शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

वोट तो दिए, पर नहीं मिलीं सीटें ?


दिल्ली विधानसभा में महिला प्रतिनिधित्व में गिरावट चिंतन का विषय है। दिल्ली में शीला दीक्षितसुषमा स्वराज और आतिशी जैसी तीन महिला मुख्यमंत्री देने वाली दिल्ली की विधानसभा में महिला विधायकों की घटती संख्या आगामी नारी शक्ति वंदन अधिनियम के लिये कोई अच्छा संकेत तो नहीं

दिल्ली विधानसभा चुनाव-2025 के परिणाम जहां भारतीय जनता पार्टी के लिये काफी सुखद रहा, वहीं आम आदमी पार्टी के अस्तित्व का सवाल बन गया है। लेकिन इन सबके बीच महिला प्रतिनिधित्व का सवाल मुंह बांये खड़ा हो गया है। कारण, महिलाओं के निराशाजनक प्रदर्शन ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। सत्ता की बागडोर हाथ में लेने वाली भारतीय जनता पार्टी के पाले में चार महिला उम्मीदवारों की सीटें हाथ में आईं हैं, वहीं सत्ता खो चुकी आम आदमी पार्टी के हाथ में पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी के रूप में एक महिला विधायक की सीट आई है। विधानसभा चुनाव में इन दोनों प्रमुख दलों ने क्रमशः 09-09 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था। कांग्रेस पार्टी ने 07 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिसमें अलका लांबा जैसी दिग्गज भी थीं, यह दूसरी बात है कि कांग्रेस का इस चुनाव में खाता भी नहीं खुला।

दिल्ली विधानसभा चुनाव-2025 महिला उम्मीदवारों की सफलता का प्रतिशत पिछली विधानसभा चुनाव से कम रहा है। आंकड़ों की माने तो कुल 699 उम्मीदवारों में से 96 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिनमें से केवल 5 ही जीत दर्ज कर सकीं। 2020 में 08 महिलाएं विधानसभा में पहुंच सकी थीं। ग्रेटर कैलाश से विजय हुईं भाजपा की शिखा राय ने आप के दिग्गज सौरभ भारद्वाज को हराया है। नजफगढ़ सीट से विजय हुईं नीलम पहलवान ने आप के तरूण कुमार को हराया है। शालीमार बाग से जीतीं भाजपा की रेखा गुप्ता ने आप की वंदना कुमारी को हरा कर विधानसभा पहुंची हैं। वहीं वजीरपुर से जीतीं भाजपा की पूनम शर्मा ने राजेश गुप्ता को हराया है। अगर आम आदमी पार्टी की एकमात्र विजयी महिला उम्मीदवार आतिशी की बात करें तो उन्होंने कालकाजी सीट से भाजपा के रमेश विधूड़ी को एक कड़े मुकाबले में हराया है। इसी सीट से कांग्रेस की दिग्गज अलका लांबा भी खड़ी थीं। कालकाजी सीट काफी चर्चा बटोरने लगी थी, जब बड़बोले रमेश विधूड़ी ने पूर्व मुख्यमंत्री के लिये अशोभनीय टिप्पणी कर दी थी।

पिछले चुनावों की तुलना में इस बार महिला विधायकों की संख्या में कमी आई है। ऐसा नहीं है चुनाव मैदान में मजबूत महिला उम्मीदवार नहीं थी, आम आदमी पार्टी के कमजोर प्रदर्शन ने महिला उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा। 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो राखी बिड़लान मंगोलपुरी, वंदना कुमारी शालीमार बाग, धनवंती चंदेला राजौरी गार्डन, राजकुमारी ढिल्लो हरिनगर, प्रीति तोमर त्रिनगर, भावना गौड़ पालम और आतिशी कालकाजी सीटों से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं। अगर इस बार की बात करें तो राखी बिड़लान मादीपुर से, वंदना कुमारी शालीमार बाग से, प्रीति तोमर त्रिनगर से और धनवंती चंदेला राजौरी गार्डन से चुनाव हार गई हैं। ये सभी महिलाएं आप की मजबूत उम्मीदवार थी। लेकिन जनता ने इनकी जगह दूसरे उम्मीदवारों को तरजीह दे दी।

