शनिवार, 7 सितंबर 2013

ओस की बूंद

‘रात’ कभी भी
एक क्षण को भी
दम नहीं मारती।
जबकि सभी
उसकी गोद में
अपनी थकान लेकर
समा जाते है
बेसुध बेखबर।
और 'रात'....
पूरी रात मुस्तैदी से पहरा
बिठाए रखती है
इस कायनात में
कि कहीं
किसी के सपने में
खलल न पड़ जाए!

0000
सारी रात
सभी को
मीठे सपने
बुनने देने का
परिणाम होता हैं
सुबह घास के
तिनकों पर
बिखरी...
निर्मल, ठंडी
ओस की बूंदें
जैसे कोई किसान
अभी अभी
पसीना बहाकर
लौटा हो
खेत से।
मेरे गाँव 'पतरसा ' मे एक धूधली  शाम का चित्र 

3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सारी रात
सभी को
मीठे सपने
बुनने देने का
परिणाम होता हैं
सुबह घास के
तिनकों पर
बिखरी...
निर्मल, ठंडी
ओस की बूंदें
जैसे कोई किसान
अभी अभी
पसीना बहाकर
लौटा हो
खेत से।
very nice .

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।

देवदत्त प्रसून ने कहा…

अच्छी छोटी पंक्तियों की रचना के रूप में अच्छी स्तुति है !