महिलाओं की सुरक्षा एक अहम मामला है। मामला अहम इसलिए भी है क्योंकि देश में महिलाओं, किशोरियों और बच्चियों के खिलाफ अपराधों में किसी भी स्तर पर कमी नहीं आई है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। इसकी काफी समय से चर्चा भी चल रही थी। सरकार यौन अपराधियों का निजी रिकॉर्ड बनाकर एक डेटाबेस तैयार कर रही है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नेशनल रजिस्टर ऑफ सेक्सुअल ऑफेंडर्स यानी एनआरएसओ को हरी झंडी दिखा दी है। अब यौन अपराधियों से जुड़ी निजी व बॉयोमेट्रिक जानकारियों का एक डेटाबेस तैयार किया जाएगा। इस डेटाबेस में यौन अपराधियों का नाम, उनकी फोटो, पता, उंगलियों की छाप, डीएनए के साक्ष्य और उनका आधार व पैन नंबर शामिल किया जाएगा। इन सारी जानकारियों से लैस इस डेटाबेस से किसी भी यौन अपराधी की सभी जानकारी पलक झपकते प्राप्त हो जाया करेंगी। इस डाटा को रजिस्टर करने का काम राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी कर रहा है। फिलहाल इसका उपयोग जांच एजेंसियां ही कर सकेंगी।
इस डेटाबेस को तैयार करने के लाभ क्या होंगे? इस आपराधिक रिकॉर्ड में फिलहाल बलात्कार, गैंगरेप, बच्चों के साथ यौन अपराध करने वाले और महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करने वाले लगभग 4,40,000 लोगों की जानकारी रखी जाएगी। जब इस डेटाबेस में शामिल कोई भी अपराधी फिर से अपराध में लिप्त पाया जाएगा, तो वह इसके माध्यम से तुरंत पहचान में आ जाएगा। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यौन अपराध में शामिल कई व्यक्ति जमानत पर छूटने या जेल से बाहर आने के बाद फिर से वही अपराध करते पकड़े गए हैं। देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि ही हो रही है। इसे एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट-2016 से समझा जा सकता है। एनसीआरबी की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं के खिलाफ 2015-16 में हुए अपराधों में 2.9 फीसदी की वृद्धि हुई। जहां 2015 में महिलाओं के खिलाफ 3,29,243 अपराध के मामले हुए, वहीं 2016 में 3,38,954 अपराध दर्ज किए गए। इस तरह के अपराधों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले हर किस्म के अपराध और हिंसा शामिल हैं। इसी तरह केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू ने जुलाई में राज्य सभा में बताया था कि देश में 2016 में 38,947 बलात्कार के मामले दर्ज हुए। वहीं 2015 में 34,651 केस और 2014 में 36,735 बलात्कार के केस दर्ज किए गए। कुल मिलाकर 2014-16 तक देश में 1,10,333 यौन हिंसा के केस दर्ज किए गए।
यौन अपराधियों का इस तरह का डेटाबेस तैयार करने वाला भारत दुनिया का नौवां देश बन गया है। अपने देश के अतिरिक्त दुनिया में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, कनाडा, आयरलैंड, दक्षिण अफ्रीका और त्रिनिदाद टोबैगो में भी यौन अपराधियों का डेटाबेस रखा जाता है। देश में इस तरह की नेशनल रजिस्टर ऑफ सेक्सुअल ऑफेंडर्स बनाने के लिए चेंज डॉट ऑर्ग नामक वेबसाइट में एक याचिका लगाकर अभियान भी तीन साल पहले शुरू हुआ था। इस अभियान को शुरू करने वाली मडोना रुजेरियो जेनसन का मानना था कि यदि भारत में इस तरह के यौन अपराधियों के डाटा को एक जगह पर इकट्ठा कर लिया जाता है, तो पुलिस के लिए सीरियल अपराधियों को पकड़ना कहीं अधिक सरल हो जाएगा। इस याचिका को अब तक 90,671 लोगों का समर्थन मिला है। अब जब सरकार ने इस काम को आगे बढ़ा दिया है, तो इस तरह के छोटे-छोटे प्रयासों की अहमियत बढ़ जाती है।
इस अच्छे फैसले के खिलाफ कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। पहला तो यही कि इससे यौन अपराध में शामिल व्यक्तियों को सजा भुगतने के बाद जीवनयापन में कठिनाई आ सकती है या उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। दूसरा यह कि इस तरह के डेटाबेस तैयार करने के बाद महिलाओं के खिलाफ अपराधों में कितनी कमी आ सकेगी? यह डेटाबेस तभी उपयोगी होगा, जब एक ही व्यक्ति पुन: अपराध करे। एनसीआरबी की वार्षिक रिपोर्ट-2016 बताती है कि फिर से अपराध करने वालों की संख्या 6.4 फीसदी है। यह आंकड़ा सभी प्रकार के अपराधों में से निकाला गया है। इसमें यौन अपराधियों का प्रतिशत कितना होगा, इसका अलग से विवरण उपलब्ध नहीं है। इसलिए अपर्याप्त आंकड़ों के प्रकाश में इस तरह के डेटाबेस का महत्व बहुत अधिक नहीं दिख पा रहा है। एक पक्ष यह भी है कि महिलाओं के खिलाफ यौन या दूसरों अपराधों में उनके जान-पहचान और करीबी रिश्तेदार शामिल होते हैं जिनकी या तो रिपोर्ट दर्ज ही नहीं कराई जाती है या फिर दर्ज होती है, तो डेटाबेस में नाम रजिस्टर होने के डर से परिजनों पर दबाव और भी बढ़ सकता है। संभावना है कि इस तरह के मामले दर्ज होने में और भी कठिनाई न आ जाए। इन सब शंकाओं के बावजूद इसे महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जाना चाहिए।
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