शनिवार, 7 मार्च 2015

हर दिन महिला दिवस

हमें राजनीतिक और सामाजिक रूप से किसी दिवस मनाने की आवष्यकता तब पड़ती है जब हमें पता होता है कि अमुक बात या मुद्दे पर लोगों का ध्यान खींचना है। इसलिए देष में महिला दिवस के माध्यम से उनके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पिछड़ेपन और उनसे जुड़ी समस्याओं के बारे चर्चा करते हैं। पर इन तथाकथित दिवसों पर सवाल तब उठता है जब ‘दिवस’ महज औपचारिकता निर्वाह का साधन बन जाता है किसी परिवर्तन की कोई दस्तक इतने समय बाद भी दिखलाई नहीं पड़ती है।
इसकी वजह है हमारा मानस जो आज भी अपनी बहू-बेटियों और पत्नी-मां के प्रति बदला नहीं है। यह बात मैं दोनों स्त्री और पुरूशें के संदर्भ में कह रही हंू। महिला दिवस मनाना ऐसा लगता है जैसे किसी एक दिन हम कन्या भोज कराकर पुण्य कमा लेते है और अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते है। तो अगर हम वास्तव में महिला दिवस से कुछ हासिल करना चाहते है तो मेरी अपने समाज से गुजारिष है  िकवे कृपया महिलाओं को देवी और बहुत हद तक ‘सजावटी वस्तु’ का दर्जा देने से बचे। उन्हें अपनी संपत्ति तो कतई न समझे। उन्हें साधारण इंसान जानकर उनके लिए इस बात को सुनिष्चित करे किवे सामाजिक और राजनीतिक तौर पर स्वतंत्रता, समानता जैसे अधिकारों का उपयोग कर सके। ऐसा नहीं है कि एक नागरिक के रूप में हमें यह अधिकार प्राप्त नहीं है? हमारे संविधान ने सभी स्त्री और पुरूशों को यह अधिकार दिये है। समस्या लागू और उनके उपयोग की है।
दूसरी बात महिलाओं से कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीखें। इसके लिए उन्हें राजनीतिक रूप् से एक दवाब ग्रुप के तौर पर उभरना होगा। इसके लिए पहले उन्हंे अपने अधिकारों के प्रति सजग होना सीखना होगा। महिला आरक्षण के बाद हम राजनीति में सहभागी तो जाएगें, पर हम वहीं राजनीति करेंगे जो स्थापनाएं अभी तक पुरूषों ने राजनीतिक क्षेत्र में खड़ी की हैं। भारत में महिलाएं भी एक लोकतांत्रिक देष की तरह रह रही हैं, उनके लिए भी संवैधानिक अधिकार संविधान ने दिए है। फिर भी आज तक वे अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए कहीं नजर नहीं आती हैं? वोट भी वे अपने परिवार या पति के कहने पर दे आतीं हैं। यह राजनीतिक सहभागिता नहीं है। किसी भी तरह की जानकारी और सूचना हासिल करना, राजनीतिक कार्यो में पारदर्षिता की मांग, सामाजिक मुद्दों पर बहस व संगोश्ठि करना, विभिन्न सामाजिक गतिविधियों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करना, प्रतिनिधियों और जनता के बीच संवाद कायम करना आदि कार्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा होते है, इन सभी में महिलाओं को बढ़-चढ़ कर योगदान करना चाहिए। तभी वे अपने लिए कुछ परिवर्तन करा सकती हैं। घर में बैठकर इंतजार नहीं करना चाहिए कि परिवर्तन अपने आप हो जाएगा। हमें हर रोज महिला दिवस का स्मरण रखना चाहिए किसी एक दिन नहीं।

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति
आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई!