मंगलवार, 4 मार्च 2025

क्या कहती है पढ़ी-लिखी मांओं की बढ़ती संख्या

 किसी भी देश के विकास में महिला और पुरुषों की भूमिका समान होता है, अगर इनमें से कोई भी किसी भी दृष्टि से कमजोर होगा, तो समाज और देश के विकास में बाधा उत्पन्न होगी। उचित और संपूर्ण शिक्षा वह फैक्टर है जो महिला और पुरुष दोनों को समान रूप से प्रभावित करते हैं, लेकिन महिलाओं का अशिक्षित रह जाना पूरे समाज को प्रभावित करता है। इसलिये यदि मांएं अधिक शिक्षित हो रही हैं, तो यह उत्साहित करने वाली बात है।


  • एक पढ़ी-लिखी मां सिर्फ अपने परिवार का ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का भविष्य संवारती है।
  • शिक्षित मां का हाथ थामकर बच्चे न केवल अक्षर पहचानते हैं, बल्कि जीवन के मूल्यों को भी समझते हैं।
  • अगर मां शिक्षित होगी, तो एक नहीं, बल्कि दो पीढ़ियां शिक्षित होंगी।
  • पढ़ी-लिखी मां अपने बच्चों के जीवन की पहली और सबसे प्रभावी गुरु होती है।
  • एक शिक्षित मां अपने बच्चों को केवल सपने देखना नहीं सिखाती, बल्कि उन्हें पूरा करने का हौसला भी देती है।
  • अगर हर मां शिक्षित हो जाए, तो पूरा देश तरक्की की राह पर दौड़ने लगेगा।


इंटरनेट पर तैरते इन ढेर सारे उपर्युक्त कथनों को यहां देने का अर्थ केवल इतना है कि एक पढ़ी लिखी मां के महत्व समझा और समझाया जा सके। और यही बात वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट-2024 ने अपने हालिया प्रकाशित सर्वे में आज साबित कर दिया है। खबर है कि 2016 से 2024 के दौरान ग्रामीण मातृ शिक्षा के स्तर में महत्वपूर्ण सकारात्मक परिवर्तन हुआ है, जो देश की आधी आबादी के लिये तो उत्साहवर्धक है ही, पर उससे कहीं अधिक हमारे समाज के लिये महत्वपूर्ण है। कभी स्कूल न जाने वाली मांओं (5-16 आयु वर्ग के बच्चों की) का अनुपात 2016 में 46.6 से घटकर 2024 में 29.4 फीसदी हो गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि अब किशोर उम्र के बच्चों की मांएं अधिक संख्या में पढ़ी-लिखी हो चुकी हैं। यह संभव हुआ है साक्षर भारत मिशन, सर्व शिक्षा अभियान (अब समग्र शिक्षा), बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, और साथ ही मिड डे मील के संयुक्त प्रयास से। इन्होंने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिसका परिणाम आज दिख रहा है।

एएसईआर एक राष्ट्रव्यापी ग्रामीण घरेलू सर्वेक्षण है जिसे एनजीओ प्रथम ने देश के 605 ग्रामीण जिलों में 6,49,491 बच्चों के पढ़ने के स्तर और अंकगणित पर परीक्षण करके किया है। यह सर्वेक्षण बच्चों के नामांकन और सीखने के स्तर को देखने के अलावा, प्रत्येक बच्चे के माता-पिता के स्कूल के वर्षों की संख्या के बारे में जानकारी एकत्र करता है। एएसईआर-2024 की यह रिपोर्ट मातृ शिक्षा के बढ़ते आंकड़ों पर ही नहीं है, इसके समग्र अध्ययन से यह भी पता चलता है कि महिलाएं उच्च शिक्षित भी हो रही हैं। कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई करने वाली महिलाओं की संख्या में इस दौरान वृद्धि देखी जा रही है। 2016 में जहां 9.2 फीसदी मांओं ने कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई प्राप्त की थी, वहीं आठ वर्ष बाद यह 10 फीसदी बढ़कर 2024 में 19.5 फीसदी बढ़ गईं।

एएसईआर-2024 की यह रिपोर्ट मातृ शिक्षा के बढ़ते आंकड़ों पर ही नहीं है, इसके समग्र अध्ययन से यह भी पता चलता है कि महिलाएं उच्च शिक्षित भी हो रही हैं। कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई करने वाली महिलाओं की संख्या में इस दौरान वृद्धि देखी जा रही है।

