17वीं
लोकसभा का चुनाव परिणाम इस मायनों में अनूठे थे कि इन चुनावों में महिला
उम्मीदवारों ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिखाया था। इस बार 16वीं लोकसभा के मुकाबले इनकी संख्या बढ़कर 78 हो गई
थी। सर्वाधिक महिला सांसद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से चुनकर आई थीं। इनकी
संख्या उस समय 41 थी, जो इनके चुने गए
कुल सांसदों यानी 303 में से 14 फीसदी
को कवर करता था। 2019 की लोकसभा चुनाव के लिए 2014 के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी ने ज्यादा महिलाओं को टिकट बांटे थे,
जो कुल बांटे गए टिकटों में से मात्र 12 फीसदी
ही थे। फिर भी कमाल की बात यह रही कि दिए गए इन 55 टिकटों पर
लड़ी महिलाओं का प्रदर्शन 74 फीसदी रहा यानी कुल 41 महिला उम्मीदवारों ने अपनी जीत दर्ज की। इसके बावजूद मंत्रिपरिषद में 06 महिला नेत्रियों को जगह दी गई। इनमें से तीन निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी और हरसिमरत कौर बादल को कैबिनेट में जगह दी गई थी।
पूर्व
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली सरकार में महिला मंत्रियों की
संख्या 11 थी, हालांकि यूपीए के दोनों कार्यकालों में अधिकतम 10
महिला सांसदों को ही मंत्री बनाया गया था। जबकि 2014 के
कार्यकाल में भी 06 महिलाएं मंत्री पद तक पहुंची थी और इस 2019 के कार्यकाल में भी सिर्फ छह महिलाओं को मंत्री बनाया गया जबकि सर्वाधिक 78 महिलाएं चुनकर संसद तक पहुंची थीं। इस विरोधाभास का क्या कारण हो सकता
है। अच्छे प्रदर्शन के बाद भी उचित प्रतिनिधित्व न दिए जाने पर सम्यक विकास की
कल्पना कैसे की जा सकती है। इस मंत्रिपरिषद विस्तार के बाद केंद्रीय महिला और बाल
विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने खुशी जाहिर करते हुए टृविटर के माध्यम से कहा कि ‘भारत के इतिहास में सबसे कम उम्र की महिला मंत्रियों का महत्वपूर्ण
प्रतिनिधित्व है... एक नए आत्मनिर्भर भारत की आकांक्षाएं।’ लेकिन
सोचने वाली बात की एक आत्मनिर्भर भारत के लिए सत्ता में महिला भागीदारी की कितनी
जरूरत है, इसे समझने में अभी कितना वक्त लगेगा?
प्हली
बात तो यह है कि संसद में महिला प्रतिनिधित्व काफी कम है। इसीलिए महिला आरक्षण की
बात की जाती है, जो
सभी दलों की आपसी मौन सहमति से किसी ठंडे बस्ते में अब तक पड़ा हुआ है। इसके बरक्स
राजनीतिक दलों को भी महिलाओं के वोट में अधिक दिलचस्पी रहती है पर उन्हें उचित
प्रतिनिधित्व देने में कोई रुचि नहीं होती। इसलिए संसद तक की महिलाओं की दौड़ बहुत
ही चिंताजनक है। 2019 तक वैश्विक स्तर पर महिला सांसदों का
औसत 24.3 फीसदी है। हमारे पड़ोसी बांग्लादेश संसद में महिला
प्रतिनिधित्व 21 फीसदी है। यहां तक रवाण्डा जैसे देश में यह
प्रतिनिधित्व आधे से अधिक यानी 61 फीसदी है। विकसित देश यूके
और अमेरिका में महिला सांसद क्रमशः 32 और 24 फीसदी है। अगर इन सांसदों को अहम जिम्मेदारी यानी मंत्रिमंडल और
मंत्रिपरिषद में स्थान देने की बात की जाए तो भी हमारे मुकाबले कई देश आगे हैं।
जून, 2018 को जब स्पेन के प्रधानमंत्री पेद्रो सांचेज अपने
मंत्रिमंडल के 17 में से 11 अहम पदों के
लिए महिलाओं को चुना, तो यह नया रिकाॅर्ड बन गया, जिसकी उन दिनों काफी चर्चा हुई थी। यह महिला प्रतिनिधित्व 61 फीसदी होता है।
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