मंगलवार, 26 नवंबर 2024

वे कौन थीं, जिन्होंने गढ़ा हमारा संविधान

देश की स्वतंत्रता के लिये सभी वर्गों के सामूहिक संघर्ष ने हमें लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में विश्वास करना सिखाया। इसी की झलक हमारे संविधान में दिखती है। हमारे संविधान निर्माण के लिये बना मसौदा समिति पैनल बहुत ही शिक्षित और लोकतांत्रिक तरीकों में विश्वास रखने वाले लोगों का समूह था। इसमें देश की विविधता का वाजिब प्रतिनिधित्व शामिल किया गया था। इसलिये संविधान निर्माण में आधी आबादी का शामिल होना लाजिमी था। देश के विभाजन के संविधान सभा के माननीय सदस्यों की संख्या 299 थे जिनमें से 15 महिलाएं थीं। देखा जाये तो यह संख्या कोई आदर्श संख्या नहीं है, लेकिन अंग्रेजी शासन की अधीनता, अशिक्षा, समाज में मौजूद पूर्वाग्रह के कारण महिलाओं का राजनीति में अपना दावा प्रस्तुत करना लगभग असंभव था। फिर भी इस प्रतिनिधित्व ने संविधान निर्माण में क्या शामिल करने और क्या न शामिल करने के द्वंद्व को स्पष्ट किया, यह बदलाव आज हम महिलाएं जरूर देखने में सक्षम हुई हैं। यही हमारी उपलब्धि भी है। 

इस रौशनी में आइये जानते हैं कि वे कौन सी विद्वत् महिलाएं थीं जिनके विचारों और कार्याें का प्रभाव संविधान निर्माण पर इस हद तक पड़ा कि आज हमें उन्हें याद कर गर्व महसूस होता है-  


अम्मू स्वामीनाथन

केरल के नायर समुदाय से आने वाली अम्मू स्वामीनाथन का स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण स्थान है। उन्हें प्यार से अम्मुकुट्टी भी बुलाया जाता था, वे अपने विचारों और कार्यों में काफी निडर थीं, यह उनके सामाजिक कार्यों एवं एक राजनेता के रूप में उनके जीवनकाल से स्पष्ट होता है। अपने काम के माध्यम से उन्होंने महिला श्रमिकों के आर्थिक मुद्दों और समस्याओं को सबसे आगे रखा। संविधान निर्माण के समय उन्होंने महिलाओं के लिए वयस्क मताधिकार और संवैधानिक अधिकारों की मांग का मुखर होकर समर्थन किया था। 1952 में वे राज्यसभा की सदस्य चुनी गईं और कई संस्थाओं से जुड़कर काम करती रहीं।

एनी मस्कारेन

स्ंाविधान सभा में एनी मस्कारेन ने केरल का प्रतिनिधित्व किया था। स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रीय रहते हुये वे कई बार जेल भी गईं। राजनीतिक रूप से काफी सक्रीय रहीं। वे कांग्रेस की राज्य कार्यकारिणी की सदस्य भी नियुक्त हुई थीं। स्वतंत्रता के बाद एनी मस्कारेन  रियासतों के एकीकरण के लिए चलाए गए आंदोलनों की नेताओं में से एक थीं। जब राजनीतिक दल त्रावणकोर स्टेट कांग्रेस का गठन हुआ, तो वह इसमें शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं। उन्होंने संविधान सभा की चयन समिति में भी काम किया, जिसने हिंदू कोड बिल पर विचार किया।

दक्षायनी वेलायुधन

संविधान सभा के लिए चुनी जाने वाली एकमात्र दलित महिला थीं, वे एर्नाकुलम के पुलया समुदाय से संबंध रखती थीं। वे देश की पहली अनुसूचित जाति की स्नातक तक शिक्षित महिला थीं। उन्होंने विधानसभा की सदस्य के रूप में कार्य किया। 1946-52 तक अनंतिम संसद का हिस्सा रहीं। 34 वर्ष की उम्र में, वह विधानसभा की सबसे कम उम्र की सदस्यों में से एक थीं। वेलायुधन ने केरल में जड़ जाति व्यवस्था को अपने जीवन और कार्याें से  प्रभावित और परिभाषित किया। साथ ही संविधान सभा में जाति आधारित भेदभाव को मिटाने के लिये जोरदार तर्क दिये।

