बुधवार, 18 सितंबर 2024

जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट : सब चंगा सी नहीं

 

जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के शोषण को सामने ला दिया है। इस रिपोर्ट के आने के बाद से अन्य क्षेत्रीय सिनेमा इंडस्ट्री से भी छन-छन कर खबरें आने लगी हैं, क्योंकि शोषण का किसी प्रगतिशील सिनेमा से कोई लेना देना नहीं है, यह सर्वव्यापी है। बस रोशनी डालने भर की जरूरत है।

 

 

जबसे जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट आई है, मलयालम समाज और मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में हंगामा मचा हुआ है। फिल्म उद्योग से जुडे़ लोगों के मनों में उथल-पुथल मची हुई है। इसकी नजर में देश के कई क्षेत्रीय सिनेमा उद्योगों से भी आवाज उठने लगी है, पर यह आश्चर्य की बात है कि देश की एक बड़ी हिंदी फिल्मी इंडस्ट्री ने मनचाही चुप्पी ओढी हुई है। यहां सब चंगा सीके मुगालते में वे सब शुतुर्गमुर्गी रवैया अख्तियार किये हुये हैं। जिस तेजी से यह बयार चल रही है, उसमें सिनेमा के बहुत से पर्दे उड़ने की पूरी संभावना दिख रही है, देर या सबेर।

खैर, आते है मलयालम फिल्म इंडस्ट्री और रिपोर्ट पर। हाल ही में 19 अगस्त को जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट आने के बाद से मलयालम सिनेमा से जुड़ी कई महिलाओं ने सामने आकर मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के जानेमाने और दिग्गज अभिनेताओं, निर्माताआंे, निर्देशकों और राजनेताओं पर आरोप लगाये हैं। इनमें से कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं और हो रही हैं। जैसे-जैसे यह मामला आगे बढ़ रहा है मलयालम सिनेमा के कई आईकन धराशायी हो रहे हैं। इसी का परिणाम है कि 27 अगस्त को मलयालम सिनेमा का सबसे शक्तिशाली 17 सदस्यीय संगठन एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट यानी एएमएमए को भंग कर दिया गया है। चर्चित अभिनेता मोहनलाल और ममूटी ने अपने-अपने पदों से इस्तीफे भी दे दिये हैं। फिल्म से जुड़ी इस शक्तिशाली बाॅडी को इसलिये भंग करना पड़ा, क्योंकि इससे जुड़े लोगों पर लगातार सिनेमा से जुड़ी महिलाओं ने यौन शोषण के आरोप लगाये थे। फिल्म निर्देशक रंजीत का नाम सबसे पहले आया, जो राज्य की फिल्म एमप्लाई फेडरेशन आॅफ केरला अकेडमी के चेयरमेन भी थे जिससे उनका इस्तीफा हो चुका है। इसके बाद अभिनेता सिद्दकी और मुकेश पर भी गंभीर आरोप लगे और उन्होंने एएमएमए से इस्तीफा दिये।

एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट पर और बात करने से पहले जस्टिस हेमा कमेटी के गठन पर बात कर लेते हैं। फरवरी 2017 में मलयालम की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के अपहरण और यौन उत्पीड़न के बाद उठे असंतोष पर बात करने के लिये के. हेमा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया गया। जिसकी रिपोर्ट पांच साल बाद तमाम उहापोह के बाद केरल सरकार ने 19 अगस्त को 44 पेज हटाने के बाद रिलीज कर दी है। इस रिपोर्ट में जो बातें सामने आई हैं और जैसी बातों पर अब बात होनी संभव हुई है, उसका पूरा श्रेय जस्टिस हेमा कमेटी को जाता है। इस रिपोर्ट के डाॅक्यूमेंटेशन के बाद अब उन आरोपों को मजबूती मिल गई है जिसे इस मर्दवादी और मर्द नियंत्रित फिल्म इंडस्ट्री हवा में उड़ा दिया करती थी। या सच कहने वालों की माॅरल लिंचिंगकरा देती थी। इस रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि इस फिल्म इंडस्ट्री को 15 से 20 फिल्मी हस्तियों का एक ग्रुप संचालित कर रहा है। रिपोर्ट में जिसे माफियातक कहा गया है। जो इस शक्तिशाली ग्रुप की बातें उचित-अनुचितनहीं मानता, उसे इस इंडस्ट्री से गाहे-बगाहे बेदखल कर दिया जाता। इस माफिया ग्रुप के सभी भागीदार एक दूसरे को बचाने में लगे रहते हैं। इस इंडस्ट्री में काम करने वालों का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण किया जाता। उनको उचित मेहनताना तक नहीं दिया जाता है, बेसिक कार्यस्थल की सुविधायें भी नहीं प्रदान की जाती हैं जैसे वाशरूम और पानी पीने तक की सुविधा। यहां बहुत ही सुनियोजित तरीकेसे महिलाओं के शोषण को सांगठित रूप दे दिया गया है। इस इंडस्ट्री में प्रवेश करने वाली महिलाओं को किसी न किसी बहाने यह समझाने की कोशिश की जाती कि यहां टिकने के लिये कुछ समझौतेऔर एडजस्टमेंटकरने पड़ेगें। महिला आर्टिस्ट के एक बार समझौताकर लेने के बाद उसका एक कोडनंबर जारी कर दिया जाता, जिसके बाद कोडबताने के बाद उसे काम मिलने में उतनी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता।

