पिछले दिनों एक ऐसी बुकलेट से रूबरू हुई जिसमें सौ महिलाओं की कहानियां दी गई हैं। ये इन महिलाओं की कहानियों से अधिक इस समाज की समस्या को इंगित करती हुई संबोधित है। ये सभी महिलाएं विज्ञान-टेक्नाॅलजी में रची-बसी उच्च शिक्षित महिलाएं हैं जिन्हें शादी और परिवार की जिम्मेदारियों के चलते अपना फलता-फूलता कैरियर
पर विराम लगाना पड़ा। कुछ सालों बाद जब उन्हें लगा कि बाहर निकलकर अपनी योग्यता के अनुसार कुछ काम मिल जाए, तो उन्हें निराशा ही हाथ लगी। ऐसे में किरण ने इनकी जिस तरह से मदद की उसकी सराहना की जानी लाजिमी है। इस तरह की पहल से और दूसरी स्ट्रीम में काम कर रही महिलाओं के हौसले बुलंद होने की उम्मीद भी बन गई है। किरण जैसी दूसरी तरह की पहल होनी चाहिए जिससे महिलाएं एक कैरियर विराम के बाद अपना कैरियर फिर से शुरू कर सके और देश के ऐसे वेल एजुकेटेड रिसोर्स बरबाद होने से बच जाए। शायद सरकार इस ओर सोच रही है पर उसे जल्द-जल्द से अपना दायरा बड़ा भी करना होगा।
इस
बुकलेट में दी गई कहानियों को हंड्रेड सक्सेज स्टोरी आॅफ वूमेन साइंसटिस्ट स्कीम
शीर्षक से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग यानी डीएसटी ने एकत्र किया है। डीएसटी का
नॉलेज इंवॉल्वमेंट इन रिसर्च एडवांसमेंट थ्रू नर्चरिंग (किरन) प्रभाग है जिसने बीच
में अपना करियर छोड़ देने वाली महिला वैज्ञानिकों का सहयोग किया। महिला वैज्ञानिक
योजना के तहत इन महिलाओं को विज्ञान की तरफ लौटने में सहायता की। पुस्तिका में 100 महिला वैज्ञानिक योजना
प्रशिक्षुओं के बारे में बताया गया है। इसमें इन महिलाओं की जिंदगी की दास्तान है
कि कैसे उन्होंने अपने जीवन की बाधाओं को पार कर कामयाबी हासिल की। महिला
वैज्ञानिकों का सफर दिखाने के अलावा, किताब में उनकी शैक्षिक
योग्यता, विशेषज्ञता, वर्तमान रोजगार
की स्थिति, अनुभव और बौद्धिक सम्पदा अधिकार में तकनीकी
योग्यता के बारे में बताया गया है, जिसे इन महिला
वैज्ञानिकों ने प्रशिक्षण पूरा करने के बाद हासिल किया है।
किताब
में दी गई महिला वैज्ञानिकों के बारे में जानना अधिक रोचक है। किस तरह यह
प्रशिक्षण महिलाओं के जीवन में परिवर्तन ला रहा है। केमिकल साइंस से पीएचडी डाॅ.
अंजली जेटली ने इस प्रशिक्षण को प्राप्त कर खुद की अपनी फर्म खोल ली। अंजली ने
अपनी परिवारिक जिम्मेदारियों के चलते
कैरियर में विराम ले लिया था। उन्होंने अपनी मैचमेट के साथ ही प्रशिक्षण पूरा होने
के बाद फर्म खोल ली। उन्हें अपना खुद का व्यवसाय करने का जो उत्साह था वह उन्हें
इस मुकाम तक लेकर आया। इसी तरह की कहानी डॉअंजली सिंह की है। उन्होंने केमेस्ट्री
से पीएचडी करने के बाद अपना कैरियर बनाने की सोची, लेकिन एक बच्ची की मां बन जाने के बाद वे इस ओर अधिक
नहीं सोच सकीं। डब्ल्यूओएस की ट्रेनिंग के बाद वे आज गुरूग्राम में एक प्रसिद्ध लाॅ
फर्म में कंस्ल्टेंट के तौर काम कर रही हैं। लाइफ
साइंस से एमएससी अर्चना डोभाल ने भी इस ट्रेंनिंग को पूरा करने के बाद एक
इंट्रेप्रिनेयोर बनकर उभरी हैं। उन्होंने अपनी एक आइपी फर्म खोल ली है। अपनी फर्म
के जरिये वे सलाह देने के साथ-साथ विद्यार्थियों के लिए वर्कशाप और ट्रेनिंग भी
देती हैं।
इस
बुकलेट में अर्चना राघवेंद्र की कहानी काफी साहसिक और मार्मिक है। अर्चना
इलेक्ट्रानिक्स से एमटेक हैं। शादी के बाद ने अपना अध्यापन का कैरियर छोड़कर पति के
साथ कनाडा में बस गईं। सब कुछ अच्छा बीतने के साथ जब दुखों का पहाड़ उन पर टूटा तो
वे वापस अपने देश लौटीं। अपने दो छोटे बच्चों, पति और सास-ससुर की देखभाल के लिए उन्हें फिर से
आर्थिक रूप से मजबूत होना था। तब इस प्रशिक्षण ने उनकी मदद की। इस प्रशिक्षण के
दौरान उन्हें जो स्टाइपेन मिला उन्हें उससे भी मदद मिली। ऐसी बहुत सी महिलाओं के बारे
में इस किताब में दिया गया है।
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