शनिवार, 19 जुलाई 2025

क्या हो सकते हैं भविष्य में दो दो दलाईलामा

 

तिब्बतियों के सबसे बड़े आध्यात्मिक नेता ने अपने उत्तराधिकार के सवाल पर जो बातें स्पष्ट की हैं , उससे दलाईलामा के चुनाव पर चीन  के साथ गतिरोध कायम रहेगा, यह स्पष्ट हो गया है। ऐसे में क्या यह संभव है कि हम भविष्य में दो दो दलाईलामा देखे।

अगला दलाईलामा कब, कौन और कहां  से होगा, ये सभी सवाल अब भविष्य के गर्भ में चले गये हैं। अपने 90वें जन्म दिवस के अवसर पर 06 जुलाई को 14वें दलाईलामा ने मैकलाॅडगंज, धर्मशाला में अपने उद्बोधन में बहुत कुछ स्पष्ट कर दिया है। तिब्बतियों के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरू दलाईलामा ने कहा कि उनकी मृत्यु के बाद उनका उत्तराधिकारी होगा। अपने जन्मदिन के अवसर पर दिये गये अपने संदेश में दलाईलामा ने कहा कि पिछले चैदह सालों में तिब्बती परंपराओं से जुड़े नेताओं और लोगों ने उन्हें पत्र लिखकर सूचित किया है कि दलाईलामा की संस्था को जारी रहना चाहिये। साथ ही तिब्बत में रहने वाले तिब्बती लोगों ने भी यही अपील की है। दलाईलामा ने कहा कि इन सभी अनुरोधों के मद्देनजर वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि दलाईलामा की संस्था जारी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि अगले दलाईलामा को मान्यता देने के लिये गोदेन फोडरंग ट्रस्ट जिम्मेवार होगा। उन्हेांने स्पष्टतः कहा कि गोदेन फोडरंग ट्रस्ट ही अगले दलाईलामा के पुनर्जन्म को मान्यता देने का एक मात्र अधिकारी है और किसी अन्य को इस मसले में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है।

दलाईलामा के इस उद्बोधन से कई बातें स्पष्ट हो गई हैं। पहली, उनका उत्तराधिकारी होगा। दूसरी, तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार पुनर्जन्म की अवतार परंपरा का पालन किया जायेगा। और तीसरा, ‘किसी अन्य’ (उनका इशारा चीन की तरफ था) को इस प्रक्रिया में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होगा। उन्होंने तिब्बती बौद्ध अवतार परंपरा के पालन के लिये अंतिम निर्णय गोदेन फोडरंग ट्रस्ट को सौंप दिया है, जो उनकी भारत में चल रही निर्वासित सरकार का एक अंग है। इस ट्रस्ट की स्थापना 2011 में धर्मशाला में दलाईलामा के कार्यालय से जोड़कर की गई है। इसके प्रमुख दलाईलामा हैं और इसके अन्य सदस्यों में उनके कुछ सहयोगी शामिल हैं। इसका प्रबंधन समधोंग रिनपोछे करते हैं। ‘गोदेन फोडरंग’ मूल रूप से ल्हासा, तिब्बत के ड्रेपुंग मठ में दलाईलामा का आध्यात्मिक निवास था। पोटाला पैलेस के निर्माण के बाद दलाईलामा इस आवासीय परिसर से दूर चले गये थे। यह ट्रस्ट दलाईलामा की परंपरा का संरक्षण करता है, उनके आध्यात्मिक एवं मानवतावादी कार्यों का समर्थन करता है। यही भविष्य के दलाईलामा की पहचान की आधिकारिक प्रक्रिया का संचालन करेगा।

जब अध्यात्मिक गुरू दलाईलामा ने अपने उत्तराधिकार की जिम्मेदारी गोदेन फोडरंग ट्रस्ट को सौंप दी है और साथ ही ‘किसी अन्य’ को हस्तक्षेप न करने के लिये कहा है, तो जाहिर है कि उनकी मृत्यु के बाद अगले दलाईलामा की खोज पारंपरिक तिब्बती बौद्ध रीति-रिवाजों के अनुसार होगी-जैसे धर्मगुरुओं के परामर्श, संकेतों की खोज, झील दर्शन, पूर्व दलाईलामा की वस्तुओं की पहचान आदि के द्वारा। तिब्बतियों के दलाईलामा जीवित बुद्ध हैं। सभी दलाईलामाओं को करुणा के बोधिसत्व ‘अवलोकितेश्वर’ का अवतार माना जाता है। बौद्धों के लिए, अंतिम लक्ष्य ‘निर्वाण’ है यानी जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति। फिर यह पुर्नजन्म का क्या मतलब है। दरअसल, महायान संप्रदाय के अंतर्गत आने वाले पूर्वी एशियाई और तिब्बती बौद्ध मानते हैं कि बोधिसत्व इस सर्वोच्च बोध तक पहुंच चुके हैं। इसके अलावा, महायानी बौद्धों का मानना है कि बोधिसत्व पुनर्जन्म लेना चुनते हैं, ताकि वे संसार के दुख और पीड़ा को अनुभव कर सकें, ताकि अन्य प्राणियों को ज्ञान प्राप्ति में सहायता कर सकें। ‘तुल्कू’ प्रणाली तिब्बती बौद्ध धर्म का मूल आधार है, जो पुनर्जन्म को केवल धार्मिक विश्वास नहीं, बल्कि जिम्मेदारी, करुणा और मार्गदर्शन का साधन मानती है।