इस रिपोर्ट के आने के बाद और रिपोर्ट से व्यक्तिगत पहचान न जाहिर करने के एवज में कुछ पेज हटाने के बावजूद अभिनेत्रियां, मेकअप आर्टिस्ट, तकनीशियन और फिल्म इंडस्ट्री के दूसरे क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं ने सामने आकर कई दिग्गजों के खिलाफ आरोप लगाये और रिपोर्ट लिखाई। लगभग 17 मलयालम सिनेमा की हस्तियों पर अब तक केस दर्ज किये जा चुके हैं। जिनमें लगातार कई गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं। इन लोगों में निर्माता रंजीत, अभिनेता जयसूर्या, अभिनेता सिद्दकी, अभिनेता और विधायक मुकेश, अभिनेता जयसूर्या, अभिनेता एडवेला बाबू, अभिनेता सुधीश, अभिनेता और निर्माता एम. राजू, अभिनेता और निर्माता निविन पाॅली प्रमुख रूप से हैं। इनमें कई अभिनेता एएमएमए से जुड़े हुये थे, जिनके इस्तीफे होने के बाद इसे ही भंग करना पड़ा। प्रसिद्ध अभिनेता एवं एएमएमए के पूर्व अध्यक्ष मोहनलाल हेमा कमेटी रिपोर्ट आने के बाद पहली बार अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि मैं मलयालम सिनेमा के किसी पाॅवर ग्रुप का हिस्सा नहीं हूं। जिन्होंने गलत किया है उनको सबूतों के आधार पर दंड मिलना चाहिये। वे एएमएमए पर लगने वाले आरोपों से खासे दुखी नजर आये और उन्होंने मीडिया से कहा कि एएमएमए पर पत्थरबाजी न करें। ...उन्होंने इस इंडस्ट्री को बरबाद न करनेकी गुजारिशकी। जस्टिस हेमा कमेटी रिपोर्ट पर अब तक अपनी कोई प्रतिक्रिया न देने और इंडस्ट्री में किसी पाॅवर ग्रुप के अस्तित्व से अब तक इंकार करने वाले प्रसिद्ध अभिनेता मोहनलाल ने किस डर, शायद नैतिकता का रहा होगा, के कारण एएमएमए पूरी कार्यकारणी सहित इस्तीफा देना पड़ा।

एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट संगठन मलायालम सिनेमा का 30 साल में ऐसा संगठन बन कर उभरा जिसने मर्दवादी सिनेमा इंडस्ट्री की तरह ही इसे भी संचालित किया। 1994 में मलयालम फिल्म के अभिनेता और अभिनेत्रियों को एक ऐसे प्लेटफार्म के लिये बनाया गया था, जहां वे अपनी समस्याओं पर बात कर सकें। लेकिन यह संस्था भी शोषितों के साथ बहुत कम खड़ी रही। 2017 में जब एक प्रसिद्ध अभिनेत्री के अपहरण और यौन शोषण का मामला आया और उसके आरोपी प्रसिद्ध अभिनेता दिलीप पर मामला चला और कई मुश्किलों के बाद गिरफ्तारी हुई, तब कहीं जाकर दिलीप को उनके पदों से हटाया गया। इस घटना से पहले भी उक्त अभिनेत्री ने अपनी कई शिकायतें की लेकिन उनकी शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया गया। अंततः जब इतनी बड़ी घटना हुई तब इसकी जिम्मेदारी किसकी बनती है। यहां यह जानना जरूरी है कि उस समय उक्त अभिनेत्री और आरोपी दिलीप दोनों ही इस संगठन के हिस्सा थे। दिलीप की गिरफ्तारी के एक साल बाद और जमानत पर बाहर आने के बाद एक आम सभा में चुपचाप अभिनेता को बहाल कर दिया गया। मीडिया रिपोर्ट से पता चलता है कि अधिकांश अभिनेताओं ने दिलीप के पक्ष में मतदान किया था। संगठन में दिलीप को लाने के बाद चार महिला सदस्य कलाकारों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया।