बेगम ऐजाज रसूल

वेलायुधन की तरह बेगम ऐजाज संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं। रसूल मालरकोटला के राजपरिवार से ऐजाज का ताल्लुक था। ऐजाज रसूल ने औपचारिक रूप से 1937 में पर्दा त्याग दिया था, जब उन्होंने गैर-आरक्षित सीट से अपना पहला चुनाव जीता और उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्य बनीं। 1952 में वे राज्यसभा के लिये चुनी गयी थीं। उन्होंने महिला हॉकी को लोकप्रिय बनाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

दुर्गाबाई देशमुख

किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रीय होने वाली दुर्गाबाई देशमुख महिला अधिकारों के प्रति अपने पूरे जीवन सक्रीय रहीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान नमक सत्याग्रह में भाग लेने के दौरान ही उन्होंने आंदोलन में महिला सत्याग्रहियों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके कारण ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें 1930 और 1933 के बीच तीन बार कैद किया। 1936 में उन्होंने  आंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो आगे जाकर बहुत महत्वपूर्ण संस्था बन गई। दुर्गाबाई पहली महिला थीं जिन्होंने चीन, जापान की अपनी विदेश यात्राओं के दौरान अध्ययन करने के बाद अलग-अलग पारिवारिक न्यायालयों की स्थापना की आवश्यकता पर जोर दिया।

हंसा जीवराज मेहता

बड़ौदा, गुजरात से संबंध रखने वाली हंसा जीवराज मेहता संविधान सभा की प्रमुख सदस्य थीं। वे इस दौरान मौलिक अधिकार उप-समिति, सलाहकार समिति और प्रांतीय संवैधानिक समिति की सदस्य बनी थीं। 15 अगस्त 1947 को आधी रात के कुछ मिनट बाद, मेहता ने “भारत की महिलाओं” की ओर से सभा को राष्ट्रीय ध्वज भेंट किया- जो स्वतंत्र भारत पर फहराया जाने वाला पहला ध्वज था। हंसा ने इंग्लैंड से पत्रकारिता और समाजशास्त्र में पढ़ाई करने के बाद देश की महिलाओं के लिये काम करना शुरू किया। 1945 में उन्हें अखिल भारतीय महिला सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया था। हैदराबाद में आयोजित अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का चार्टर प्रस्तावित किया था।

कमला चौधरी

कमला चौधरी एक हिंदी साहित्यकार के रूप में आजादी के आंदोलन में सक्रीय रहीं। उन्होंने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे आंदोलन के दौरान छह बार जेल भी गईं। उन्होंने महिलाओं केा देश की आजादी के संघर्ष से जोड़ने का काम किया। वे संविधान सभा की सदस्य बनीं और संविधान अपनाए जाने के बाद, उन्होंने 1952 तक भारत की प्रांतीय सरकार के सदस्य के रूप में कार्य किया।

लीला रॉय

संविधान सभा में असम का प्रतिनिधित्व लीला राॅय ने किया था। असम के गोलपाड़ा से संबंध रखने वाली लीला राॅय एक उच्च शिक्षित एवं राष्ट्रीय आंदोलन का समर्थन करने वाले परिवार से आती थीं। उन्होंने देश की महिलाओं के अधिकारों के लिये काफी संघर्ष किया। साथ ही वे कई संगठनों से जुड़ी भी रहीं। 1937 में लीला कांग्रेस में शामिल हुईं और बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना भी की। बंगाल से विधानसभा में चुनी गई एकमात्र महिला सदस्य थीं। वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक करीबी सहयोगी थीं।

मालती चौधरी

एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाली मालती चौधरी की शिक्षा शांति निकेतन से हुई थी। वे बंगाल की प्रगतिशील महिलाओं में से प्रमुख चेहरा थीं। नमक आंदोलन के समय वे कांग्रेस से जुड़ी और अपने पूरे जीवन देश के लिये समर्पित रहीं। स्वतंत्रता के बाद, मालती चौधरी ने संविधान सभा की सदस्य और उत्कल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष के रूप में अपनी भूमिका निभाई। ग्रामीण पुनर्निर्माण में शिक्षा, विशेष रूप से वयस्क शिक्षा के महत्व पर जोर दिया। वह आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी शामिल हुईं। वे टैगोर और गांधी दोनों से बहुत प्रभावित हुईं।

पूर्णिमा बनर्जी

पूर्णिमा बनर्जी उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से संबंध रखने वाली थीं। उन्होंने देश की स्वतंत्रा के लिये संघर्ष किया। सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई।  वे इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति की सचिव भी रहीं। उन्होंने ट्रेड यूनियन के साथ भी काम किया। वे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और कार्यकर्ता अरुणा आसफ अली की छोटी बहन थीं।

राजकुमारी अमृत कौर

अमृत कौर संयुक्त प्रांत से संविधान सभा के लिए चुनी गई थीं। उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान महिलाओं की व्यापक राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करना था। उनका संबंध कपूरथला राजघराने से था। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ पर काफी काम किया। वे रेडक्राॅस सोसाइटी से भी जुड़ी रहीं। स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कैबिनेट पद संभालने वाली पहली महिला बनीं। अखिल भारतीय महिला सम्मेलन केंद्र, दिल्ली में लेडी इरविन कॉलेज और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) कुछ प्रतिष्ठित संगठन हैं जिनमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहीं। 

रेणुका रे

पश्चिम बंगाल से संविधान सभा सदस्य के रूप में उन्होंने विधानसभा में महिला अधिकार मुद्दों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और द्विसदनीय विधायिका जैसे प्रावधानों पर अपना महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया। वे अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में भी शामिल हुईं। महिलाओं के अधिकारों और पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार के अधिकारों के लिए जोरदार अभियान चलाया। 1952 से 1957 तक उन्होंने प. बंगाल विधानसभा में मंत्री के रूप में कार्य किया।

सरोजिनी नायडू

सरोजिनी नायडू जानीमानी भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और कवियत्री थीं। सरोजनी एकमात्र ऐसी महिला हैं, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है। नायडू की कविताओं में बच्चों की कवितायें और देशभक्ति, रोमांस और त्रासदी पर उनकी कविताएं आज भी याद की जाती हैं। स्वतंत्रता के बाद उन्हें संयुक्त प्रांत का राज्यपाल नियुक्त किया गया।

सुचेता कृपलानी

सुचेता कृपलानी को 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भूमिका के लिए याद किया जाता है। उन्होंने 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला शाखा की स्थापना की थी। उन्होंने संविधान सभा के स्वतंत्रता सत्र में वंदे मातरम् गाया। वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री भी थीं।

विजयलक्ष्मी पंडित

एक राजनीतिक कार्यकर्ता, मंत्री, राजदूत और राजनयिक के रूप में विजयलक्ष्मी पंडित ने राष्ट्र निर्माण में महिलाओं की भूमिका में क्रांतिकारी बदलाव लाईं। ब्रिटिश काल में पहली महिला कैबिनेट मंत्री विजयलक्ष्मी पंडित संविधान बनाने के लिए भारतीय संविधान सभा की मांग करने वाले पहले नेताओं में से एक थीं। वे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार जेल भी गईं। संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली विश्व की पहली महिला थीं।


गुरुवार, 7 नवंबर 2024

सौंदर्य मापदंड से बाहर आतीं महिलाएं

महिलाओं के बारे में प्रचलित तमाम सौंदर्य मापदंड जिन्हें किसी महिला ने तो नहीं बनाये हैं, एक एक कर सौंदर्य प्रतियोगिताओं से बाहर हो रहे हैं। इसका एक ही कारण नजर आ रहा है कि महिलाएं मेल गेजके इतर अपने वास्तविक सौंदर्य को देखने लगी हैं। यह उनकी स्त्री अस्मिता और सशक्तिकरण की आहट है।


पिछले दिनों साउथ कोरियन माॅडल चोई सून-ह्वा काफी चर्चित रहीं। चर्चा की वजह थी परदादी की उम्र में उनका मिस यूनीवर्स प्रतियोगिता के लिये भाग लेना। उन्होंने सफेद मोतियों और सिफान की ड्रेस पहनकर अपने सन जैसे बालों के साथ पोतियों की उम्र की सहभागियों के साथ पूरी गरिमा से प्रतियोगिता में भाग लिया। हालांकि 22 वर्षीय हान एरियल ने नवंबर में मैक्सिको सिटी में होने वाली 73वीं मिस यूनीवर्स प्रतियोगिता के लिये अपनी दावेदारी पक्की कर ली है। माॅडल चोई ने अपने पूरे जीवन एक हॉस्पिटल में केयर वर्कर के तौर पर काम करते हुये अपने परिवार की देखभाल की। लेकिन कहीं न कहीं उनके अंदर माॅडलिंग करने की इच्छा विद्यमान रही थी। इसलिये 70 साल की उम्र में उन्होंने अपना माॅडलिंग कैरियर प्रारम्भ किया। 11 साल के अपने कैरियर में तमाम सीढ़ियां चढ़ते हुये उन्होंने सितंबर में मिस यूनीवर्स कोरिया फाइनलिस्ट के 31 प्रतियोगियों के बीच अपनी जगह पक्की कर ली। पत्रकारों से बात करते हुये चोई ने कहा कि इस उम्र में भी मेरे पास अवसर ढूढ़ने और चुनौती लेने का साहस था। मैं चाहती हूं कि लोग मुझे देखें और महसूस करें कि जब आप अपनी मनचाही सफलता चाहते हैं और उसे हासिल करने की चुनौती देते हैं, तब आप कही अधिक स्वस्थ और खुश महसूस कर सकते हैं।

