इन
दिनों फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा का एक वीडियो काफी चर्चित हो गया। इस वीडियो में प्रियंका बगैर किसी मेकअप के कैमरे को फेस कर रही हैं। इस दो मिनट, 18 सेकेंड के वीडियों में प्रियंका लड़कियों और महिलाओं से खुद पर संदेह करने को लेकर सवाल करती नजर आ रही हैं। वे इस बात पर सवाल खड़ा कर रही है कि महिलाएं अपने बाहरी एपीरेंस के प्रति संदेह के स्तर तक सजग क्यों रहती हैं? वे कैसी
दिख रही हैं, उन्हें कैसा दिखना चाहिए, और
इसके लिए क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए, जैसे सवालों में ही उलझी
रहती हैं। जबकि इसके विपरीत पुरुषों को इन सभी सवालों से बहुत लेना-देना नहीं होता है। महिलाओं को प्राकृतिक रूप से मिली अपनी शरीरिक रूप-रेखा पर विश्वास
न होने के कारण वे मेकअप, सौंदर्य उपचार, जीरो
फिगर के लिए एक हद से आगे गुजर जाती हैं। वे अपनी बाहरी रूप-रेखा के प्रति
इतनी चिंतित होती हैं कि अपनी सेल्फी भी फिल्टर या फोटोशाप करके शेयर करने में विश्वास करती हैं। प्रियंका इसका कारण युगों से चली आ रही महिलाओं की कंडीसनिंग को मानती हैं। इस सामाजिक कंडीसनिंग ने वर्षों से यही सिखाया है कि एक महिला होने के नाते हमें कैसे रहना है, कैसे दिखना है। और सौंदर्य
के विभिन्न मापदंडों पर कैसे खरा उतरना है। हमें ऐसा क्यों करना पड़ता है क्योंकि हम दोयम दर्जे के नागरिक हैं। तो जब आप को एक-दो घंटे
में बाथरूम जाकर खुद के लुक को चेक करने की जरूरत महसूस हो, तो इस
बारे में ठहर कर जरूर सोचें। आप जैसे भी हैं, खुद से प्यार
करना सीखें।
खुद
पर संदेह करना, कमजोर आत्मविश्वास को दिखाता
है। लड़कियों और स्त्रियों के मामलों अगर यह दिखता है, तो इसे
सिमोन बाउवार के इस कथन से समझा जा सकता है कि स्त्री पैदा नहीं होती, बल्कि बना दी जाती
है। पिछले साल सोशल मीडिया पर सेल्फी विदआउट मेकअप नाम से अभियान चलाया गया। यह अभियान ईश्वर प्रदत या प्राकृतिक सौंदर्य को मान्यता देने के लिए था। इस अभियान में महिलाओं ने बगैर किसी मेकअप के अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर कीं। इस पूरे अभियान में यह दिखा कि हमें ईश्वर की तरफ से दिए गए उपहार रूपी रूप-सौंदर्य पर शक
क्योंकर होना चाहिए। विभिन्न तरह के मेकअप से सौंदर्य मापदंडों की पूर्ति के लिए क्यों पागलपन की हद तक पागल रहना? क्या इस अभियान
के बाद मेकअप करना बंद हो गया या मेकअप कंपनियां बंद हो गईं? यह सोचना
एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं होगा। वर्षों की कंडीसनिंग ऐसे नहीं जाती।
सौंदर्य
के प्रति सजगता के पागलपन को बहुत कुछ ग्लैमर जगत बढ़ाते नजर आते हैं या इसे दूसरे ढंग से कहें तो लोग सौंदर्य के लिए पागल हैं, इसलिए ये जगत
उसे केवल भुना रहा होता है। टीवी, अखबार, सोशल
मीडिया पर आने वाले सौंदर्य प्रसाधनों के विज्ञापनों पर एक नजर रखने से ही पता चल जाता है कि यह कितने हास्यास्पद हैं। ये विज्ञापन किसी भी सौंदर्य मापदण्ड के न होने पर हमारे मन में घृणा के स्तर तक घृणा भर देते हैं। चाहे वे किशोरावस्था में चेहरे पर आएं मुहासे हों, शरीर से निकलने
वाला पसीना, या फिर
त्वचा का कालापन, या फिर
एक समय के बाद सफेद हुए बाल या चेहरे की झुर्रियां। ये सौंदर्य प्रसाधनों के विज्ञापन इन शारीरिक अवश्याम्भी परिवर्तनों को भी भुना ले जाते हैं। अगर ऐसा न होता, तो योग
से सभी समस्याओं का हल बताने वाले बाबा रामदेव सौंदर्य प्रसाधनों की एक लंबी रेंज न लांच करते। यूं ही नहीं ग्लोबल कॉस्मेटिक्स मार्केट 2009 के भयंकर मंदी के बाद निरंतर बढ़ ही रहा है। 2017 में
एसोचैम और रिसर्च एजेंसी एमआरएसएस ने एक अध्ययन के बाद बताया कि देश में कॉस्मेटिक और ग्रूमिंग मार्केट का साइज बढ़कर 2035 तक 35 बिलियन डॉलर हो जाएगा।
यह इसलिए क्योंकि किशोरावस्था में ही बच्चे अपने लुक्स के प्रति सजग हो रहे हैं। यह सर्वे यह भी कहता है कि 68 फीसदी युवा इस बात
में विश्वास करते हैं कि इन चीजों के प्रयोग से उनका आत्मविश्वास बढ़ जाता है। बाजार विशेषज्ञों की माने तो इसमें यह वार्षिक वृद्धि 25 प्रतिशत की दर
से बढ़कर 2025 में 20 बिलियन डॉलर तक पहुंच
सकता है। यह वृद्धि
यूं ही नहीं है।