मंगलवार, 15 अगस्त 2017

और मैं स्वतंत्रता दिवस भूल गया

मैं सुबह की मीठी नींद सो रहा था कि किसी भारी-भरकम आवाज का कानों में प्रवेश हुआ। और मैं स्वप्न लोक से इहलोक आ गया। आंख खोलकर देखा तो मेरे सात जन्मों की संगनी भृकुटी चढ़ाये खड़ी हैं। मुझे अलसाते देख यथाशक्ति कोमल स्वर में बोली-‘आपकेा आपिफस नहीं जाना है?’ ‘हां! जाना है पर इतनी सुबह क्यों जगा रही हो।’ मैंने स्पष्टीकरण मांगा जो वाकई मुझे कभी नही मिला। ‘सारी जिन्दगी सोते ही रहियेगाा। आज 15 अगस्त है, आफिस नहीं जाना है?’ झुंझलाते हुये वह बोली और किसी जलजले की भांति कमरे से बाहर भी चली गयी। पर मुझे जोर का झटका जोर से लगा कि अरे! 15 अगस्त! मैं ‘स्वतंत्रता दिवस’ कैसे भूल गया!
 मैं उधेड़बुन में फंस गया। मैं स्ववंत्राता दिवस क्योंकर भूल गया। यह कैसे हुआ? जिसे मैं बचपन से लेकर अब तक पूरे मनोयोग से मनाता आ रहा हूं। एक बार भी नहीं भूला, आज क्या हुआ, क्यों हुआ, कैसे हुआ? ऐसी धृषटता कैसे हुई मुझसे। यह तो कृतग्घनता हुई देश से। ऐसे कितने विचारों का आवेग मुझ पर बढ़ने लगा। ..कि मेरी आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा और जन गण मन का राग चारों दिशाओं में गूंजने लगा। और तत्काल मैं फ्लैस बैक में चला गया और इस भयानक भूल का कारण तलाशने लगा।
मैं अपनी स्मृति-मशीन के द्वारा अपने पिछले सभी स्वतंत्रता दिवसों घूम रहा था। मैंने देखा कि बचपन में लड्डुओं के लालच में ही सही, मैं 15 अगस्त को स्कूल अवश्य जाता था। इस दिन मेरे पेट में कभी दर्द नहीं होता था। वहां होने वाले सारे कार्यक्रम पूरे मनोयोग से देखता था जो मुझे भार-स्वरूप भले ही लगते थे। पर मेरा सारा ध्यान मोदकों पर टिका रहता कि कब वह मेरे हाथ लगे और मैं घर चलूं। लेकिन ऐसा काफी इंतजार के बाद सम्भव होता था। बचपन में 15 अगस्त के दिन मास्टर जी एक बात अवश्य बताते- बच्चों! हम सब 15 अगस्त को स्वतंत्र हुये थे और इसी दिन हमें स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार मिला था।’ फलत: इस बात का प्रभाव किशोरावस्था तक आते-आते मेरे मन-मस्तिष्क पर जबरदस्त पड़ गया कि मैं 15 अगस्त 1947 के बाद पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो चुका हूं। अत: इस अधिकार के प्रयोग  के लिये मैं हमेशा लालायित रहता था।
लेकिन मेरी इस सोच पर  तब तुषारापात हो जाता, जब मैं पढ़ना नहीं चाहता और खेलने की स्वतंत्रता मांगता, दोस्तों के साथ घूमने, फैशनेबल कपड़े पहनने एवं सिनेमा जाने की स्वतंत्रता मांगता, तब पिताजी मुझे लम्बा-चौड़ा भाषण देते और बताते कि कितनी मेहनत के बाद वह अध्यापक बन पाये हैं। अगर तुम्हारे यही लक्षण रहे, तो तुम स्कूल का चपरासी भी नहीं बन पाओगे, ...समझे!
और इसके बाद मेरी हर प्रकार की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लग जाता। खैर, इन सब के बावजूद मैं 15 अगस्त जोरशोर से मनाता रहता। इस समय तक मैं एक चलता पुर्जा किस्म का छात्रा बन गया था। अपने जैसे विचारों वाले छोटे भाई लोगों का एक ग्रुप बना कर छुटभैय्या नेताओं की चमचागिरी कर लेता था। उन्हीं के प्रोत्साहन से थोड़ी बहुत भाषणबाजी भी करने लगा था। पढ़ाई-लिखाई में तो मुझे कभी तारीफ मिली नहीं, इसलिये साल में मिलने वाले ऐसेे एक दो मौकों को मैं नही छोड़ता था। और स्वतंत्रता दिवस खूब मनाता।
युवावस्था में मुझे एक सीधी-साधी लड़की से प्यार हो गया। तब स्वतंत्रता वाली मेरी भावनायें फिर से जाग्रत हो गईं।  ..कि प्यार करने और अपनी पसंद की लड़की से विवाह करने के लिये तो मैं स्वतंत्र हूं। लेकिन यहां भी मैं गलत हो गया। पिता जी को मेरा प्यार पसंद नहीं आया और जल्द ही उन्होंने एक सुयोग्य-गृहकार्य दक्ष लक्ष्मी से मेरी सगाई कर चैन की सांस ली। फिर भी मैं स्वतंत्रता दिवस मनाता रहा। शादी होने के बाद गृहस्थी की गाड़ी हांकनी थी, इसलिये जोड़-तोड़कर के सरकारी ऑफिस में क्लर्की हासिल कर ली। सोचा कि यहां पर सात-आठ घंटे रहकर अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग कर सकूंगा। पर अफसोस! अध्रिकारियों के आदेश पर फाइलें इधर-उधर  करता रहता। उपर-नीचे भी करता। कभी इसको टालता, कभी उसको टालता। ऊपर से जैसे आदेश मिलते मैं वैसा ही करता। कभी स्वतंत्र क्लर्की नहीं करता, पर हर साल मैं 15 अगस्त अवश्य मनाता। जिंदगी इन्हीं स्वतंत्रओं के अपहरणों के बीच चलती रही और मैं स्वतंत्रता दिवसों को पूरे 'बुझे' मन से मनाता रहा।
आज भी स्वतंत्रता दिवस है] मैं तैयार होकर जा रहा हूं। स्कूली पोशाक में सजे-धजे बच्चे तिरंगा लिये भागते चले जा रहे। तभी मुझे किसी की जोर से पुकारने की आवाज सुनाई दी। मैंने देखा कि मैं अभी भी बिस्तर पर पड़ा हुआ हूं। मेरी पत्नी मेरे सामने खड़ी मेरी चादर खींचते हुये कह रही है ‘ऐसे ही जिंदगी भर उंघाते रहना, जाइये, जल्दी से निपटकर आइये। दूसरे भी काम करने है। बड़ी मुश्किल से कोई छुट्टी का दिन मिलता है।’



2 टिप्‍पणियां:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’वीर सपूतों का देश और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

प्रतिभा कुशवाहा ने कहा…

आपका धन्यवाद राजा कुमारेन्द्र जी