‘हमारी सामाजिक व्यवस्था पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाई है, यहां समानता की बात झूठी है। सेना ने मेडिकल के लिए जो नियम बनाये हैं,
वो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करते हैं। महिलाओं को बराबर अवसर दिए
बिना रास्ता नहीं निकल सकता।’ 25 मार्च
को यह कड़ी टिप्पणी सुप्रीम अदालत की तब आई, जब गत वर्ष सेना
में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के लिए कहने के बावजूद भेदभावपूर्ण मापदंड के
तहत कुछ महिला अधिकारियों को अयोग्य ठहरा दिया गया। 16 साल
की लड़ाई लड़ने के बाद मिले अधिकारों को यूं भेदभावपूर्ण मापदंड की भेट न चढ़ने देने
के लिए महिलाएं फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं और सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के साथ
अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव करने के लिए सेना की आलोचना की। जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़
और जस्टिस एम.आर. शाह की पीठ ने कहा कि हमें सिक्के के दूसरे पहलू को भी देखना
चाहिए। हम मानते हैं कि फौज में महत्वपूर्ण ओहदा हासिल करने के लिए शारीरिक रूप से
दक्ष होना जरूरी है। ...सेना की नौकरी में तमाम तरह के टेस्ट होते हैं, तमाम तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं और जब समाज महिलाओं पर बच्चे की देखभाल और
घरेलू कामों की जिम्मेदारियां डालता है, तो यह और
चुनौतीपूर्ण हो जाता है। फलतः सुप्रीम कोर्ट ने निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते
हुए दो महीने के भीतर स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया है।
क्या है
शाॅर्ट सर्विस कमीशन
सेना में महिलाओं की सेवा देने का इतिहास आजादी से पहले का है। 1888 में जब अंग्रेज शासकों ने इंडियन मिलिट्री नर्सिंग सर्विस की शुरूआत की तब इसमें महिलाओं को रखा गया। इस सेवा में महिलाओं ने खुद को साबित भी किया। जंग के मैदान में इन महिला नर्सों को भी सेवा के लिए भेजा जाता था, जो किसी जंग से कम नहीं था। आजादी के बाद सेना में महिलाओं केा कुछ यूनिट्स में प्रवेश दिया गया था, पर शाॅर्ट सर्विस कमीशन के तहत। शाॅर्ट सर्विस कमीशन के तहत महिलाएं केवल 10 से 14 साल तक सेना में काम कर सकती थीं, इसके बाद वे सेवानिवृत्त हो जाती थीं। हां, एक नवंबर, 1958 को आर्मी मेडिकल काॅप्र्स में महिलाओं को स्थाई कमीशन दिया गया, जो पहली बार था। इसके बाद लीगल और एजूकेशन काॅप्र्स ने भी महिलाओं को स्थाई कमीशन दिया। कुल मिलाकर उन्हें गैर फौजी और गैर लड़ाकू किस्म के काम दिए गए वे भी शाॅर्ट सर्विस कमीशन के तहत। सेना में स्थाई कमीशन न मिलने के कारण महिलाएं जब सर्विस छोड़ती तो उन्हें पेंशन, ग्रेच्युटी, मेडिकल इंश्योरेंस और रिटायरमेंट के बाद की सुविधाएं नहीं मिलती, फलतः उन्हें भविष्य के लिए फिर से संघर्ष करना पड़ता। वहीं पुरूषों को पांच या दस साल की नौकरी के बाद स्थायी कमीशन दे दिया जाता था। इस तरह यह शाॅर्ट सर्विस कमीशन महिलाओं को सेना में जाने और एक कॅरियर के तौर पर इसे अपनाने के मामले में हतोत्साहित कर रहा था। इसलिए इसके तहत काम कर रही महिलाओं स्थायी कमीशन दिए जाने की मांग शुरू कर दी।
क्या था
फैसला
स्थायी
कमीशन को लेकर पहली याचिका साल 2003 में डाली गई थी। इसके बाद इंडियन नेवी की ग्यारह
महिला अधिकारियों ने स्थायी कमीशन के लिए साल 2008 में फिर
से दिल्ली हाई कोर्ट में केस दायर किया। दिल्ली हाई कोर्ट ने महिला अधिकारियों के
