मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

स्मृतियों का ढेर

दोछत्ति पर पड़ा कबाड़
है स्मृतियों का ढेर
या फिर विस्म्रतियों का
................................
तीन टांग की कुर्सी
एक रंगहीन गुलदान
छोटू का आधी सूड वाला हाथी
घर का पहला श्वेत- श्याम टी वी
और टीन का बहुत पुराना कनस्तर
और भी बहुत कुछ
टूटा - फूटा ....
जो नहीं टूटी वह है,
इनकी स्मृतियाँ
दिमाग के किसी कोने में
कबाड़ की तरह पड़ी हुई
बरसो बरस से ...

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा चित्रण..शायद स्मृतियाँ ही सहेजी जाती हैं ऐसे.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया!!

निर्मला कपिला ने कहा…

ये समृतिओं का कबाड भी कई बार बहुत काम आता है सुन्दर रचना बधाई

Abhay Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर..