सन्नाटा
इस शहर के आधी रात का
चुभ रहा है मुझे।
बगल की बिल्डिंग के मुंडेर पर बैठे
कबूतर ने अपने डैने खोलकर अगड़ाई ली।
कहीं दूर बारिस के बाद की आखिरी बूंद
‘टप्प’ से गिरी है।।
आज पास के हनुमान मंदिर के पास
पीपल के पेड़ के दरम्यान
गुजरती हवा भी सुनाई दी।।।
ठीक उसी तरह से जैसे
पंद्रह दिन पहले पड़ोस में पैदा हुए
नवजात बच्चे के रोने की अवाज
सुनाई दी पहली बार।।
शायद उसे इस समय अपनी मां की जरूरत हो।
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कैसे बेसुध् सो रहा है यह मेट्रो शहर ।
बहुत खल रहा है
मेट्रो जैसे शहर का यह
निशब्द सन्नाटा।
जहां आधी रात के बाद ही
पेज थ्री पार्टियां जवान होती है।
इस दौरान
बीपीओ'ज में युवा बना रहे होते है अपना भविष्य
दीदी के कारण सरकार हिल चुकी है
इसीलिए दस जनपथ से लेकर रेसकोर्स तक
होना चाहिए था राजनितिक कोलाहल।।।
पर नहीं....
सब सन्नाटा है।
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हाल में बने यमुना एक्सप्रेस वे पर कोई
फरार्टा कार भी नहीं दौड़ रही है?
क्या कोई फेसबुक पर चैटिंग भी नहीं कर रहा होगा?
क्या हो गया है इस 24x7 वाले शहर को।
उफ़ ...
इस शहर के लायक नहीं है यह
हांफता, मरता सन्नाटा।।।
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हम्म... मम
अच्छा है...
सुबह होने में अब कुछ देर ही बाकी है।
3 टिप्पणियां:
कुछ भी हो,
अँधेरा हो या सन्नाटा ..... सुबह होने को है तो सब जागेंगे ही
एक आलसी को नहीं मालूम कि सुबह भी होती है।
बहुत सुन्दर कविता. लेकिन कविता के शीर्षक के नीचे अपना नाम अवश्य देना चाहिए. पसंद आने पर कभी किसी अन्य की कविता भी प्रकाशित कर सकती हैं. इसलिए आवश्यक है कि हर रचना के साथ नाम लिखा जाए.
रूपसिंह चन्देल
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