अगर फूट के ना निकले
बिना किसी वजह के
मत लिखो.
अगर बिना पूछे-बताये ना बरस पड़े
तुम्हारे दिल और दिमाग़
और जुबां और पेट से
मत लिखो.
अगर घंटों बैठना पड़े
अपने कम्प्यूटर को ताकते
या टाइपराइटर पर बोझ बने हुए
खोजते कमीने शब्दों को
मत लिखो.
अगर लिख रहे हो
कि ये रास्ता है
किसी औरत को बिस्तर तक लाने का
तो मत लिखो.
अगर बैठ के तुम्हें
बार-बार करने पड़ते हैं सुधार
जाने दो.
अगर लिखने का सोच के ही
होने लगता है तनाव
छोड़ दो.
अगर किसी और की तरह
लिखने की फ़िराक़ में हो
तो भूल ही जाओ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhRgUNZIOCEi3vh7Cs40OiY3YciXNxN2D0JBtHx3mjImUaWYhbKBnzBtrpB11ejvaXN4VS_bSlryp0hsWlvhSmraf9oETJpArmTe5GowZK46fnSz6IsBE9lMCCjknVp2NidVnVgNnhrLMM/s320/IMG_20190225_192359.jpg)
अगर वक़्त लगता है
कि चिंघाड़े तुम्हारी अपनी आवाज़
तो उसे वक़्त दो
पर ना चिंघाड़े ग़र फिर भी
तो सामान बाँध लो.
अगर पहले पढ़ के सुनाना पड़ता है
अपनी बीवी या प्रेमिका या प्रेमी
या माँ-बाप या अजनबी आलोचक को
तो तुम कच्चे हो अभी.
अनगिनत लेखकों से मत बनो
उन हज़ारों की तरह
जो कहते हैं खुद को ‘लेखक’
उदास, खोखले और नक्शेबाज़
स्व-मैथुन के मारे हुए.
दुनिया भर की लाइब्रेरियां
त्रस्त हो चुकी हैं
तुम्हारी क़ौम से
मत बढ़ाओ इसे.
दुहाई है, मत बढ़ाओ.
जब तक तुम्हारी आत्मा की ज़मीन से
लम्बी-दूरी के मारक रॉकेट जैसे
नहीं निकलते लफ़्ज़
जब तक चुप रहना
तुम्हें पूरे चाँद की रात के भेड़िये-सा
नहीं कर देता पागल या हत्यारा
जब तक कि तुम्हारी नाभी का सूरज
तुम्हारे कमरे में आग नहीं लगा देता
मत मत मत लिखो.
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhv9Nozvb16ccZPFs_6DBb-u8uTi9juc60uIAOxkJ4bZhy57zAy1qyyeFW_heYJ9MaLf-LXFYeiCLJRvlol8ND5-duW3EL3QIiDmn2ZUStjVW_z-lzHdXyFUekN0NvyszDc_rUqPnHcvmQ/s320/IMG_20190225_192330.jpg)
क्यूंकि जब वक़्त आएगा
और तुम्हें मिला होगा वो वरदान
तुम लिखोगे और लिखते रहोगे
जब तक भस्म नहीं हो जाते
तुम या यह हवस.
कोई और तरीक़ा नहीं है
कोई और तरीक़ा नहीं था कभी
कोई और तरीक़ा हो भी नहीं सकता.