इसके विरूद्ध चीनी कम्युनिस्ट सरकार जो वर्तमान दलाईलामा को ‘अलगाववादी’ मानते है, और तिब्बती बौद्ध दलाईलामा का चुनाव करना अपना अधिकार भी मानते है। इसलिये यह मामला चीनी सरकार के लिये राजनीतिक अधिक और धार्मिक कम है। चीन का मानना है कि दलाईलामा का चुनाव केवल 18वीं सदी की किंग राजवंश द्वारा शुरू की गई ‘गोल्डन अर्न’ (स्वर्ण कलश) प्रणाली से होना चाहिए। इसमें संभावित पुनर्जन्मीं बच्चों के नाम एक कलश में रखे जाते हैं और लॉटरी निकाल कर चुना जाता है। यह प्रणाली ऐतिहासिक रूप से उपयोग की गई थी, लेकिन अनिवार्य नहीं थी और अक्सर तिब्बती लामा इसे अस्वीकार करते थे। यह पूरी तरह से तिब्बती धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है। जब मौजूदा 14वें दलाईलामा का निधन होगा, चीन तिब्बत के भीतर अपने अनुकूल एक बालक को चुनकर उसे दलाईलामा घोषित करेगा। ऐसा माना जाता है कि यह चीन के लिए एक ‘प्रोपेगेंडा लामा’ होगा, जिसका उपयोग वह तिब्बती असंतोष को नियंत्रित करने और अंतरराष्ट्रीय मंच पर ‘धार्मिक स्वतंत्रता दिखावे’ के लिए कर सकेगा।

इस दौरान चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि ‘दलाईलामा के पुनर्जन्म को धार्मिक परंपराओं, चीनी कानूनों के साथ-साथ धार्मिक रीति-रिवाजों और ऐतिहासिक परंपराओं (जैसे स्वर्ण कलश) प्रणाली का पालन करना होगा, इसे चीन की केंद्रीय सरकार की मंजूरी लेनी होगी।’ 1959 में वर्तमान दलाईलामा को चीनी कम्युनिस्ट सरकार माओत्से तुंग के बढ़ते दबाव और तिब्बत पर कब्जे के बाद भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी थी। इसलिये तभी से वर्तमान दलाईलामा धर्मशाला से अपनी निर्वासित सरकार चला रहे हैं और तिब्बत को स्वायत्ता दिलाने के लिये संघर्ष कर रहे हैं। अगला संघर्ष इन सबसे अलग दलाईलामा चुनाव परंपरा को बनाये रखना और तिब्बती लोगों को एकजुट रखना होगा। यह संघर्ष दलाईलामा से अधिक तिब्बती लोगों के लिये परीक्षा की घड़ी है।


क्या है दलाईलामा चुनने की तिब्बती परंपरा

बौद्ध धर्म में ‘अनात्म’ का सिद्धांत है, यानी स्थायी, अपरिवर्तनीय आत्मा (आत्म) का अस्तित्व नहीं है। फिर भी, कर्म और चित्त की धारा पुनर्जन्म का आधार बनती है। इसको ऐसे समझा जा सकता है- जैसे एक दीपक की लौ बुझती है और दूसरी लौ उससे जलाई जाती है। वह अगली लौ पूर्व की निरंतरता है, लेकिन वही नहीं है। महायान बौद्ध मान्यता के अनुसार पुनर्जन्म का संबंध मृत्यु के बाद चित्त की ऊर्जा अगले शरीर में प्रवेश करती है। यह ऊर्जा पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार नया जन्म ग्रहण करती है। महायान परंपरा में बोधिसत्व पुनर्जन्म लेते हैं, ताकि वे दूसरों को मुक्त कर सकें। दलाईलामा, पंचेन लामा, आदि ऐसे ही तुल्कू (पुनर्जन्मी लामा) माने जाते हैं। ‘तुल्क’ ऐसा व्यक्ति जो जानबूझकर करुणा के साथ पुनर्जन्म लेता है, ताकि दूसरों की मुक्ति में सहायता कर सके। बोधिसत्व यह प्रतिज्ञा लेते हैं कि वे निर्वाण में विलीन होने से पहले सभी प्राणियों की मुक्ति के लिए बार-बार जन्म लेंगे। यह पुनर्जन्म कर्मवश नहीं, बल्कि करुणा और संकल्पवश होता है।

पिछले तुल्कू (लामा) की मृत्यु के बाद, उनके पुनर्जन्म की तलाश में कई प्रक्रिया अपनाई जाती हैं। जिसमें वरिष्ठ लामा स्वप्न, ध्यान, और विशेष झील (जैसे लामो लात्सो) में आए दर्शन को आधार बनाते हैं। उम्मीदवार बच्चे की पहचान के लिये विशिष्ट लक्षणों जैसे बच्चे का व्यवहार, उसका बोलना, कुछ विशेष बातें याद होना, देखा जाता है। ऐसे बच्चे की परीक्षा के लिये उसे पूर्व लामा की वस्तुएं (जैसे माला, चश्मा, किताब) और कुछ नकली वस्तुएं मिलाकर दी जाती हैं। यदि वह सही वस्तुएं पहचान ले, तो यह पुनर्जन्म का प्रमाण माना जाता है। ऐसे चुने हुये बच्चे को ल्हासा (निर्वासन की स्थिति में धर्मशाला) लाकर उसे दलाईलामा के अनुरूप लालन-पालन किया जाता है। यहीं पर चुने हुये बच्चे को बौद्ध दर्शन, तिब्बती भाषा-संस्कृति और तर्कशास्त्र का प्रशिक्षण दिया जाता है। बच्चे के युवा होने तक यह सभी शिक्षाएं पूर्ण की जाती हैं और इसके बाद उनकी परीक्षा भी ली जाती है।


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