हक में 2010 में फैसला सुनाया। 21
मार्च, 2010 को कोर्ट ने कहा कि आजादी के 63 साल बाद भी महिलाओं के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। साथ ही रक्षा मंत्रालय और भारतीय
सेना को यह आदेश दिया कि महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन दिया जाए। लेकिन सरकार
इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। हालांकि इस फैसले को इंडियन नेवी और एयर
फोर्स ने मान लिया था पर आर्मी इस बात को मानने को तैयार नहीं हुई। तब आता है
फरवरी 2020 का वह दिन जब सुप्रीम कोर्ट ने भी महिला
अधिकारियों के पक्ष में ही फैसला सुना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शार्ट सर्विस कमीशन
की सभी महिलाओं को स्थायी कमीशन के लिए योग्य बताया, जो आमी
की प्रत्येक सेवा पर लागू होगा। जो महिलाएं सेना में 14 वर्ष
का समय पूरा कर चुकी हैं, व ेअब 20 साल
तक सेना में रह सकती हैं और तमाम सुविधाओं की हकदार भी होंगी। कुल मिलाकर सेना में
काम कर रहीं सभी महिलाएं पुरूषों की तरह पेंशन और दूसरी सेवाओं की हकदार होगीं।
साथ ही कमांडिंग पोजीशन तक भी महिलाओं की पहुंच होगी। 17
फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में भारतीय सेना
की सभी 10 शाखाओं में शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारियों
को स्थायी कमीशन देने की बात कही थी। ये शाखाएं हैं- आर्मी एयर डिफेंस (एएडी),
सिग्नल्स, इंजीनियर्स, आर्मी
एविएशन, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई),
आर्मी सर्विस कॉर्प्स (एएससी), आर्मी
ऑर्डिनेंस कॉर्प्स (एओसी) और इंटेलीजेंस कॉर्प्स।
कितनी है
सेना में महिलाएं
फरवरी, 2021 में संसद में रक्षा
राज्यमंत्री श्रीपद नाइक ने एक सवाल के जवाब में सेना में महिलाओं की उपस्थिति के
बारे में बताया था। तीनों सेनाओं में महिला आॅफीसर के रूप में 9,118 महिलाएं अपनी सेवाएं दे रही हैं। इंडियन आर्मी में 12,18,036 पुरूषों की तुलना में 6,807 महिलाएं सेवारत हैं जो
प्रतिशत के तौर पर 0.56 बैठता है। इसी तरह इंडियन एयर फोर्स
में 1,46,727 पुरूषों की तुलना में 1,607 महिलाएं सेवारत हैं जो प्रतिशत के तौर पर 1.08
बैठता है। वहीं इंडियन नेवी में कुल पुरूषों की तुलना में उनकी संख्या 6.5 प्रतिशत तक है। सबसे ज्यादा महिला आॅफीसर्स इंडियन नेवी में सेवारत हैं,
जो इस समय संख्या की दृष्टि से 704 हैं।
वास्तव में ये आंकड़े उत्साहवर्द्धक नहीं हैं। सेना में महिलाओं की भागीदारी काफी
कम है। जबकि अमेरिका में महिलाओं की संख्या पुरूषों की तुलना में 20 फीसदी और ब्रिटेन में 09 फीसदी है। बाकी के देशों
में भी महिला भागीदारी भारत से अच्छी है। निःसंदेह इस फैसले के बाद महिलाओं के बीच
सेना ज्वाइन करने को लेकर उत्साह आ जायेगा। सरकार भी सेना में महिलाओं की भागीदारी
के प्रति प्रतिबद्ध है।
इस फैसले
से युवा लड़कियां अधिक प्रोत्साहित होगीं। वे सेना को भी अपने भविष्य के एक कॅरियर
के तौर पर देख सकेगीं। सेना में अब महिलाओं के पास पूरे 54 साल की उम्र तक राष्ट्र
सेवा करने का मौका होगा। महिला अधिकारियों को पदोन्नति के सभी रास्ते खुल गए हैं।
अब तक वे शार्ट सर्विस कमीशन में ले. कर्नल से आगे नहीं जा पाती थीं। इसके लिए
आवश्यक एडवांस लर्निंग कोर्सेज में भी जा सकेगी। जिसके बाद और अच्छा करने के तमाम
अवसर खुल जाएंगे। साथ ही पदोन्नति के भी रास्ते खुलेंगे। कुल मिलाकर हम भविष्य में
महिला कर्नल, ब्रिगेडियर और जनरल जल्द ही देखेंगे।
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