एसोसिएशन आॅफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट यानी एएमएमए के ऐसे संदिग्ध रवैये के चलते उस समय एक बड़ी घटना भी आकार ले रही थी। 2017 की यौन उत्पीड़न घटना के बाद शक्तिशाली लोगों से लोहा लेने के लिये इस इंडस्ट्री और एएमएमए से जुड़ी कई जानीमानी महिला कलाकारों ने एक वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से जुड़कर संघर्ष करने की ठानी। यही ग्रुप आगे चलकर ‘वुमेन इन सिनेमा कलेक्टिव’ यानी डब्ल्यूसीसी के नाम से जाना गया। यह संगठन अपनी तरह का पहला और विश्व में दूसरा संगठन 2017 की घटना के कुछ ही महीने के बाद अस्तित्व में आया। इस संगठन का उद्देश्य समान अवसर और महिलाओं के सम्मान के लिये काम करना था। इसको इस रूप में लाने में जिन महिलाओं का योगदान था उनमें से बीना पाॅल, मंजू वाॅरियर, पार्वती, अंजली मेनन, रीमा कालिंगल, सजिता, विधु विंसेंट और दीदी दामोदरन प्रमुख थीं।

डब्ल्यूसीसी ने मई 2017 में केरल सरकार से पहली अपील की कि बनने वाली प्रत्येक फिल्म के लिये यौन उत्पीड़न हेतु एक आईसीसी का गठन किया जाना चाहिये। इस अपील में 21 महिला अभिनेत्री, निर्देशक, तकनीशियन और गायिकाओं के नाम और हस्ताक्षर शामिल थे। आईसीसी एक आंतरिक शिकायत समिति है, जो यौन उत्पीड़न की रोकथाम और यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण के लिये प्रत्येक कार्यस्थलों में गठित की जाती है। इस संगठन ने सरकार से यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि अगर यह मानदंड पूरा नहीं होता है, तो फिल्मेंा को बनाने की अनुमति ही नहीं दी जानी चाहिये। यह अपने किस्म की अलग मांग थी क्यांेकि मलयालम फिल्म इंडस्ट्री एक उद्योग होते हुये भी राज्य के दृष्टिकोण से सिनेमा एक उद्योग नहीं है, इसलिए यहां कार्यस्थल को परिभाषित नहीं किया जा सकता है।

वुमेन इन सिनेमा कलेक्टिव का हेमा कमेटी रिपोर्ट को जमीनी संघर्ष करने में काफी मदद की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि डब्ल्यूसीसी की 32 महिलाओं ने कमेटी द्वारा जारी प्रश्नोत्तर फार्म को भर कर अपने साथ हुये दुव्र्यहार को हमसे शेयर किया। साथ ही कमेटी द्वारा ग्रुप और व्यक्तिगत डिस्कसन में भाग लिया। इस तरह हेमा कमेटी रिपोर्ट तैयार करने में तीन सदस्यीय कमेटी को काफी सहायता मिली। 2019 में रिपोर्ट सरकार के पास पहुंचने के बाद भी जारी न करने पर भी डब्ल्यूसीसी का संघर्ष जारी रहा। अब जब पांच सालों के बाद रिपोर्ट हमारे सामने है, तब डब्ल्यूसीसी के पास एक और चुनौती है कि हेमा कमेटी रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को लागू कैसे कराया जाये। आखिर यहां महिलाओं के लिये बेसिक सुविधाओं रेस्टरूम, वाॅशरूम यहां तक चेंजिंग रूम पर बात करने के लिये ऐसे ही किसी प्रतिबद्ध महिला संगठन की जरूरत थी। आज यहां समान मेहनताना और नाॅन-कांट्रेक्टचुअल वर्क कल्चर पर बात हो रही है, जो किसी समय असंभव थी, इसी संगठन की मेहनत की वजह से संभव हुआ है। अगर इस प्रगतिशील सिनेमा की प्रगतिशील महिलाओं ने यह कर दिखाया है तो यह बयार अन्य बाॅलीवुडतक पहुंचनी चाहिये, जहां अभी चुप्पी का आलम है।