मंगलवार, 21 जनवरी 2025

मुफ्त...मुफ्त के फेर में महिला वोटबैंक

देश में महिलाओं को एक अलग वोट बैंक के रूप में देखने और समझने की प्रवृत्ति बहुत देर से विकसित हुई। और अब जब महिलाएं किसी भी चुनाव के लिये निर्णायक वोट बैंक के रूप में उभरने लगी हैं, तब उन्हें फ्रीबीज के भंवर में उलझा दिया जा रहा है।

राजधानी दिल्ली के चुनावों की घोषण हो चुकी है। इसी के साथ सभी राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने में जुट गये हैं। इस लोक लुभावन वादों में एक बड़ा बदलाव महिला वोट बैंक को अपनी ओर आकर्षिक करने के लिये विशेष जुगत के रूप में देखा जा रहा है। एक दशक पहले राजनीतिक दलों के लिये महिला वोट पुरूष वोटरों के ‘पिछलग्गू’ वोटरों तक सीमित था, लेकिन अब सभी राजनीतिक दलों के लिये महत्वपूर्ण होता जा रहा है। एक दशक के अंदर हुये लोगसभा और विभिन्न राज्यों में हुये चुनावों में जो उलट-पुलट दिखी है, माना जा रहा है कि उसमंे महिला वोट बैंक का एक बड़ा हाथ है। इसे समझने के लिये नवंबर, 2024 में हुये महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हुये उलटफेर के जरिये समझा जा सकता है। चुनाव से ठीक छह महीने पहले महायुति गठबंधन की सरकार ने ‘माझी लाडकी बहिण योजना’ के रूप में महिलाओं को हर महीने 1500 रूपये देने की घोषण की। चंद महीनों बाद चुनाव परिणाम ने दिखा दिया कि महिलाओं का कितना बड़ा समर्थन महायुति गठबंधन को हासिल हुआ। महायुति गठबंधन ने 231 सीटों पर जीत दर्ज की। इस चुनाव में 2019 के मुकाबले महिला मतदाताओं की संख्या 06 फीसदी बढ़ गई थी। महाराष्ट्र चुनावों में कई विधानसभा सीटों पर जीत का अंतर 6 से 7 हजार वोट तक ही सीमित था। तो क्या यह कहा जा सकता है कि महिलाओं ने चुनावों में खुद को एक वोटबैंक के रूप में तबदील कर लिया है। जो वोटिंग पहले पुरूष केंद्रित जाति और धर्म से प्रभावित रहती थी, वह अब महिला केंद्रित भी हो सकती है।

राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनावों की घोषणा से पहले जब आम आदमी पार्टी ने ‘मुख्यमंत्री महिला सम्मान’ योजना के लिये रजिस्टे्रशन की घोषणा की, तो इसे पार्टी की महिला वोटरों को अपने पाले में खींचने की कवायद के रूप में अधिक देखा गया। इस योजना में दिल्ली में रहने वाली 18 साल या उससे उपर की उम्र वाली सभी महिलाओं को जिनकी आय तीन लाख रूपये से ज्यादा न हो, हर महीने सरकार 1000 रूपये देगी और इस राशि को चुनाव जीतने के बाद बढ़ाकर 2100 रूपये कर दिया जायेगा। हालांकि घोषणा के बाद ही यह योजना विवादों के घेरे में आ गई और आम आदमी पार्टी को इस मामले में चुप्पी साधनी पड़ गई, जब दिल्ली सरकार के महिला और बाल विकास विभाग ने अखबारों में विज्ञापन देकर साफ कर दिया कि दिल्ली सरकार ने इस तरह से किसी योजना का नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है। वैसे इस योजना की घोषणा 2024-25 के लिये अपने बजट को पेश करते समय की थी। इसके लिये पार्टी ने 2000 करोड़ रूपये आवंटित भी किये थे। विवाद के बाद भी आम आदमी पार्टी अपनी इस योजना का पूरा फायदा उठाने के लिये तत्पर्य दिख रही है।

अगस्त, 2024 को झारखंड सरकार ने ‘मैया सम्मान योजना’ की शुरू की थी जिसके तहत महिलाओं को हर महीने 1000 रूपये देने का प्रावधान किया गया। नवंबर को संपन्न हुये विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने वादा किया कि चुनाव जीतने के बाद यह राशि बढ़ाकर 2500 रूपये प्रति माह कर दी जायेगी। परिणाम सामने है, कुल 81 सीटों में से 34 सीटें जीतकर हेमंत सोरेन की सरकार पुनः सत्ता में आ गई। 2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की कि अगर वह सत्ता में आई तो गृह लक्ष्मी योजना के तहत परिवार की महिला मुखिया को हर महीने 2000 रूपये की सहायता दी जायेगी। इसका फायदा कांग्रेस पार्टी को 135 सीटों पर जीत के तौर पर मिला। सरकार बनने के बाद कांग्रेस को तुरंत इस योजना को लागू करने का काम करना पड़ा। इसी तरह जनवरी, 2023 में मध्य प्रदेश सरकार ने ‘लाड़ली बहना योजना’ की घोषणा की। नवंबर, 2023 में संपन्न हुये चुनावों से पहले कांग्रेस ने भी ‘नारी सम्मान योजना’ की घोषणा की और घरेलू सिलेंडर 500 रूपये में देने का वादा भी किया। इसके जवाब में तत्कालिक शिवराज सिंह सरकार ने भी अपनी योजना की राशि में बढ़ोत्तरी करने का वादा महिलाओं से कर लिया। इन सबका नतीजा रहा कि भारतीय जनता पार्टी पुनः सत्ता में आ गई।

हमेशा से यह धारणा रही है कि महिलाएं वोट डालने के मामले में अपने परिवार का अनुसरण करती करती हैं। शायद यही कारण है कि देश की आधी आबादी को सत्ता में एक फिलर के तौर पर ही ट्रीट किया जाता है। राजनीतिक दलों की नजर उनके वोटों पर रहती तो है, पर वे उन्हें एक स्वतंत्र वोटर के रूप नहीं ले पाते हैं। इसलिए उनके घोषणापत्रों में भी महिलाओं के हिस्से में कोई ठोस योजनाओं की जगह लोकलुभावन और ‘राशन वितरण प्रणाली’ जैसे वादे ही नजर आते हैं। कई दल तो उन्हें साड़ी, चूड़ी, कुकर, टीवी बांटकर ही उनके वोट हासिल करते रहे हैं। कहने का अर्थ है कि देश में महिलाओं को एक अलग वोट बैंक के रूप में देखने और समझने की प्रवृत्ति बहुत देर से विकसित हुई। देश में महिलाओं को वोटिंग के अधिकार के लिए कोई जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी। तमाम अधिकारों के साथ ही महिलाओं को पुरुषों के समान वोट करने का अधिकार भी मिल गया था। देश के स्वतंत्रता आंदोलन ने महिलाओं को राजनीतिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया था, पर स्वतंत्रता मिलने के बाद लोकतंत्र में महिलाओं की भागीदारी काफी देर से हुई। इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन धीरे-धीरे यह ट्रेंड बदला। 2014 के लोकसभा चुनाव में महिला वोट प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले अधिक रहा। इस लोकसभा चुनाव में महिला और पुरुष वोट प्रतिशत दोनों बढ़ा था, पर पुरुषों के मुकाबले 1.79 फीसदी महिलाएं अधिक मात्रा में वोट देने निकलीं। यह पहली बार हुआ था। 2019 की लोकसभा चुनाव में भी यही हुआ।

वास्तव में इस तरह की योजनाओं पर फ्रीबीज, मुफ्तखोरी, खैरात, नोट के बदले वोट आदि का इल्जाम लगता है। हालांकि सभी इस समय सभी राजनीतिक दल इस तरह से महिलाओं के खातों में कैश ट्रांसफर कर रहे हैं। लेकिन अपने विपक्षी और प्रतिद्वंद्वी दलों पर फ्रीबी की तोहमत लगाते हैं। जो उनके लिये कल्याणकारी योजना है, वही विरोधी दल के लिये फ्रीबी दिखाते हैं। लेकिन सवाल है कि उन्हें इस किस्म से महिलाओं के वोटों को आकर्षित करने की जरूरत क्यों पड़ रही है। उनके पास महिलाओं के लिये ठोस योजनाओं के नाम पर यही 1000 से 3000 तक कैश ट्रांसफर की योजना ही रह गई हैं। यही वह सवाल है जिससे सभी राजनीतिक दल कन्नी काट रहे हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में महिलाओं ने पुरूषों के मुकाबले वोट देने अधिक निकली हैं। इससे सभी राजनीतिक दलों में महिलाओं के एक बड़े वोट बेैंक क रूप में उभर कर सामने आने का आभास हो गया है। लेकिन वे इस उभरती शक्ति को कोई आर्थिक आधार देने में समर्थ और सफल नहीं हो सके हैं। महिलाएं एक बहुत बड़ी लेबर फोर्स बन सकती है, काम चाहने वाली सभी महिलाओं को देश की अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाना चाहिये। तमाम सरकारें इसी मोर्चे पर फेल होती दिखती हैं। महिलाएं घर से निकलकर बाहर आयें, पैसा कमाने में समर्थ हो सकें, इसके लिये एक बहुत बड़े आर्थिक मोर्चे को खड़ा करना होगा। फिलहाल इतना बड़ा परिवर्तन बगैर किसी राजनीतिक इच्छा शक्ति के संभव होता नहीं दिख रहा है। अधिसंख्य महिलाएं घरेलू काम करती हैं, जिनका आर्थिक मूल्य देश की अर्थव्यवस्था में नहीं जोड़ा जाता है। इन तमाम कमियों के कारण महिलाओं के खातों में यह कैश ट्रांसफर एक सांत्वना या बेरोजगारी भत्ता के रूप में महिलाओं की मदद करता है। और महिलाएं इस मदद को परिवार पर ही खर्च करती हैं। फिलहाल इस कवायद से महिला वोट बैंक और राजनीतिक दल दोनों खुश हैं।