
सवाल है कि राजनीतिक दल महिलाओं को एक स्वतंत्र वोट बैंक के रूप में क्यों नहीं लेते हैं। क्या महिलाएं वोट करते समय स्वतंत्र नहीं होती हैं? इसलिए राजनीतिक दल उन्हें एक इकाई न मानकर परिवार के साथ जोड़कर गिन लेते हैं। आज भी क्या महिलाओं की वोटिंग से राजनीति प्रभावित नहीं होती है? इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए 2005 के बिहार विधानसभा चुनाव के एक विश्लेषण पर नजर डालनी होगी। फरवरी, 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था। लेकिन यहीं आठ महीने बाद हुए चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी की किस्मत बदल गईं। विधानसभा की कुल सीटों में से 87 सीटों में महिलाओं ने जमकर वोटिंग की, यह पहले के मुकाबले 2.5 फीसदी अधिक वोटिंग थी। जाहिर था कि नीतीश कुमार महिलाओं की वोटिंग से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। उन्होंने महिलाओं के वोटों को एक संस्थागत रूप देते हुए शराबबंदी, व्यवसायिक प्रशिक्षण, किशोरियों को साइकिल वितरण,छात्रवृत्ति, सैनेटरी नैपकिन वितरण जैसे वादे किए थे।
हाल ही में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी महिला वोटर का महत्व रेखांकित किया जा सकता है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि ऐसी विधानसभा सीटों पर जहां महिलाओं ने 2013 के मुकाबले अधिक वोटिंग की, वहां सीटिंग प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा, इसके विपरीत कम महिला वोटिंग होने से सिटिंग प्रत्याशी फिर से चुन लिए गए। मध्यप्रदेश की ऐसी सात सीटों पर महिला वोटिंग पहले के मुकाबले 10 प्रतिशत अधिक थी। जब ओडिशा और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों ने अपनी-अपनी पार्टी में लिंग असमानता दूर करने के वास्ते इस लोकसभा चुनाव में 33 और 41 प्रतिशत सीटों को महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिया, तो इसे महिला वोटर को आकर्षित करने की रणनीति के तहत देखा जाना गया। इस रणनीति में दोनों राज्यों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का विधानसभाओं में अधिक वोटिंग रही है।

इस लोकसभा चुनाव में महिला वोटर के विषय में परंपरागत धारणा बदलेगी कि नहीं, इस संदर्भ में सीएसडीएस-लोकनीति-क्विंट ने संयुक्त रूप से फरवरी, 2019में दिलचस्प सर्वे किया। इस सर्वे में महिला और पुरुषों की इस प्रवृत्ति पर अध्ययन किया गया कि वे वोट करते समय किन मुद्दों को दृष्टिगत रखते हैं। इस सर्वे में 68 प्रतिशत युवा महिलाओं ने माना कि महिलाओं को पुरुषों की तरह राजनीति में भाग लेना चाहिए। इसी सर्वे में पांच में से तीन महिलाओं ने कहा कि वे अपने परिवार या पति से प्रभावित हुए बगैर लोकसभा 2019 चुनाव के लिए वोट करेंगी। 65 प्रतिशत पहली बार वोट करने जा रही युवतियों ने नहीं माना कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अच्छी नेता नहीं होती हैं। साथ ही दो तिहाई युवतियों ने राजनीति में अपनी रुचि भी जाहिर की। अत: कह सकते हैं कि धीरे-धीरे ही सही, राजनीति के प्रति महिलाओं की रुचि-समझ के साथ-साथ दखलंदाजी बढ़ रही है। सत्ता में अपनी भागीदारी के प्रति अधिक सचेत बनने की कोशिश में आधी आबादी की ये युवा पीढ़ी है। इसी तरह अगर मुद्दों की बात करें, तो अब राजनीतिक दल उन्हें केवल परिवार की ईकाई के तौर पर ही नहीं देख सकते हैं। अब उन्हें प्रभावित करने के लिए इन दलों को रणनीतिक रूप से काम करना होगा। यह इस लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में भी देखा जा सकता है। महिलाएं किन मुद्दों के लिए वोट करती हैं, इस संदर्भ में चेंज डॉट ओआरजी का एक ऑनलाइन सर्वे भी देखा जा सकता है। इस सर्वे में 39 में से महिलाओं ने जिन्हें अपने लिए जरूरी बताया, उनमें सुरक्षा, न्याय व्यवस्था, पानी-बिजली की अच्छी सुविधा, कचरा निस्तारण की सुविधा, प्रदूषण को अपनी प्राथमिकता बताया। जाहिर है कि महिलाओं के अपने मुद्दे हैं, यह दूसरी बात हैकि राजनीतिक दल उन्हें प्राथमिकता में नहीं लेते हैं। पर वह समय अधिक दूर नहीं है, जब राजनीति महिलाओं को नजरअंदाज कर सकेगीं।