एक छोटे से पिजड़े में कैद
बेहद रंगीन बे-जुबान
दो चिडि़या
जो न तो चहकती है,
न हिलती, न डुलती है।
यहां तक कुछ खाने पीने को
भी नहीं मांगती।
कभी कभी डोलती हवा ही
चिडि़या समेत पिजड़े में
जान डालने में
सामर्थ होती है।
फिर भी न जाने क्यों मेरा मन
उन्हें आजाद कर
आकाश में उड़ते देखने का होता है
एकबारगी।
बेहद रंगीन बे-जुबान
दो चिडि़या
जो न तो चहकती है,
न हिलती, न डुलती है।
यहां तक कुछ खाने पीने को
भी नहीं मांगती।
कभी कभी डोलती हवा ही
चिडि़या समेत पिजड़े में
जान डालने में
सामर्थ होती है।
फिर भी न जाने क्यों मेरा मन
उन्हें आजाद कर
'इंडिया गेट' पर असली को धोखा देती ..चहचहाती बे- जुबान चिड़िया |
एकबारगी।
3 टिप्पणियां:
very nice expression .
dhanywad ..Shalini ji
सटीक ....प्रभावी, सच कहती रचना
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