एक सौ छह साल वह उम्र होती है, जब कोई भगवान का भजन करता है या किसी का सहारा लेकर अपना बचा हुआ जीवन जीता है। पर ऐसे भी जीवट वाले लोग होते हैं, जो इन बनी-बनाई धारणाओं को तोड़ देते हैं। रामबाई एक ऐसा ही नाम हैं। जिन्होंने उम्र की सीमाओं को तोड़ते हुए एक मिसाल कायम कर दी है। जानते हैं उनकी इस सफलता के पीछे की कहानी को।
एक सौ छह साल की रामबाई तब समाचारों की सुर्खियां बटोरने लगीं, जब उन्होंने लाठी पकड़कर चलने की उम्र में फर्राटा दौड़ में एक नहीं, तीन स्वर्ण पदक जीत लिये। खासतौर से सोशल मीडिया में उन्हें इस उपलब्धि के लिए खूब सराहा गया। उनके गले में पड़े हुये मेडल और उनकी मासूम हंसी वाली फोटो देखकर नहीं कहा जा सकता कि वे हमेशा से किसी दौड़-भाग वाले खेल में हिस्सा लेना चाहती थीं, क्योंकि उनकी घरेलू जिंदगी ही दौड़-भाग वाली थी। जब जिंदगी के तीसरे पहर में उन्हें नाती-पोतो, परनाती से भरे घर में समय उनके साथ सुस्ताने लगा, तब भी उन्होंने ऐसे किसी कॉम्पिटिशन में भाग लेने और जीतने की नहीं सोची होगी, क्योंकि उनका अब तक का जीवन ही किसी ट्राफी से कम नहीं था। फिर भी उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में ऐसे किसी कॉम्पिटिशन में न केवल भाग लिया, बल्कि शानदार जीत भी हासिल की। ऐसा उन्होंने क्यों और कैसे कर लिया, यही जानने में आज हमारी, सबकी दिलचस्पी बनी हुई है।
जिंदगी की रेस को सफलता पूर्वक क्वालीफाई करने वाली हरियाणा की रामबाई ने उत्तराखंड में आयोजित हुई 18वीं युवरानी महेंद्र कुमारी राष्ट्रीय एथलेटिक्स चैंपियनशिप में बुजुर्ग खिलाड़ियों के ग्रुप खेल में भाग लिया। यहां 100 मीटर रेस में उन्होंने पहला स्थान प्राप्त करके गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इसके साथ-साथ एक के बाद एक 200 मीटर दौड़, रिले दौड़ में गोल्ड मेडल जीत कर इतिहास बना दिया। यहां वे अकेली ही प्रतिस्पर्धाओं में भाग नहीं ले रही थीं, बल्कि उनकी बेटी और पोती भी दूसरी स्पर्धाओं में भाग ले रही थीं। अपनी तीन पीढ़ियों के साथ इन स्पर्धाओं में जीतकर उन्होंने इतिहास भी बनाया।
प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेने की उनकी कहानी आज की सफलता से शुरू नहीं होती है। बल्कि अपनी पोती शर्मीला की प्रेरणा और पंजाब की 100 साल की एथलीट मानकौर से प्रेरणा लेकर उन्होंने भी मैदान में उतने की ठानी। पर यह सब आज जितना आसान नहीं था। चार लोग क्या कहेंगे, जैसी चीजें उनके दिमाग में भी थीं। पर इन सबसे पार पाने को ही साहस कहते हैं, जिसका नतीजा आज हम सब के सामने है। दो साल पहले ही जून 2022 उन्होंने अपनी 104 वर्ष की अवस्था में दौड़ प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया था। तब उन्होंने गुजरात के बडोदरा में नेशनल ओपन मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप में दोहरा स्वर्ण पदक जीता था। यहां उन्होंने 100 मीटर की दौड़ को केवल 45.50 सेकंड में पूरी करके मानकौर का रिकॉर्ड तोड़ दिया था। आज भी यह उनके नाम का वर्ल्ड रिकॉर्ड है। पिछले दो सालों में रामबाई 14 अलग-अलग इवेंट में लगभग 200 मेडल जीत चुकी हैं। वे देश के बाहर भी जाकर दूसरी प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेती हैं।
हरियाणा के चरखी दादरी जिले के गांव कादमा की रहने वाली रामबाई ने अपना पूरा जीवन घर और खेत में काम करते हुये बिताया है। आज वे इस गांव की सबसे बुजुर्ग महिला हैं और उन्हें गांववाले प्यार से ‘उड़नपरी परदादी’ कहकर बुलाते हैं। वे आज भी यहां गांव वाला साधारण जीवन व्यतीत करती हैं। गांव के संसाधनों पर ही वे अपना नियमित और संयमित जीवनचर्या जीतीं हैं। खुद को फिट रखने के लिए रोज सुबह जल्दी उठकर दौड़ लगाती हैं। दही, दूध, चूरमा और हरी सब्जियों से वे अपनी सेहत का ख्याल रखती हैं। खासतौर पर वे शुद्ध शाकाहारी हैं और अपनी सेहत को ठीक रखने के लिए वे दूध और दूध से बने व्यंजनों का भरपूर उपयोग करती हैं। उनके चेहरे का आत्मविश्वास बताता है कि वे आगे भी कई और पदक जीतने वाली हैं।
(पिछले दिनों 'युगवार्ता' पत्रिका में प्रकाशित)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें