मंगलवार, 14 मई 2024

आम को खास बनाते हमारे नेता

 


रोटियां सेंकती
, फसल काटती, बोरा ढोते, चाय बनाते हमारे नेत्रियां-नेता आम जनों के बीच अपनी उम्मीदवारी पक्की करते नजर आ रहे हैं। अब वे इसमें कितना सफल होंगे ये तो आने वाला वक्त ही बता सकता है। इन सबके बीच आमजन खुद को खास समझने लगा है।
 

पूरा देश चुनावी मोड में है। गली-नुक्कड़ों में चुनावी चर्चा सुनी और सुनाई जा रही है। नेताओं (इसमें महिला नेत्री भी शामिल हैं) की सक्रीयता देखने योग्य है। इस 35 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान में नेताओं का खाना-पीना, नींद और दोपहरिया वाला आराम सब हराम हो चला है। नेताजन अपने क्षेत्रों में सभी मतदाताओं से व्यक्तिगततौर पर मिल लेना चाह रहे हैं। दरवाजों पर दस्तक दे रहे हैं। प्रणाम कर रहे हैं। गुजारिश कर रहे हैं। किये गये कामों का हवाला दे रहे हैं। नये उम्मीदवार अपनी दावेदारी जतला रहे हैं। कुल मिलाकर कर वे सभी तरह के जतन कर रहे हैं, जिनके एवज में वे अपने वोटरों से वोट निकलवा सकें।

इन सबके बीच आम चुनावों की एक विशेषता और भी है, वह है आमजन के बीच आम आदमी बनकर दिखाना।इस दिखानेके दिखावे के बीच कई बार अजीब स्थितियां भी बन जाती हैं। आखिर आम आदमी बनना हर किसी के वश की बात तो है नहीं। आम लोगों से जनसंपर्क के बीच नेताजन अपने कार्यकलापों से जो दिखाते हैं, उससे जनता के बीच एक अच्छा संदेश जाता है। इसके लिये पीआर एजेंसियों तक का सहारा लेना पड़ता है। क्योंकि सोशल मीडिया के दौर में इमेंज बिल्डिंग इतनी आसान चीज नहीं रह गई है। आपकी हर छोटी-बड़ी गतिविधि कैमरे की निगाहों में आ जा रही है। इन सबके बीच उम्मीदवारों के उपर जो सबसे अधिक दबाव की बात होती है वह है आम लोगों की तरह दिखना और आम लोगों को सहज महसूस कराना। आम लोगों के बीच से आया हुआ दिखाने के लिए कुछ प्रतीकात्मक तस्वीरों को बनाया और बिगाड़ा जाता है। आम लोगों के बीच से आया हुआ बताने का दबाव नेताओं पर सर्वाधिक होता है।


गांव-गांव गली-गली आम लोगों से संपर्क में महिला उम्मीदवार जब आम महिलाओं को गले लगा
, बड़ी-बूढ़ी महिलाओं को प्रणाम करके, उनके बच्चों को गोद में उठाकर पुच्चकारती हैं, तो उसकी तस्वीरें जनमानस में अच्छे से बैठती हैं। सबसे अच्छी बात कि इस दौरान देश में महिलाओं के लिये मान्य वेशभूषा साड़ी का बहुतायत में प्रयोग करती हैं। साड़ी भारतीय महिला नेत्रियों के लिये वैसा ही परिधान बन गया है जैसा पुरुष नेताओं के लिये कुर्ता-पैजामा। खासकर महिला नेत्री से यह सामाजिक उम्मीद आज भी है कि वे देश संभालने वाले काम भी करें, पर दूसरी तरफ वे घर संभालने में भी पूरी तरह दक्ष हों। इसी दबाव से महिलानेत्री गुजरती भी हैं, इस इमेज को बनाने के लिए काम भी करती हैं। आखिर अच्छा घर संभालने वाली ही अच्छा देश संभालने वाली नेता हो सकती है। इसीलिये चुनाव के दौरान कुछ चारित्रिक लांछन लगाने वाले आरोप भी उछाले जाते हैं। देश भर में अपने-अपने लोकसभा की खाक छानते नेताजन ऐसी तस्वीरों को जनमानस में बैठाना चाहते हैं।

