शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

एक शाश्वत युद्ध

इन दस महीनों मेँ
कभी भी मैंने
तुम्हारा वास्तविक नाम जानने की
कोशिश नहीं की
तुम कहाँ की रहने वाली हो
इसमे भी मेरी कोई दिलचस्पी नहीं बनी
तुम्हारे भाई बहन कितने है ?
यह भी जानने की इच्छा
कभी नहीं पनपी
मन मेँ अगर कोई इच्छा थी
तो, बस यही
कि इंसाफ हो
तुम्हें इंसाफ मिले,
भरपूर इंसाफ
उस अन्याय के खिलाफ
जिसके विरुद्ध तुम
छेड़ कर गई हो
एक शाश्वत युद्ध
इस युद्ध को जिलाए
रखना है हमें
तुम्हारे जाने के बाद
अलाव मे एक चिंगारी
दबाये रखना है
किसी दामनी, निर्भया
या ज्योति के लिए!!

(13 सितंबर को रेयरेस्ट आफ द रेयर केस पर फैसला आने के बाद...)

3 टिप्‍पणियां:

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर बेहतरीन प्रस्तुती,धन्यबाद।

Arun sathi ने कहा…

sundar

प्रतिभा कुशवाहा ने कहा…

आप सभी का धन्यवाद