पेरिस में 1900 में पहली बार महिलाओं ने इन खेलों में शामिल होने की अनुमति मिली थी, तब कोई नहीं सोच सकता था कि महिलायें अपने घरेलू जिंदगी से निकलकर हर तरह के खेलों में न केवल भाग लेंगी, बल्कि अच्छा प्रदर्शन भी कर सकेंगी। इन वर्षों में 1900 से 2024 तक महिलाओं की ओलंपिक में भागीदारी 22 से 5,250 तक पहुंच गई। यह यात्रा बहुत ही अद्भुत और संघर्ष भरी रही, इसे स्वयं महिलाओं को भी जानना चाहिये।
आधी आबादी की दृष्टि से मार्च से अप्रैल के बीच खेल के मैदान से दो शानदार खबरें आ चुकी हैं। पहली, 20 मार्च को जिम्बाब्बे की क्रिस्टी कोवेंट्री अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति की अध्यक्ष चुनी गईं। जिम्बाब्बे की खेल मंत्री और दो बार की ओलंपिक तैराकी स्वर्णपदक विजेता ने सात उम्मीदवारों के इस चुनाव में पहले दौर में ही शानदार जीत हासिल की। 131 साल के इतिहास में इस पद को पाने वाली क्रिस्टी न केवल पहली महिला बल्कि पहली अफ्रीकी भी हैं। अब तक की सबसे युवा (41 वर्ष) क्रिस्टी कोवेंट्री को इस पद पर कुल आठ साल यानी 2033 तक कार्यरत रहेंगी।
दूसरी, 10 अप्रैल को खबर आई कि होने वाले लाॅस एंजिल्स ओलंपिक में पहली बार पुरूषों की तुलना में ज्यादा महिलाएं हिस्सा लेंगी। यह आंकड़ा महिला खिलाड़ियों के पक्ष में तब झुक गया, जब ओलंपिक समिति ने महिलाओं के टूर्नामेंट में दूसरे खेलों में चार टीमों का इजाफा किया। महिलाओं के वाॅटर पोलो में 2 टीमों और मुक्केबाजी में एक अतिरिक्त भार वर्ग जोड़ने से कुल टीमें क्रमशः 12 और 07 हो गईं। इस आंकड़ों को प्रभावित करने वाला दूसरा कारण पुरुषों की फुटबाॅल प्रतियोगिता को 16 टीमों से घटाकर 12 कर दिया गया है। इस तरह अब 36 खेलों में महिलाओं के पास पुरुषों 5,543 की तुलना में ज्यादा भागीदारी 5,655 होगी।
पेरिस ओलंपिक 2024 में आधी आबादी के लिये खुशी की बात थी कि इस खेल में महिलाओं की भागीदारी का हिस्सा 50 फीसदी पहुंच गया था। ओलंपिक इतिहास में इसे पूर्ण लैंगिक समानता वाला आयोजन कहा जा सकता है। इस आयोजन में कुल 10,500 खिलाड़ियों ने भाग लिया था जिसमें पुरुष और महिला खिलाड़ियों की संख्या क्रमशः 5250, 5250 थी। इस आयोजन में कुल महिला स्पर्धाएं 152 एवं पुरुष स्पर्धाएं 157 एवं मिश्रित स्पर्धाएं 20 थीं। हालांकि पुरुषों की स्पर्धाओं की संख्या थोड़ी ज्यादा थी, लेकिन खुशी की बात यह थी कि लैंगिक समानता की दिशा में यह एक बड़ा कदम था। 1900 में पेरिस में आयोजित ओलंपिक पहली बार महिलाओं को भाग लेने की अनुमति मिलने से लेकर पेरिस ओलंपिक 2024 तक की यात्रा बहुत ही संघषपूर्ण थी।
1896 में आयोजित पहले ओलंपिक तक पियरे डी कुबर्टिन मानते थे कि महिलाओं का प्रतिस्पर्धी खेलों में भाग लेना ‘आप्राकृतिक’ है। ‘ओलंपिक खेल पुरुषों के लिये होने चाहिए... महिलाओं की भूमिका केवल विजेताओं को ताज पहनाने की होनी चाहिए।’
पेरिस ओलंपिक तक लैंगिक बराबरी, क्रिस्टी कोवेंट्री का आईओसी का अध्यक्ष बनना और अब 2028 के ओलंपिक में महिला खिलाड़ियों का मेजोर्टी में आना आधुनिक ओलंपिक के 131 वर्षों के इतिहास के वे मील के पत्थर हैं, जहां पर बैठकर सुस्ताते हुये खेलों के प्रति महिलाओं के संघर्षों की गाथा सुनी जा सकती है। फ्रांस के पियरे डी कुबर्टिन ने जब प्राचीन ओलंपिक खेलों को पुनर्गठित करते हुये 1894 में जब आधुनिक ओलंपिक की नींव डाली, तब तक उनका इरादा पुरुषों और महिलाओं की समान भागीदारी की कौन कहे, उन्हें मैदान में लाने के पक्ष में भी नहीं थे। 1896 में आयोजित पहले ओलंपिक तक पियरे डी कुबर्टिन मानते थे कि महिलाओं का प्रतिस्पर्धी खेलों में भाग लेना ‘आप्राकृतिक’ है। ‘ओलंपिक खेल पुरुषों के लिये होने चाहिए... महिलाओं की भूमिका केवल विजेताओं को ताज पहनाने की होनी चाहिए।’ कुबर्टिन उस समय महिलाओं के प्रति प्रचलित परंपरावादी और रूढ़िवादी सोच के मालिक थे। वे महिलाओं को खेलों में सहभागी नहीं, बल्कि सौंदर्य और संस्कार का प्रतीक मानते थे। ‘नारी सुलभ मर्यादा’ का तर्क भी देते थे। शारीरिक खेल महिलाओं को ‘अनाकर्षक और कठोर’ बना देंगे। खेल की प्रतियोगिताएं ‘नारी सुलभता’ के विरूद्ध है। ऐसी बातों के चलते पहला ओलंपिक महिलाओं की उपस्थिति के बगैर हुआ।