इसी तरह की खबर इस वर्ष जून में अमेरिका से आयी। एल पासो की 71 वर्षीय माॅडल मारिसा टेइजो सुर्खियों में आ गई, जब उन्होंने मिस टेक्सास यूएसए प्रतियोगिता में सबसे उम्रदराज प्रतियोगी के रूप में भाग लिया। यह प्रतियोगिता मिस यूएसए के लिये प्रारंभिक प्रतियोगिता थी। यद्यपि टेइजो खिताब नहीं जीत पाई, पर उन्होंने बहुत सी महिलाओं के न केवल दिल जीत लिये, बल्कि उनके आंखों में अपने सपनों को पूरा करने के ख्वाब भर दिये। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि मैंने बहुत सी महिलाओं को फिट और स्वस्थ रहने के लिये प्ररित कर सकती हूं। मेरा उद्देश्य भी यही था।....अगर तुम अपना ख्याल रख सकते हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती... मैं चेहरे की बात नहीं कर रही हूं। मैं फिट रहने, स्वस्थ शरीर रखने और मजबूत होने की बात कर रही हूं। टेइजो ने मीडिया में अपनी कई बातचीत में बताया- महिलाओं को दुबली होने के बजाय स्वस्थ और मजबूत होने का प्रयास करना चाहिये। वे खुद हफ्ते में तीन बार कसरत करती, वजन उठाने की प्रैक्टिस करती हैं। वे अपने डाॅगी को पास की पहाड़ियों पर घुमाकर कार्डियो भी करती हैं और अन्य दिनों वे स्पिन भी करना पसंद करती हैं।

ये दोनों घटनायें बता रही हैं कि स्त्री सौंदर्य की रूढ़ मान्यताएं (जिसमें उम्र और शारीरिक मापदंड शामिल थे) धराशायी हो गई हैं। यह तब संभव हुआ है जब पिछले साल मिस यूनीवर्स प्रतियोगिता में भागीदारी के लिये निर्धारित 18 से 28 साल की उम्र सीमा को हटा लिया गया है। इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं में इस तरह की सीमाओं की हमेशा से आलोचना की जाती रही हैं। वास्तव में इतना बड़ा परिवर्तन तब आया, जब महिलाओं की होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिता में एक महिला का मालिकाना हस्ताक्षेप हुआ। 2022 में मिस यूनीवर्स आॅर्गनाइजेशन को 20 मिलियन डाॅलर में ट्रांसजेंडर उद्यमी ऐनी जक्काफोंग जकराजुताटिप ने खरीद लिया। तब इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं में क्रांतिकारी परिवर्तन एक के बाद एक हुये। 2023 में ऐनी जिन्हें ऐनी जेकेएन के नाम से भी जाना जाता है, ने 2023 के सीजन के लिये विवाहित, तलाकशुदा और गर्भवती जैसी कैटागरी में बंटी महिलाओं पर से प्रतिबंध हटा लिये थे। ऐनी ने मीडिया से बात करते हुये कहा था कि मेरी नियंत्रणवाली मिस यूनीवर्स मानती है कि सुंदरता बाहरी और आंतरिक दोनों होती हैं।... हम मेल गेज से दूर छोटे-छोटे कदम उठा रहे हैं और मैं सीख रही हूं कि कैसे करना है।

ऐनी जेकेएन के इन छोटे-छोटे लेकिन प्रभावी परिवर्तनों से इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं का स्वरूप काफी बदलने वाला है। ऐनी जेकेएन ने अपने नियंत्रण वाली कंपनी में यह परिवर्तन कर लिया है, तो इसका प्रभाव भविष्य में तमाम सौंदर्य प्रतियोगिताओं में अवश्य पड़ेगा, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। साउथ कोरियन माॅडल चोई सून-ह्वा ने अपनी सफलता के लिये लड़ने और चुनौतियों का सामना करके खुशी ढूंढ़ने को इस प्रतियोगिता का सार समझा है, वहीं माॅडल मारिसा टेइजो ने शारीरिक रूप से स्वस्थ और मजबूती को अपना लक्ष्य बनाया है। इन थोड़े से बदलाव के बाद लोगों की सोच खासकर महिलाओं की, जो मेल गेजसे अपने सौंदर्य को गढ़ती दिखती थी, कितना बदलाव आ सकता है यह भविष्य में जरूर दिखेगा। वास्तव में यह कितना हास्यास्प्रद दिखता है कि कोईयह चाहता है कि हम कैसे दिखे, और हम उसी ढांचे और खाके में ढलने के लिये मजबूर हो जाते हैं या कर दिये जाते हैं। यह विभिन्न सौंदर्य प्रतियोगिताएं वास्तव में इस बात को आगे बढ़ाने का काम कई दशकों से कर रही थीं।