अगर राज्यवार आंकड़ों की बात की जाये, तो केरल ने न केवल इस दौरान सबसे अधिक वृद्धि देखी गई हैै। मांओं के स्कूली शिक्षा के स्तर की बात करें तो यह सबसे अच्छा प्रदर्शन भी रहा है। 2016 में 40 फीसदी मांओं ने कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई की, जो 2024 में बढ़कर 69.6 फीसदी हो गई यानी पूरे 29 फीसदी की वृद्धि देखी गई। सभी राज्यों में 2016 और 2024 दोनों वर्षों में केरल ही ऐसा राज्य था, जहां मांएं कक्षा 10 से आगे की शिक्षा प्राप्त करने के मामले में सबसे अधिक रहीं। केरल के बाद हिमाचल प्रदेश का स्थान आता है, जहां पिछले आठ वर्षों में इस तरह के आंकड़े में लगभग 22 फीसदी की वृद्धि देखी गई है यानी 2016 में 30.7 फीसदी मांओं ने कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई की थी, वहीं 2024 में यह 52.4 फीसदी हो गईं।

तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल सभी में कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई करने वाली मांओं के प्रतिशत में 10 फीसदी से अधिक की वृद्धि ही हो सकी। इस मोर्चे पर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य मध्य प्रदेश था, जहां 2016 में 3.6 फीसदी से 2024 में 9.7 फीसदी मांएं ही कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई कर सकीं थी। अगर इस दौरान किशोर ग्रुप बच्चों के पिताओं की बात की जाए, तो महिलाओं से कमतर प्रदर्शन करते नजर आये हैं। पिछले आठ वर्षों में कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई करने वाली माताओं और पिताओं के प्रतिशत के बीच का अंतर कम हुआ है। 2016 में कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई करने वाले पिताओं का प्रतिशत माताओं की तुलना में 08 फीसदी था। यह 2024 में घटकर लगभग 05 फीसदी रह गया।

इस मोर्चे पर सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य मध्य प्रदेश था, जहां 2016 में 3.6 फीसदी से 2024 में 9.7 फीसदी मांएं ही कक्षा 10 से आगे की पढ़ाई कर सकीं थी। अगर इस दौरान किशोर ग्रुप बच्चों के पिताओं की बात की जाए, तो महिलाओं से कमतर प्रदर्शन करते नजर आये हैं।

सरकार द्वारा चलाए गए साक्षर भारत मिशन, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सर्व शिक्षा अभियान और मिड-डे मील जैसी योजनाओं ने महिलाओं को शिक्षा के प्रति प्रेरित किया है, इस तथ्य से तो इंकार नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कई राज्यों में महिला साक्षरता केंद्र और रात्रि पाठशालाएं भी चलाई जाती थी, जिससे घरेलू महिलाओं को पढ़ने-लिखने की सुविधा हो जाती थी। इसके अतिरिक्त यदि हाल के दशक पर नजर डाली जाये, तो स्मार्टफोन और इंटरनेट की बढ़ती पहुंच ने महिलाओं को घर बैठे ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध कराने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पहले जहां ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की शिक्षा को अनदेखा किया जाता था, वहीं सरकारी अभियानों के प्रभाव और नजदीक ही उपलब्ध शिक्षा केंद्रों ने बेटियों को विद्यालय की चैखट तक पहुंचाने में मदद की। इसी का परिणाम है कि नई पीढ़ी की मांएं अधिक शिक्षित हो रही हैं। महिला स्वयं सहायता समूहों और विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने महिलाओं को शिक्षा के प्रति जागरूक किया है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं ने शिक्षा के महत्व को समझा और उसे अपनाया। ग्रामीण भारत में महिलाओं की शिक्षा में यह सुधार समाज के लिए एक सकारात्मक संकेत है। इससे न केवल अगली पीढ़ी को लाभ मिलेगा, बल्कि पूरे देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति को भी गति मिलेगी। यदि यह प्रवृत्ति इसी तरह जारी रही, तो आने वाले वर्षों में ग्रामीण भारत पूर्ण साक्षरता की ओर अग्रसर हो सकेगा, जो 2047 के विकसित भारत के लिये एक बढ़ते कदम का द्योतक हो सकता है।