इन खेलों में महिलाओं की भागीदारी के बारे में कुबर्टिन की सोच बदली हो या न बदली हो, पर दुनिया धीरे-धीरे बदल रही थी। तब 1900 में पेरिस में आयोजित आधुनिक ओलंपिक खेलों के इस दूसरे संस्करण में महिलाओं ने ओलंपिक खेलों में भाग लिया। कुल 22 महिलाओं ने इसमें भागीदारी की थी। इस ओलंपिक में महिला भागीदारी बहुत ही सीमित और प्रतीकात्मक थी। पांच देशों की महिलाओं ने इन खेलों में भाग लिया था, जो संपूर्ण संख्या (कुल 997) का केवल 02 फीसदी था। इसमें महिलाओं ने टेनिस, गोल्फ, क्रोके और नौकायन जैसी प्रतिस्पर्धाओं में भाग लिया था। टेनिस में चार्लोट कूपर ने जीत दर्ज करके दिखा दिया कि महिलाएं भी प्रतिस्पर्धी खेलों में जीत सकती हैं। (क्योंकि इससे पहले महिलाओं का किसी भी खेल भाग लेने को शक की निगाह से देखा जाता था। खेलों के दौरान कई तरह की अफवाहें फैलाना समान्य बात थी) और यहीं से सीमित और नियंत्रित रूप से महिलाओं को ओलंपिक खेलों में भाग लेने की अनुमति दी जाने लगी।
1900 में पेरिस में आयोजित आधुनिक ओलंपिक खेलों के इस दूसरे संस्करण में महिलाओं ने ओलंपिक खेलों में भाग लिया। कुल 22 महिलाओं ने इसमें भागीदारी की थी। इस ओलंपिक में महिला भागीदारी बहुत ही सीमित और प्रतीकात्मक थी।
जब सीमित ही सही महिलाओं को निरंतर 1912,1920,1924,1928 तक इन खेलों में धीरे-धीरे महिलाओं की संख्या बढ़ रही थी। पर कुबर्टिन और उनके जैसे समाज के अन्य पुरुषों के विचार नहीं बदल पा रहे थे, तभी फ्रांस की एलिस मिलियट जैसी महिला का उदय होता है जिन्होंने महिलाओं के लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों में समान भागीदारी के लिये संघर्ष किया। उन्हीं के संघर्ष का परिणाम था पेरिस में 1922 में आयोजित हुये ‘वुमेंस ओलंपिक गेम’ की शुरूआत। आईओसी और आईएएएफ (इंटरनेशनल एसोसिएशन आॅफ एथलेटिक्स फेडरेशन) ने महिलाओं को ओलंपिक की मुख्य एथलेटिक्स स्पर्धाओं में भाग लेने से मना कर दिया था। इस भेदभाव के विरोध में एलिस मिलियट ने स्वयं ही महिला ओलंपिक आयोजित करने की सोची और वह कर दिखाया जिसके लिये महिलाओं को उनका ऋणी होना चाहिए।
वूमेंस ओलंपिक गेम्स के कुल चार संस्करण आयोजित हुये- 1922 से 1934 तक। इन खेलों में महिलाओं ने तमाम एथलेटिक्स स्पर्धाओं में जमकर भाग लिया और पुरूषों की सोच के विरूद्ध अपना प्रदर्शन दिखाया। इसका परिणाम यह हुआ कि 1928 से एथलेटिक्स और अन्य स्पर्धाओं में धीरे-धीरे महिलाओं को शामिल किया जाने लगा। इस आयोजन से आईओसी और आईएएएफ पर चौतरफा दबाव भी पड़ा। अब ये संस्थाएं नहीं चाहती थीं कि महिलाओं के लिये कोई अलग आयोजन आयोजित हों। एलिस मिलियट और एफएसएफआई (फेडरेशन स्पोर्टिव फेमिनिन इंटरनेशनल) का मकसद शुरू से था भी यही कि महिलाओं को मुख्य ओलंपिक में बराबरी के साथ जोड़ा जाए, न कि वे अलग आयोजन हमेशा करती रहें। अंततः वे आधी आबादी को उनका हक दिलाने में सफल रहीं।
जब पेरिस में 1900 में पहली बार महिलाओं ने इन खेलों में शामिल होने की अनुमति मिली थी, तब कोई नहीं सोच सकता था कि महिलायें अपने घरेलू जिंदगी से निकलकर हर तरह के खेलों में न केवल भाग लेंगी, बल्कि अच्छा प्रदर्शन भी कर सकेंगी। इन वर्षों में 1900 से 2024 तक महिलाओं की ओलंपिक में भागीदारी 22 से 5,250 तक पहुंच गई। यह यात्रा बहुत ही अद्भुत और संघर्ष भरी रही, इसे स्वयं महिलाओं को भी जानना चाहिये।