प्रेम यहां वहां जहां तहां उकेर दिया जाता है। प्रेम करने वालों को कहां ध्यान रहता है कि वह अपनी इन प्रेम अभिव्यक्तियों को कहाँ लिखे। वह कवि या कवयित्री नहीं होते है जो अपनी अभिव्यक्ति के लिए उचित समय और उचित स्थान के साथ कागज-कलम-दवात ढूढता घूमें । वह जहां ठहरता है वहीं रम जाता है। उसकी कविता होती है महज अपने प्रेमी और प्रेमिका का नाम उकेरना। जहां जगह पाता है गोदने लगता है उसका नाम। और मान लेता है है कि उसने लिख दी इस संसार की सबसे श्रेष्ठ , खूबसूरत कविता। इस जहाँ की शाश्वत कविता, नीचे देखिये,...
है कि नहीं!
है कि नहीं!
1 टिप्पणी:
सच है, अब बड़े काव्य तो लिखे नहीं जा सकते, मानसिक विद्रूपतायें ऐसे ही व्यक्त हो जाती हैं।
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