सोमवार, 28 मई 2018

बेटियों का समुद्र मंथन


समुद्र से यदि टकराना है, तो तुम यह भूल जाओं कि तुम कौन हो। समुद्र यह नहीं देखता कि तुम महिला हो या पुरुष।अपने प्रशिक्षक दिलीप डोंडे की इस बात को मूलमंत्र बनाकर समुद्र की अथाह गहराइयों में जब महिला नेवी की जांबाज अधिकारी उतरी होंगी, तो उनके मन में इस महत्वपूर्ण यात्रा को लेकर ज्यादा संशय नहीं रहा होगा। यह इसलिए कहा जा सकता है कि साहसपूर्वक आठ महीने से अधिक समय बिताकर सभी तरह के खतरों को पार करने के बाद जब यह महिला दल 21 मई को देश की धरती पर लौटा तो देश ने इनके साहस को सलाम किया। खुद रक्षामंत्री निर्मला सीतारमन ने उनका स्वागत किया। इस यात्रा को नाविका सागर परिक्रमा नाम दिया गया। (ये दिलीप डोंडे वही साहसी व्यक्ति हैं, जिन्होंने पहली बार 2009 2010 के दौरान अकेले पूरी दुनिया का चक्कर लगाया था।)
10 सितंबर 2017 को गोवा से इंडियन नेवी की छह महिला अधिकारी तारिणी नाव पर पहली बार दुनिया का चक्कर लगाने के लिए निकलीं। इस यात्रा में वर्तिका जोशी कमांडर थीं, इनके साथ प्रतिभा जम्बाल, स्वाति पी., ऐश्वर्या वोदपति, विजया देवी और पायल गुप्ता थीं। यह पहली बार था जब एक ऑल वुमन क्रू दुनिया की परिक्रमा करने निकला था। ये लोग कुल साढे आठ महीने अपने परिवार और देश से दूर रहीं। यदि दिनों में गिना जाए, तो 254 दिन ये जांबाज महिलाएं अपने नाव में रहीं। 22,000 नौटिकल माइल्स की इस यात्रा में उन्होंने आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फॉकलैंड, . अफ्रीका और मारिशस जैसे देशों में गईं। इनकी यात्रा का रूट गोवा से शुरू होकर आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड से प्रशांत महासागर पार करके अमेरिका के दक्षिण में फाकलैंड द्वीव से अफ्रीका के केपटाउन से होते हुए मेडागास्कर से हिन्द महासागर से मारिशस पहुंचीं और यहीं से वे पुन: देश के पश्चिमी तट गोवा पहुंचीं। इस यात्रा में इन्होंने भूमध्य रेखा को दो बार क्रास किया और सभी देशांतर रेखाओं को भी इन्होंने छुआ। इसके अतिरिक्त तीन ग्रेट केप यानी केप ल्यूबिन, केप हार्न और केप ऑफ गुड होप भी कवर किए। यह बहुत ही ऐतिहासिक रहा।

इस यात्रा को साहसी और ऐतिहासिक इसलिए कहा जा सकता है कि इन्होंने अपनी यात्रा एक नाव पर की, किसी जहाज से नहीं, जो कि कहीं अधिक सुरक्षित होता है। इसी नाव पर उन्होंने सात से दस मीटर ऊंची लहरों का सामना किया। इन लहरों में इस तरह की नाव के डूबने का कहीं अधिक खतरा होता है। वे लोग इस यात्रा में कई ऐसी जगहों में गईं, जहां का तापमान माइनस दस तक चला जाता था। इस अवस्था में नाव का व्हील सम्हालने में हाथ जम जाते थे। यहां 140 किमी. की रफ्तार से हवाएं चलती थीं। केप ऑफ हार्न में वे तीन दिनों तक तूफान में फंसी रहीं। इस समय यहां का मौसम बहुत ही ठंडा था। नाव के सारे काम वे खुद ही करती थीं और इसी दौरान नाव पर कंट्रोल भी करना होता था।
सवाल है कि इस यात्रा का क्या उद्देश्य रहा है, ऐसी यात्रा की जरूरत क्यों पड़ी? तो सबसे पहले जो एक चीज दिखती है वह है महिला सशक्तिकरण। एक नाव पर छह महिलाएं लहरों से लड़ती हुई दुनिया का चक्कर लगा कर सकुशल बहुत सी जानकारियां लेकर लौटती हैं। दूसरा अपनी यात्रा के दौरान जहां-जहां से वे गुजरी पर्यावरण जागरुकता फैलाती गईं। इस नाव में भी सस्टनेबल फ्यूल का प्रयोग किया गया था। यह नाव यानी तारिनी पूरी तरह से भारत में बनी हुई है, तो इतनी दुसाहसी यात्रा में मेक इन इंडिया की बात से ये दुनिया अवगत हो गई। उन्होंने इस यात्रा के दौरान मौसम संबंधी डेटा एकत्र किया। साथ ही वेब डेटा यानी समुद्री लहरों संबंधी आंकड़े भी एकत्र किए, जो आगे बहुत ही महत्वपूर्ण साबित होंगे। आज समुद्र काफी प्रदूषित होता जा रहा है, इसके बारे में जागरुकता फैलाने के साथ इससे संबंधित आंकड़े भी एकत्र किए।
इस यात्रा के दौरान उन्होंने कई पड़ाव लिए गए। जहां भी ये लोग रुकीं वहां पर भारत के मूल निवासी इनसे मिलने के लिए गए। इससे केवल इन लोगों को उत्साहवर्द्धन हुआ, बल्कि देश से इन लोगों को जोड़ने का काम भी इन्होंने बखूब कर दिया।