प्राप्त कर खुद की अपनी फर्म खोल ली। अंजली ने अपनी परिवारिक  जिम्मेदारियों के चलते कैरियर में विराम ले लिया था। उन्होंने अपनी मैचमेट के साथ ही प्रशिक्षण पूरा होने के बाद फर्म खोल ली। उन्हें अपना खुद का व्यवसाय करने का जो उत्साह था वह उन्हें इस मुकाम तक लेकर आया। इसी तरह की कहानी डॉअंजली सिंह की है। उन्होंने केमेस्ट्री से पीएचडी करने के बाद अपना कैरियर बनाने की सोची, लेकिन एक बच्ची की मां बन जाने के बाद वे इस ओर अधिक नहीं सोच सकीं। डब्ल्यूओएस की ट्रेनिंग के बाद वे आज गुरूग्राम में एक प्रसिद्ध लाॅ फर्म में कंस्ल्टेंट के तौर काम कर रही हैं। लाइफ  साइंस से एमएससी अर्चना डोभाल ने भी इस ट्रेंनिंग को पूरा करने के बाद एक इंट्रेप्रिनेयोर बनकर उभरी हैं। उन्होंने अपनी एक आइपी फर्म खोल ली है। अपनी फर्म के जरिये वे सलाह देने के साथ-साथ विद्यार्थियों के लिए वर्कशाप और ट्रेनिंग भी देती हैं।

इस बुकलेट में अर्चना राघवेंद्र की कहानी काफी साहसिक और मार्मिक है। अर्चना इलेक्ट्रानिक्स से एमटेक हैं। शादी के बाद ने अपना अध्यापन का कैरियर छोड़कर पति के साथ कनाडा में बस गईं। सब कुछ अच्छा बीतने के साथ जब दुखों का पहाड़ उन पर टूटा तो वे वापस अपने देश लौटीं। अपने दो छोटे बच्चों, पति और सास-ससुर की देखभाल के लिए उन्हें फिर से आर्थिक रूप से मजबूत होना था। तब इस प्रशिक्षण ने उनकी मदद की। इस प्रशिक्षण के दौरान उन्हें जो स्टाइपेन मिला उन्हें उससे भी मदद मिली। ऐसी बहुत सी महिलाओं के बारे में इस किताब में दिया गया है।

कामोवेश देश में हर दूसरे घर की महिलाओं की कहानी ऐसी मिल जायेगी। कैरियर में ब्रेक किसी के लिए भी बीच रास्ते से पीछे लौटना होता है। चाहे यह परिवार की जिम्मेदारियों के चलते हो या किसी दुर्घटनावश। इसका सबसे ज्यादा भुक्तभोगी महिलाएं ही बनती हैं। सीएमआइइ की माने तो यह समस्या पूरे देश में है। वास्तव में यह समस्या मिड ऐज कैरियर में आती है। परिवारिक दबावों और सैलरी में अंतर के कारण 2.4 मिलियन महिलाओं ने 2017 में अपनी नौकरी छोड़ दी थी। कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय शोध और रिसर्च इस बात पर जोर देते है कि जीडीपी में बढोतरी के लिए महिलाओं को अधिक से अधिक रोजगार देना होगा। वल्र्ड बैंक ने एनएसएसओ के सहयोग से देश में एक सर्वे के दौरान पाया कि 2004-2012 के दौरान 20 मिलियन महिलाओ ने अपनी नौकरी छोड़ दी जिनमें से 65 से 75 फीसदी महिलाएं वापस अपनी नौकरी पर कभी नहीं लौटी। आखिर क्यों, क्योंकि उन्हें वह माहौल नहीं मिला जिनकी वे हकदार थीं। आखिरकार विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के किरण प्रभाग ने यह कदम उठाया है, तो यह महिलाओं के लिए आशा की किरण बन गई है।