मंगलवार, 30 जुलाई 2019

...जब घर से कोई लड़की भागती है!


घर से भागी हुई साक्षी मिश्रा देशवासियों के लिए एकराष्ट्रीयसमस्या बन गई हैं। इसलिए टीवी चैनलवालों ने भी उन्हें लपक लिया। लेकिन टीवी चैनलों में इस बहस-मुहाबसे के बीच मुंबई में एक लड़की की हत्या उसके पिता ने ही कर दी, क्योंकि उसने उनकी मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी। ये छोटी बात है कि 20 साल की मीनाक्षी उस समय गर्भवती भी थी। इसे ऑनर किलिंग कहा जाता है। शायद ऐसे ही किसी ऑनर किलिंग से बचने के लिए साक्षी मिश्रा ने एक वीडियो बनाकर सार्वजनिक कर दिया। कहा कि उसकी और उसके पति अजितेश की जान को खतरा है। चूंकि अजितेश जाति से दलित हैं जिससे शादी करने के कारण उनके रसूखदार विधायक पिता और भाई पसंद नहीं कर रहे हैं। इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि उनकी हत्या हो सकती है। इस वीडियो के मार्फत ही सभी को पता चला कि बरेली के विधायक राजेश मिश्रा की बेटी ने अपने अधिक उम्र के एक दलित युवक से भागकर शादी कर ली है। सत्ताधारी पार्टी से विधायक होने के कारण यह मामला बहुत कुछ राजनीतिक नफा-नुकसान के दायरे में भी आ गया। तब विधायक खुद सामने आकर बेटी के बालिग होने और अपने फैसले स्वयं लेने के लिए स्वतंत्र होने की बात उन्होंने कही। जबकि मीडिया के सामने आकर साक्षी ने घर की बंदिशों और शादी के बाद अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करके उन्हें धमकाने और जान से मारने का खतरा होने का आरोप लगाया। फिलहाल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साक्षी और अजितेश को पुलिस सुरक्षा उपलब्ध कराने के आदेश दिए हैं।
पर सवाल है कि साक्षी-अजितेश या उन जैसे तमाम जोड़ों को सुरक्षा की जरूरत ही क्यों पड़ती है? संविधान ने देश के हर नागरिक को अपनी इच्छानुसार जाति, धर्म, भाषा, समुदाय आदि के बंधनों के बिना अपना साथी चुनने का हक दिया है। फिर क्या कारण है संविधान के रक्षक ही इन जोड़ों को पूरी सुरक्षा उपलब्ध नहीं करा पाते हैं? कई बार पुलिस या प्रशासन अमला ही इन जोड़ों का दुश्मन बन जाता है। यह समाज का कौन सा चेहरा है, जब संविधान से लिए गए अधिकार सामाजिक रूप से गलत हो जाते हैं? क्या कारण है कि मां-पिता अपने बच्चों को अपनी किसीप्रापर्टीकी तरह व्यवहार करते हैं? एक बड़ा सवाल कि हमारी सामाजिक संरचना संविधान और कानून के अनुसार काम क्यों नहीं कर पाती है?
हमारे समाज में शादी-ब्याह दो लोगों केबीच का मामला नहीं माना जाता है। बल्कि यह दो परिवारों के बीच का मामला होता है। इन शादियों में परिवार अपने रसूख, प्रतिष्ठा, व्यक्तिगत लाभ, व्यापारिक नफा-नुकसान आदि देखकर (तौलकर) तय करता है। जब शादियां दो लोगों के बीच का मामला नहीं होता है, इसलिए जो इसे व्यक्तिगत मामला बनाते हैं, समाज उन्हें बख्शने के मूड में नहीं रहता है। आंकड़ों के अनुसार देश में 05 फीसदी ही अन्तर्जातीय और अंतर धार्मिक विवाह संपन्न होते हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनामिक रिसर्च के 2014 के एक शोध में पाया गया है कि आज भी देश में 95 फीसदी शादियां परंपरागत तरीके से अपनी जाति और समुदाय में संपन्न होती हैं।
ये 05 फीसदी अन्तर्जातीय और अंतर धार्मिक शादियों की यह संख्या बताती है कि देश में जाति और धर्म के बंधन कितने मजबूत हैं। इसलिए जब भी कोई इन बंधनों को तोड़ने की कोशिश करता है, तो ये जोड़े हिंसा का शिकार हो जाते हैं। इस हिंसा में सबसे ज्यादा इन जोड़ों के परिवार वाले ही बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। देखा गया है कि इस अपराध में उन्हें किसी प्रकार की ग्लानि या दुख का एहसास नहीं होता है। उनके आसपास के लोग इन हत्याओं को एकप्रशस्तिसे जोड़ देते हैं। इससे इस अपराध के बावजूद उनमें विजयश्री का अहसास भर जाता है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की समाजशास्त्र की प्रोफेसर श्वेता प्रसाद कहती हैं कि समाज बहुत ही धीमी गति से बढ़ने वाली चीज है। प्रेम विवाह जैसे मामलों में जहां जाति और धर्म आड़े आता है, वहां लोगों की भावनाएं ज्यादा काम करती हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे यहां सभी शादियां अपने धर्म और जाति में ही हो रही है। समाज में अब भी यह बात है कि फारवर्ड कास्ट आपस में शादी कर ले, तो ज्यादा दिक्कत नहीं होती है, वही दलित से करने पर दिक्कत आती है। साक्षी मिश्रा ने दलित के अलावा किसी और जाति में शादी की होती, तो शायद इतनी दिक्कत नहीं आती।
सामाजिक रूप से जाति और धर्म में कैद भारतीय समाज कई मामलों में आज सहिष्णु या लिबरल हुआ है। भूमंडलीयकरण, तकनीकि प्रगति और कम्यूनिकेशन के बढ़ते दायरे से समाज में खुलापन आया है। पर ये खुलापन सामाजिक रूप से जाति और धर्म की खाई भर सकने में सक्षम नहीं हुआ है। देखने में यह भी लगता है कि भूमंडलीयकरण के कारण लड़कियों को अधिक छूट मिल गई है, पर वास्विकता तब समझ में आती है जब बेटी या बेटा अपनी पसंद से शादी करने की इजाजत घरवालों से मांगते हैं। इस मामले में बेटियां अधिक दुर्भाग्यशाली सिद्ध होती हैं, क्योंकि बेटी को घर की इज्जत से जोड़कर देखा जाता है। प्रख्यात साहित्कार मैत्रेयी पुष्पा कहती हैं कि जो शादियां अपनी मर्जी होती हैं, उनमें घरवालों का अहं आडे आता है। यह अहम ही बढ़कर अहंकार का रूप धारण कर लेता है और ऑनर किलिंग का कारण बनता है। बेटियां घर-परिवार के लिए आन-बान-शान मानी जाती हैं। हम बेटियों की पीठ पर इज्जत का झंडा गाड़ देते हैं और चाहते हैं कि यह हमेशा लहराता रहे। 
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के 2015 के आंकड़े बताते हैं कि देश भर में इस वर्ष ऑनर किलिंग के 251 मामले हुए थे।  साक्षी मिश्रा पर जब पूरा समाज उद्वेलित था, तब भी मीडिया में कई ऑनर किलिंग की घटनाएं रिपोर्ट की गईं। जो कई मायनों में वीभत्स थीं, जिनकी उतनी चर्चा नहीं हो सकी। इस तरह की घटनाएं रुकेगी, यह अभी हमारे लिए दूर की कौड़ी है। क्योंकि कमी हमारे अंदर है, इस समाज के अंदर है और हमें इसे खुद ही दूर करना होगा। जैसा कि प्रो. श्वेता प्रसाद कहती हैं कि हमारी वैल्यूज जितनी अधिक सशक्त होगी हम उतने अच्छे समाज का निर्माण करेगें और कानूनों का पालन करेगें। और ये सब चीजें आने में काफी समय लगेगा। वास्तव में समाज की सोच परिवर्तित होने की जरूरत है। हमारे समाज की सोच परिवर्तित होने में अभी काफी समय लगेगा।

सोमवार, 15 जुलाई 2019

नुसरत और जायरा को सीख देने वाले ये कौन लोग ?

कोई एक महीना पहले नई-नवेली सांसद बनी नुसरत जहां और मिमि चक्रवर्ती ट्रोल की गई, क्योंकि उन्होंने संसद भवन में अपने पहले दिन की सेल्फी सोशल मीडिया में शेयर कर दी। इस सेल्फी लोगों का गुस्सा सोशल मीडिया पर निकलने लगा। नुसरत और मिमि को संसदीय मर्यादा, उनके कपड़े पहनने के ढंग और उनके धर्म पर सवाल उठाया गया। उनके वोटरों से भी प्रश्न खड़े किये गए, जिन्होंने उन्हें संसद तक चुन कर भेजा था। इस घटना के ठीक एक महीने बाद नुसरत जहां संसद सत्र के दौरान 25 जून को बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र और चूड़ा की सजधज के साथ लोकसभा पहुंचीं और उन्होंने लोकसभा सदस्य के तौर पर शपथ ली। शपथ के दौरान उन्होंने अस्सलाम ओलेकुम, जय हिंद, वंदे मातरम, जय बांग्ला का न केवल उद्घोष किया, बल्कि लोकसभा अध्यक्ष के पैर छूकर उनका आशीर्वाद भी लिया। सांसद नुसरत जहां फिर ट्रोल की गईं। उन पर देवबंद का तथाकथित फतवा भी जारी कर दिया गया (हालांकि बाद में देवबंद ने ऐसे किसी फतवे से इंकार कर दिया)। एक जैन युवक निखिल जैन से शादी करने, सिंदूर लगाने,मंगलसूत्र पहनने और वंदे मातरम बोलने के कारण आपत्ति जताई गई। इन आपत्तियों का सार यह था कि नुसरत जहां ने इस्लाम का अपमान किया है। वहीं दूसरी तरफ सहिष्णु लोगों ने नुसरत जहां के इस रूप का स्वागत किया। इन सबके बीच नुसरत ने अपने विचार ट्वीट के माध्यम से रखे, उन्होंने कहा किकिसी भी धर्म के कट्टरपंथियों के बयानों पर ध्यान देना या प्रतिक्रिया देना केवल नफरत और हिंसा को बढ़ावा देना है। इतिहास इसका गवाह रहा है। मैं समग्र भारत का प्रतिनिधित्व करती हूं, जाति, पंथ और मजहब के दायरे से परे है। मैं अब भी मुसलमान हूं और किसी को नहीं बताना चाहिए कि मैं क्या पहनूंमजहब कपड़े से परे होता है।
पेशे से अभिनेत्री नुसरत जहां वसीरहाट, पश्चिम बंगाल से सांसद हैं। वे उन 17 महिला सांसदों में शामिल हैं, जो इस बार तृणमूल कांग्रेस से लोकसभा पहुंची हैं। 29 साल की इस युवा सांसद ने 3.5 लाख से ज्यादा वोटों से वसीरहाट सीट पर जीत दर्ज की थी। इन सबके बावजूद एक महिला सांसद नुसरत जहां की यह सब उपलब्धियां कम पड़ गई, जब उन्होंने अपनी मर्जी से कपड़े चुनें और गैर धर्म के युवक से शादी कर ली। क्यों समाज और धर्म के ठेकेदार अपने-अपने हिसाब से या कहे तो हितों के हिसाब से उन्हें नसीहत और समझाइस देना अपना हक समझते हैं? क्या नुसरत के पास अपनी कोई सोच, समझ, विश्वास नहीं है? उन्हें कुछ लोग क्यों एक बने-बनाए ढांचे में फिट करना चाहते हैं? 2017 में दुर्गापूजा के दौरान धुनुची नृत्य का अपना एक वीडियो शेयर करने के बाद भी उन पर कई आपत्तिजनक टिप्पणियां की गई थीं। अगर वे कहती हैं किमैं समग्र भारत का प्रतिनिधित्व करती हूं, जाति, पंथ और मजहब के दायरे से परे हैं’, तो कुछ लोगों को यह मानने में हर्ज क्यों है?

इसी दौरान दंगल गर्ल के नाम से मशहूर फिल्म कलाकार जायरा वसीम का प्रकरण भी कुछ इसी तरह का है। सीक्रेट सुपर स्टार जैसी मशहूर और प्रेरणादायक फिल्म में काम करने वाली इस 19 वर्षीय कलाकार ने सोशल साइट फेसबुक और इंस्टाग्राम में बॉलीवुड को अलविदा करने की घोषणा कर दी। जायरा ने इसका कारण धार्मिक बताया। उन्होंने लिखा किआज जब मैंने बॉलीवुड में पांच साल पूरे कर लिए हैं, तब मैं यह बात स्वीकार करना चाहती हूं कि मैं इस पहचान से यानी अपने काम को लेकर खुश नहीं हूं लंबे समय से मैं ये महसूस कर रही हूं कि मैंने कुछ और बनने के लिए संघर्ष किया हैमैंने ऐसे माहौल में काम करना जारी रखा जिसने लगातार मेरे ईमान में दलअंदाजी की मेरे धर्म के साथ मेरा रिश्ता खतरे में आ गयामैंने अपने जीवन से सारी बरकतें खो दींजायरा की इस पूरी पोस्ट का लब्बोलुआब यही था कि वे वर्तमान में अपने काम से खुश नहीं हैं, और आध्यात्मिक शांति के लिए इस इंडस्ट्री को बॉय कहना चाहती हैं।
जायरा की ऐसी घोषणा से नुसरत जहां के मामले की तरह सोशल मीडिया तुरंत ही दो खेमों में बंट गया। कुछ लोगों ने जायरा की इच्छा को सम्मान दिया और कुछ ने उसे एहसान फरामोश के साथ-साथ जायरा के इस निर्णय को कट्टरपंथियों का दबाव घोषित कर दिया। इस मामले में बड़े से बड़े लोगों के वक्तव्य सोशल मीडिया में आ गए। एक आश्चर्यजनक टिप्पणी अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज की आई। उन्होंने ट्वीट किया किधार्मिक आस्था के लिए फिल्म अभिनेत्री जायरा द्वारा फिल्मों से किनारा करना प्रसंशनीय है, हिंदू अभिनेत्रियों को भी जायरा से प्रेरणा लेना चाहिए।यहां यह देखा जाना चाहिए कि स्वामी चक्रपाणि ने यह सीख हिन्दू पुरुष अभिनेताओं को नहीं दी है। यही हाल मुस्लिम खास और आम लोगों का था, जो जायरा के इस फैसले को इसलिए उचित करार दे रहे थे कि लड़कियों को फिल्मों में काम नहीं करना चाहिए। इसी क्रम में सपा सांसद एसटी हसन ने एक टीवी साक्षात्कार में फिल्मों में काम करने वाली महिलाओं को तवायफ तक की संज्ञा दे दी। वहीं भाजपा नेता शाहनवाज ने प्रश्न उठाया कि जब मौलवी-मौलाना भी छोटे पर्दे पर आ रहे हैं, तो क्या टीवी स्क्रीन पर आना जायज है या नाजायज? यह बड़ा बहस का विषय है।  
जायरा के मामले में नेशनल कांफ्रेंस के लीडर उमर अब्दुल्ला का भी एक ट्वीट आया। उन्होंने कहा किहम जायरा के निर्णय पर प्रश्न करने वाले कौन होते हैं। यह उसकी जिंदगी है, उसे वही करने दो जिसमें वह खुश हों।अच्छी बात यह है कि उमर अब्दुल्ला ने जायरा की इच्छा का सम्मान किया, पर क्या वे नुसरत जहां की इच्छा का सम्मान इसी तरह कर रहे होंगे? या फिर नुसरत का समर्थन न कर पाना उनकी महज एक राजनीतिक मजबूरी है? अगर वे ऐसा करते तो मिसाल ही पेश करते। खैर, ऐसी सुविधाजनक चुप्पी इन दोनों मामलों में कई दिग्गजों ने धारण कर रखी है। जिनसे ऐसे मामलों में बोलने की पूरी उम्मीद की जाती है।
वास्तविकता यह है कि जब भी महिलाएं अपने धर्म और समाज के इतर कोई निर्णय या काम करती हैं, तो उनके ही धर्म-समाज के लोग उसकी इच्छा का सम्मान नहीं करते हैं। यह देखा गया है कि महिलाओं के मामले में उनका नजरिया ज्यादा ही क्रूर होता है। चाहे वह एक मुस्लिम से शादी करने वाली हादिया का मामला ही क्यों न हो, या हालिया मामला फिल्म अभिनेता रितिक रोशन की बहन सुनैना रोशन का। सुनैना के बारे में खबरें आई थी कि वे एक मुस्लिम युवक से प्रेम करती हैं और परिवार इसमें रुकावट खड़ी कर रहा है। समाज का यह दोहरा रवैया हर खास और आम लड़की तब देखना पड़ता है, जब वह अपनी मर्जी से अपनी सोच को अमलीजामा पहनाती है। इसलिए नुसरत जहां से सबक सीखने की जरूरत है, जो अपनी राह चुनकर उस पर बेपरवाह चल रही है। फिलहाल वे फिर से ट्रोल हो गईं, क्योंकि वे कोलकाता में भगवान जगन्नाथ यात्रा में भाग ले रही हैं।