‘महिलाएं टैक्स फ्री सैनेटरी नैपकिन की
मांग कर रही हैं, मगर मैं चाहता हूं कि यह पूरी तरह से मुफ्त
हो, क्योंकि महिलाओं की सेहत से जुड़ा यह बहुत ही गंभीर मसला
है। सिर्फ रक्षा बजट में 5 फीसदी की कमी करके सरकार महिलाओं
को यह सौगात दे सकती है।’ ये बाते फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार
ने अपनी फिल्म पैडमैन के प्रचार के दौरान कही थी। जो आज जाकर मौजूं हुई है। फ्री
तो नहीं हुआ, पर उसकी कीमत न के बराबर रख दी गई है। पिछले
दिनों प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि योजना के अंतगर्त सुगम एप को लांच करने के
दौरान महिलाओं के लिए सैनेटरी पैड की कीमत एक रुपये प्रति पैड रख दी है। यह सुविधा
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि के अंतगर्त हर महिला उठा सकती है। पहले इसकी कीमत
प्रति पैड ढाई रुपये थी। 4 जून, 2018 को
‘जन औषधि
सुविधा ऑक्सो-बायोडीग्रेडेबल सेनेटरी नैपकीन’ की शुरूआत की
गई थी। जन औषधि सुविधा की विशेष बात यह है कि यह इस्तेमाल
के बाद ऑक्सीजन के संपर्क में आता है तो यह बायोडीग्रेडेबल हो जाता है। 31 अगस्त, 2019 तक प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि
केन्द्रों ने कुल 1.30 करोड़ से अधिक पैड की बिक्री की थी।
जन
औषधि सुगम एप के अवसर
पर यह तथ्य सामने आया कि बेहतर सैनेटरी नैपकिन के अभाव में 28 मिलियन किशोरियां बीच में
पढ़ाई छोड़ देती हैं। उन्हें पीरियड से निपटने के लिए
सुविधाजनक नैपकीन उचित दाम पर नहीं मिल पाते हैं। अब इस योजना से देश की वंचित
महिलाओं और किशोरियों की ‘स्वच्छता, स्वास्थ्य और सुविधा’ सुनिश्चित होने की
संभावना बढ़ी है। वास्तव में बहुत से शोध और अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है कि
महिलाएं पीरियड से निपटने के लिए कई तरह के असुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करती
हैं। यह बहुत कुछ अशिक्षा, अंधविश्वास और आर्थिक रूप से
कमजोर होने के कारण भी होता है। वैसे तो बाजार में कई तरह के ब्रांड वाले सैनेटरी
पैड उपलब्ध हैं, पर इनकी कीमत इतनी ज्यादा है कि महिलाएं
अपने स्वास्थ और हाइजीन की कीमत पर इसे नजरअंदाज करती रहती हैं। ऐसे में महिलाओं
के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण सरकारी कदम
माना जा सकता है।
देखा जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों
या कम पढ़ी-लिखी महिलाएं आज भी पीरियड संबंधी भ्रांतियों, शर्म
और अंधविश्वास की जकड़न में कैद हैं। इसलिए इस दौरान इतने अस्वास्थ्यकर तरीके
अपनाये जाते हैं कि महिलाओं को अनेक तरह के रोग के रोग लग जाते हैं। देश में
गर्भाशय का कैंसर या सर्वाइकल कैंसर का सबसे बड़ा कारण यही अस्वास्थकर
परिस्थितियां हैं। महिलाओं में होने वाले सभी तरह के कैंसर में सर्वाइकल कैंसर 23
प्रतिशत है। शोध बताते हैं कि इसका सीधा कनेक्शन एचपीवी इंफेक्शन और
पीरियड में स्वच्छता का अभाव होता है। स्वच्छता का ख्याल का मतलत पीरियड के दौरान
साफ-सुथरे ढंग से रहना है। इसके लिए कहीं अधिक मात्रा में
सस्ते और हाईजीन सैनेटरी नैपकिन की जरूरत होती है। हमारे देश में किशोरियों की
स्कूल में 24 फीसदी अनुपस्थिति पीरियड्स के दौरान होती है।
इसलिए कुछ राज्यों में सस्ते सैनेटरी पैड स्कूलों में मुफ्त दिए जा रहे हैं। पर यह
पर्याप्त नहीं है क्योंकि सभी लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती हैं।
2011 में ए.सी. नीलसन और प्लान इंडिया ने ‘सैनेटरी प्रोटेक्शन : एवरी वूमेन्स हेल्थ राइट’ नाम से एक अध्ययन किया था जिसमें उन्होंने दावा किया था कि भारत में
सिर्फ 12 प्रतिशत महिलाएं ही सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करती
हैं, बाकी महिलाएं उन दिनों असुरक्षित साधनों का इस्तेमाल
करती हैं। यह स्टडी काफी विवादित रही थी। भारत सरकार ने इस स्टडी को आधार बनाकर ही
अपनी कई योजनाओं की रणनीति बनाई थी। लेकिन बाद में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-2015-16
ने एक दूसरी ही तस्वीर प्रस्तुत की। इस सर्वे के अनुसार कुल मिलाकर देश
की 58 प्रतिशत महिलाएं हाइजीन तरीकों का इस्तेमाल कर रही
हैं। आज दस में छह महिलाएं डिस्पोजेबल सैनेटरी नैपकिन प्रयोग करती हैं। इससे पता
चलता है कि महिलाएं साफ-सफाई की जरूरत स्वयं समझ रही हैं। इस
परिप्रेक्ष्य में सरकार की यह पहल महिलाओं और किशोरियों के लिए एक सहारा साबित
होगी, बशर्ते प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केन्द्रों की संख्या
और पहुंच महिलाओं तक हो जाए।