कोई भी वाहन चलाना वैसे ही महिलाओं के लिए जोखिम वाला काम माना जाता है, ऐसे में हवा में कुलांचे भरने को क्या कहा जाए। इसे आश्चर्य ही कहा जाएगा कि देश में महिला पायलटों की संख्या विश्व में सबसे अधिक हो गई है। इस पर हमें गर्व होना चाहिए कि यह संख्या महिला पायलटों के वैश्विक औसत से भी अधिक है। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों में जहां हमारे देश की तुलना में उड्डयन अधिक विस्तृत है, वहां की तुलना में हमारी महिला पायलटों की अधिक संख्या होना एक दूसरी कहानी कहता है।
हाल ही में इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ विमिन एयरलाइन पायलट्स ने पायलटों के संदर्भ में अपने नवीन आंकड़ें जारी किए हैं। इससे पता चलता है कि देश में कुल 8,797 पायलट हैं, इनमें से1,092 महिला पायलट हैं। इन महिला पायलटों में से 385 कैप्टन के पद पर हैं। विश्व में हमारी महिला पायलटों की हैसियत का अंदाजा आकड़ों के विश्लेषण से और अधिक चलता है। विश्व में कुल 1.5 लाख पायलट हैं, जिनमें से 8,061 महिला पायलट हैं। पुरुषों की तुलना में महिला पायलटों की यह संख्या 12.4 फीसदी बैठती है जिसमें भारतीय महिला पायलटों का प्रतिशत 5.4 है। देश में महिला पायलटों की संख्या पिछले चार सालों में लगभग दोगुनी हो चुकी है। 2014 में घरेलू विमानन कंपनियों के 5,050 पायलटों में 586 महिला पायलट थीं। देश की एक बड़ी विमान कंपनी इंडिगो एयरलाइन में जहां 2013 में महिला पायलटों की संख्या सिर्फ 69 थी, वह आज 300 पार कर गई है। कामोबेश आज स्पाइसजेट, गो एयरवेज और जेट एयरवेज के महिला पायलटों की संख्या में कई गुना वृद्धि हो चुकी है। एयर इंडिया में भी पिछले चार-पांच वर्षों में 25 से 35 फीसदी के लगभग महिला पायलटों की संख्या में वृद्धि हुई है।
महिलाओं का किसी वाहन को चलाना देश-दुनिया में आश्चर्य का विषय रहा है। चाहे वह साइकिल हो, स्कूटर हो, बस हो, रेल हो, या फिर हवाई जहाज। आज मैट्रो सिटीज और छोटे शहरों में निजी वाहन चलाना आमतौर पर देखा जाता है, पर आज भी किसी सार्वजनिक वाहन चलाती एक स्त्री को देखना कइयों को सुखद आश्चर्य दे जाता है। समय के साथ महिलाओं का विभिन्न क्षेत्रों में जितना हस्ताक्षेप बढ़ा है, उसमें महिलाओं का किसी लड़ाकू विमान का उड़ाना भी आश्चर्य का विषय नहीं होना चाहिए। फिर भी महिला चालकों को शक की निगाह से देखा जाता है। उन पर उतना भरोसा नहीं किया जाता है, जितना पुरुष चालकों पर किया जाता है। प्रीति कुमारी पश्चिम रेलवे की पहली महिला ड्राइवर हैं। जब उन्हें 2010 में मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली शहरी रेल सेवा में ट्रेनें दौड़ाने की जिम्मेदारी दी गई, तब उन्होंने एक बात कही कि मुझे अन्य चालकों से अधिक मेहनत करनी होगी, ताकि कभी कोई यह न कह सके कि वे महिला थीं, इसलिए गड़बड़ी हो गई। इसी तरह मुंबई की 45 वर्षीय मुमताज एम. काजी जिन्हें एशिया की पहली महिला डीजल इंजन चालक होने का गौरव प्राप्त हो चुका है, उन्हें एक रेलवे ड्राइवर बनने के लिए खुद अपने पिता का विरोध झेलना पड़ा। जबकि उनके पिता स्वयं एक वरिष्ठ रेलवे कर्मचारी थे। तो मुद्दा महिलाओं पर विश्वास करने का है।
इन सबके बावजूद सेना में महिलाएं को लड़ाकू विमान उड़ाने की अनुमति मिल गई है। इंडियन एयरफोर्स में इस वक्त करीब एक सैकड़ा महिला पायलट मौजूद हैं। यहां महिलाओं को हेलीकॉप्टर और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट उड़ाने की ही अनुमति है। इसी तरह नेवी में भी पुरुष वर्चस्व तोड़कर महिलाएं नौसेना में टोही विमानों में तैनात हो रही हैं। पर वे जंग में नहीं जा सकेंगी। धीरे-धीरे ही सही महिलाएं ऐसे क्षेत्रों में अपनी भूमिका मजबूत करने की ओर बढ़ रही हैं, जहां कभी पुरुषों का वर्चस्व माना जाता था। यह क्या कम है कि आज महिलाएं ऐसे सपने देखने के लिए स्वतंत्र हैं, जहां जाने के लिए कभी वे सपने भी नहीं देख सकती थीं।
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