महिलाओं के सौंदर्य से साहित्य भरा पड़ा है। नख से शिख तक महिलाओं के सौंदर्य का वर्णन करने में तरह-तरह की उपमाएं रची गई हैं। ये सभी उपमाएं महिलाओं क शारीरिक सौंदर्य को लेकर ही है। आंख, नाक, होठ, बाल, हाथ, कमर आदि सभी के लिए एक-एक मापदंड सेट किया गया है। साथ ही साथ एक निश्चित उम्र भी महिलाओं के लिये मापदंड मानी गई है। सबसे बड़ी बात उसका अविवाहित होना भी है। यह सब अनायास नहीं है। यह उस उपभोगका प्रस्तुतिकरण है जिसमें एक स्त्री स्त्री न होकर सामान होती है। इसलिए उसे एक मापदंड, एक आकार में ढली हुई होना ही चाहिए। कभी न कभी जब हम किसी को सुंदर मानते हैं, तब हम उसका बाहरी रूप ही देख रहे होते हैं। हम उसे सौंदर्य के प्रचलित मापदंड पर कस रहे होते हैं। विभिन्न सौंदर्य प्रतियोगिताएं भी यही कर रही हैं। कमोवेश ये सभी मापदंड महिलाओं पर भारी पड़ रहे हैं। उनका सुंदर होना सांस लेने जितना जरूरी हो गया है। सौंदर्य उत्पाद, ब्यूटी पार्लर, ब्यूटी सर्जरी और बोटेक्स इन्हीं सौंदर्य मापदंडों की आधुनिक उपज हैं। इसी कमजोरी को ब्यूटी मार्केट बहुत अच्छे से भुना रहा है।

महिलाओं की वास्तविक विडंबना यही है। जो वह है नहीं हैं, वह उन्हें बनना होता है। इसके लिए चाहे मेकअप सहारा लेना पड़े या फिर सर्जरी का। नहीं तो उन्हें सुंदर होने की स्वीकृति नहीं मिल सकती। यही बात ग्लैमर जगत और विभिन्न सौंदर्य प्रतियोगिताएं स्थापित करती रही हैं। जून, 2018 में मिस अमेरिका आॅर्गनाइजेशन ने अपनी प्रतियोगिता से स्वीमिंग सूट खतम कर दिया था। तब ग्रेचन कार्लसन जो मिस अमेरिका ऑर्गनाइजेशन की चेयरवुमन थीं, ने कहा था कि हम अपने प्रतियोगियों को उनके शारीरिक मापदंडों के अनुसार और जज नहीं कर सकते। यह सौंदर्य तमाशा नहीं, प्रतियोगिता है।कार्लसन 1989 में मिस अमेरिका भी रह चुकी हैं। लगभग सौ वर्ष पुरानी मिस अमेरिका प्रतियोगिता से महिलाओं का वास्तुनिष्ठ प्रस्तुतिकरण की परिचायक स्विमिंगसूट राउंड हटाने के लिए उन्हें बल मिला। उन्होंने इस बारे में आगे कहा कि इस राउंड की जगह प्रतियोगियों से उनके पैशन, बुद्धिमत्ता और समझदारी दर्शाने वाले प्रश्न पूछे जाएंगे। इसी तरह मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता से स्विमिंगसूट राउंड खत्म किये जाने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए 1994 की विश्व सुंदरी ऐश्वर्या राय ने कहा था कि मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के 87 प्रतियोगियों में से मेरे पास स्विमिंग सूट पहनने वाली बॉडी सेप नहीं था, फिर भी मैं मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता जीत गई।

आज इन प्रतियोगिताओं से इवनिंग गाउन राउंड भी खत्म किए जाने पर विचार किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि प्रतियोगियों को वह पहनना चाहिए जिसमें वे अपने आप को ठीक से व्यक्त कर सकें। सौंदर्य प्रतियोगिताओं में इस किस्म के बदलाव स्त्री अस्मिता की चेतना को दिखा रहा है। इसे अभी काफी आगे बढ़ना होगा।