सोमवार, 24 दिसंबर 2018

एकल महिलाओं का संघर्ष

single woman
वैसे तो हमारी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्थाएं यही हैं कि किसी भी स्त्री को एकल जीवन न जीना पड़े। फिर भी कुछ महिलाएं आजीवन अविवाहित रह जाती हैं, कुछ शादी ही नहीं करती हैं। कुछ महिलाएं शादी के बाद छोड़ दी जाती हैं तलाकशुदा हो जाती हैं। कुछ महिलाओं के पति शहरों में दूसरी शादी करने के बाद पहली पत्नी को यूं ही छोड़ देते हैं। जबकि कुछ महिलाएं पतियों के साथ तालमेल न बैठने के कारण स्वेच्छा से अलग हो जाती हैं। कुछ महिलाओं के पतियों की मृत्यु हो जाने और दूसरी शादी न होने के कारण अकेली रह जाती हैं। ये तमाम तरह की महिलाएं जो किसी न किसी कारण से एक परिवार के बगैर अपना जीवन व्यतीत करती हैं, उनकी गिनती एकल महिलाओं के रूप में होती है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 71.4 मिलियन एकल महिलाएं हैं, जो कुल महिला जनसंख्या के मुकाबले 12 फीसदी बैठता है। यह आंकड़ा 2001 की जनगणना के आंकड़ों से (51.2 मिलियन) 39 फीसदी अधिक है। यानी एकल महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

महिलाओं की सामाजिक स्थिति दोयम होने के कारण उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर महिलाएं परिवार से अलग हो जाती हैं, तो उन्हें और भी कई दूसरी समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है। इसका पता इस तथ्य से चलता है कि जहां साथी की मृत्यु और तलाक होने के बाद पुरुषों को दूसरा जीवनसाथी आसानी से मिला जाता है, वहीं महिलाएं इस मामले में भेदभाव का शिकार हो जाती हैं। आंकड़े कहते हैं कि जहां इस प्रकार के पुरुषों की संख्या देश में 1 करोड़ 39 लाख है, वहीं इस तरह की महिलाओं की संख्या लगभग साढ़े चार करोड़ है। इस कारण ऐसी महिलाएं दूसरों के भरोसे अपना जीवन व्यतीत बिताने के लिए मजबूर होना पड़ता हैं।

वास्तव में पुरुष प्रधान समाज में एकल महिलाओं की स्थिति अधिक सोचनीय हो जाती है। अधिकांश एकल महिलाओं को शारीरिक हिंसा, शोषण, उपेक्षा, तिरस्कार, मुफ्त में कार्य करने के अतिरिक्त सबसे ज्यादा यौन शोषण का दंश झेलना पड़ता है। समाज में ऐसी महिलाओं पर लोगों की बुरी नजर होती है। कई बार ये महिलाएं अपवाह का भी शिकार हो जाती हैं। ऐसी महिलाओं के चरित्र पर न केवल उंगली उठाई जाती है, बल्कि उनकी इमेच एक चरित्रहीन स्त्री की भी बना दी जाती है। कहीं-कहीं ग्रामीण इलाकों में इन्हें डायन तक घोषित करके मौत के घाट उतार दिया जाता है। अगर शहरों की बात की जाए, तो उन्हें किराये पर मकान तक मिलना कठिन हो जाता है। कई जगह क्लब की सदस्यता तक नहीं दी जाती है। यात्रा के दौरान होटल और गेस्ट हाउस में ठहरने के लिए मुश्किल का सामना करना पड़ता है।
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समाज में एकल महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलती है। कई बार शादी न करने के कारण महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति और घर में हिस्सा भी नहीं दिया जाता है। इसी तरह विधवा महिलाएं भी अपने ससुराल में पति की संपत्ति में अपने अधिकार के लिए बोल तक नहीं पाती हैं। ऐसे में प्रश्न है कि 71.4 मिलियन एकल महिलाओं का भविष्य कैसा होगा? उनकी समस्याओं का निदान क्या हो सकता है? क्या उनकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए केंद्र और राज्य सरकारें क्या कुछ कर रही हैं? केंद्र और राज्य सरकारें जो योजनाएं चला रही हैं, वे किस हद तक उनके लिए लाभप्रद हो रही हैं। इस समय एकल महिलाओं के अधिकारों के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि विभिन्न तरह की सामाजिक सुरक्षा वाली योजनाओं से एकल महिलाएं प्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित नहीं हो पा रही हैं। सामाजिक सुरक्षा के नाम पर दी जाने वाली पेंशन (कहीं-कहीं सिर्फ 300 रुपये प्रति महीने) भी काफी कम होती हैं और यह भी प्रत्येक महीने नहीं मिल पाती है, बल्कि कई-कई महीनों बाद एक साथ मिलती है। और दूसरी बात कि इस तरह की सहायता में व्याप्त विसंगतियां और भ्रष्टाचार इन महिलाओं की समस्याओं को और बढ़ा देता है।

ऐसे समय में देश में एकल महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों में से एक संगठन नेशनल फोरम फॉर सिंगल वूमन’स राइट्स (एनएफएसडब्ल्यूआर) ने मांगों की एक लिस्ट बनाई है जिससे आने वाले बजट में इस संदर्भ में अलग से आवंटन किया जा सके। उनकी मांगों में एकल महिलाओं के लिए पेंशन और उनके देखभालकर्ताओं को सहायता मिल सकें। एनएफएसडब्ल्यूआर का मानना है कि एकल महिलाओं में समस्या केवल ज्यादा उम्र की महिलाओं के साथ ही नहीं है, बल्कि कई तरह की समस्याएं सभी उम्र की विधवाओं, अविवाहित, तलाकशुदा, पतियों से विलग महिलाएं एवं परित्यक्त महिलाओं में भी है। इस संगठन ने न केवल केंद्र सरकार बल्कि राज्य सरकारों से लगभग तीन हजार रुपये तक की मासिक पेंशन सभी प्रकार की एकल महिलाओं के लिए निश्चित करने की मांग की है। देश भर में इस संगठन की 1.3 लाख महिला सदस्य हैं।

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