एक समय जब रायबरेली में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सिर पर पल्लू लेकर जनसभाओं को संबोधित करती थी, तो आम महिलाओं में यह चर्चा का विषय होता था। दरअसल इंदिरा गांधी रायबरेली को अपना ससुराल मानती थीं। कहते हैं कि 1967 से 1984 तक जनपद आगमन पर उनके सिर से पल्लू कभी नहीं हटा। आज भी उस दौर के लोग इस बात पर चर्चा करते हैं। जब उनकी विदेश से आई बहू सोनिया गांधी ने इसी इमेज को फाॅलो किया तो इसके पीछे देश की बहू के सिर पर पल्लू होना चाहिये वाली ठसक काम कर रही थी। कमाल की बात है कि जब उनकी नातिन प्रियंका गांधी वाड्रा ने साड़ी पहन कर अपनी मां सोनिया गांधी के लिये वोट मांगने आयीं, तो मीडिया में उनकी चर्चा दादी इंदिरा की तरह साड़ी पहनने की ज्यादा होती थी। और इसी बात का प्रभाव आज भी आम जनपद निवासियों पर है।

 

हाल ही मथुरा से भाजपा उम्मीदवार फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी की फसल काटती तस्वीरें जब सोशल मीडिया पर वायरल हुईं लोगों की प्रतिक्रिया गौर करने लायक थी। चूंकि एक सेलेब्रिटी होने के कारण भी लोगों की निगाहें और खासतौर पर मीडिया की निगाहें ऐसी चीजों पर जरूर रहती हैं, तो परिणामस्वरूप बात दूर तक जाती नजर आई। इसी वाद-विवाद का फायदा उठाकर इसी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार मुकेश दंगर ने कहा भी कि मैं इस ब्रजभूमि की मिट्टी का बेटा हूं और हेमा जी प्रवासी हैं... मैं ब्रजवासी हूं। यानी यहां दोनों उम्मीदवार खुद को जनता के बीच का बता रहे हैं।

इसी तरह 14 अप्रैल को एक दस-बारह सेकेंड का वीडिया कांग्रेस बीजेपी में शामिल हुये नवीन जिंदल का वायरल हुआ जिसमें वे अनाज से भरे बोरे उठाकर लोड कर रहे हैं। जिंदल स्टील एंड पाॅवर लिमिटेड के चेयरमैन और 300 करोड़ से अधिक की संपत्ति के मालिक का यूं बोरा उठाकर लोड करना लोगों को अंचभित कर गया। नवीन जिंदल कुरूक्षेत्र, हरियाणा से भाजपा के उम्मीदवार हैं। इसी तरह गाजियाबाद से कांग्रेस की तेज-तर्रार उम्मीदवार डाॅली शर्मा कुछ महिलाओं के साथ मिट्टी के चूल्हें पर रोटियां सेंकेती नजर आईं। 11

अप्रैल को जारी अपने एक वीडियो में वे बता रही हैं कि जीतन के बाद सारा काम आवे है मुझे। यानी उनके कहने का अर्थ है कि राजनीति संबंधी कामकाज के साथ वे घरेलू कामों को भी उतनी ही दक्षता से करती हैं। यानी वे एक आम घरेलू महिला ही हैं।

चाय पर चर्चा’ भारतीय जनता पार्टी का सबसे लोकप्रिय प्रतीकात्मक कार्य है। इसलिए उनके बहुत से उम्मीदवार चाय बनाते, चाय परोसते, अदरख कूटते, चाय पीते आदि लोकप्रिय काम करते नजर आये हैं। गोरखपुर से सांसद लोकप्रिय अभिनेता रवि किसन हो, या मंडी, हिमाचल से उम्मीदवार अभिनेत्री कंगना रनावत हो या फिर गोड्डा, झारखंड से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे हो, सभी चाय पर चर्चा करते हुये नजर आये। हम सभी जानते है कि चाय एक चलता-फिरता आम पेय है। चाय के बहाने बड़ी से बड़ी चर्चाएं हो जाती है। गली-नुक्कड़ों पर लगने वाले चाय की टपरी और वहां होने वाली राजनीतिक चर्चाओं को अहमियत देने वाला यह कलात्मक जरिया है। लोगों को यह खूब आकर्षित करता है। आम लोगों से जुड़ने का यह बखूबी तरीका भी है कि आम लोगों का पेय चायखास लोग भी पीते हैं।

अभी चुनाव के जितने चरण बाकी हैं, यह देखना बहुत ही दिलचस्प होगा कि हमारे नेता आमजन से जुड़ने के लिए क्या-क्या जतन करते हैं। इन सबके बीच आम लोग खुद को खास समझने का लुफ्त तो ले ही सकते हैं।

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