हम ‘भूख’ में है,
जैसे कोई युवा होता है प्यार में।
इसमें कोई छायावादी बिंब नहीं है हमारा,
बता सके कि-
हम भी भूखे है।
इस भूख के पीछे,
पीढि़यों का अ-लिखा इतिहास है,
जो पढ़ाया नहीं जाता है कहीं।
इसलिए शोद्यार्थियों ने
कभी कोई थीसिस भी नहीं लिखी।
दूसरी तरफ-
वे लोग उल्टियां कर रहे है,
हमारी भूख से बड़ी है उनकी भूख
इसलिए आज हम उनकी उदरपूर्ति के लिए
अपने -आपको
समर्पित करते हैं पूरी तरह से।
आओ, निगल लो हमें।
ताकि...
तुम्हारे भरे पूरे पेट में बैठकर ही
तुम्हारी उल्टियों को नियंत्रित कर सके।
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यही है-
सत्ता की भूख और हमारी भूख का
बुनियादी अंतर
( खंडवा में पिछले 17 दिनों तक किसानों द्वारा किये गए जल सत्याग्रह के नाम )
3 टिप्पणियां:
यथार्थ को बयां करती...बहुत सुन्दर रचना.
अत्युत्तम रचना
शाश्वत सत्य की गहनअभिव्यक्ति के लिए बधाई..........प्रतिभा जी !
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