मैदान में रहे तीन प्रमुख दलों ने कुल 25 महिलाओं को टिकट दिये थे। जो पिछली बार से एक अधिक था। इस बार 60.92 फीसदी महिलाओं ने वोट दिये, वहीं 60.21 फीसदी पुरुष वोट पड़े। कई विधानसभाओं में महिलाएं वोट देने के मामलों में पुरु
षों से आगे रहीं। इन चुनावों में महिलाओं को आकर्षित करने की काफी जद्दोजहद देखी गई। इसी का परिणाम है कि महिलाएं वोट देने में आगे रहीं। महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिये लगभग सभी प्रमुख दलों ने एक से बढ़कर कैश ट्रांसफर
, फ्रीबीज का सहारा लिया, पर यहां एंटीकंबेंसी काम कर गई। आप की योजनाओं से एक ओर गरीब तबके की महिलाओं को काफी सुविधाएं हासिल हुई थीं, लेकिन मिडिल क्लास की महिलाओं को कुछ खास हाथ नहीं लगा। कम हो रही आमदनी और महंगाई के बीच संघर्ष ने उन्हें आप के अतिरिक्त सोचने पर मजबूर कर दिया। महिला उम्मीदवारों के हारने का चाहे जो करण हो, पर दिल्ली विधानसभा के अब तक के कुल कार्यकाल में तीन महिला मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, सुषमा स्वराज और आतिशी के रहते विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या का घटना चिंता का विषय तो है ही।

शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

चुनाव प्रचार में महिलाएं, लेकिन चुनाव मैदान से बाहर


नई दिल्ली विधानसभा चुनाव अपने चरम पर पहुंच चुके हैं। चुनावों में महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिये सभी राजनीतिक दलों में खूब खींचतान मची हुई है। हो भी क्यों न, क्योंकि इस बार लगभग 72 लाख महिलाएं वोट करने के लिये तैयार हैं। इन वोटरों को आकर्षिक करने के लिये आम आदमी पार्टी ने महिला सम्मान राशि योजना,कांग्रेस ने प्यारी दीदी योजना और भारतीय जनता पार्टी ने महिला समृद्धि योजना के जरिये महिला वोट अपने तरफ खींचने का प्रयास कर रही हैं। कहने का अर्थ है कि इस चुनाव में एक वोट बैंक के रूप में महिलाएं केंद्र में बनी हुयी हैं। लेकिन जब बात चुनाव में महिलाओं को टिकट देने और राजनीतिक भागीदारी की आती है, तो सभी राजनीतिक दल एक सा चेहरा-मोहरा लिये दिखते हैं।

नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023 के बाद राजनीति को अपने कार्यक्षेत्र के रूप में देख रही महिलाओं को यह आशा बनती है कि राजनीतिक दल महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारेगे। अधिक संख्या में उनके नाम को पुरुष कैंडीडेट के बरक्स कंसीडर करेंगे। लेकिन सारी आशाएं धूमिल हो जाती हैं, जब 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा चुनावों में महिलाओं को टिकट देने की संख्या का पता चलता है। चुनाव मैदान में तीन मुख्य राजनीति दलों के कुल 210 प्रत्याशियों में 25 महिलाएं चुनाव मैदान में हैं। आम आदमी पार्टी ने 09 महिलाओं को, भारतीय जनता पार्टी ने भी 09 महिलाओं और कांग्रेस ने 07 महिलाओं को टिकट दिये हैं। यद्यपि यह संख्या पिछले चुनाव 2020 से अधिक है।

इन चुनावों पर पूरे देश की नजर है, कारण, दिल्ली देश की राजधानी है, सत्ता का केंद्र है। लेकिन सत्ता केंद्र में महिला भागीदारी संतोषजनक नहीं दिख रही है। आप ने अपने सात महिला प्रत्याशियों को फिर से टिकट दिये हैं, जिन्हें 2020 में दिये थे। इसमें मुख्यमंत्री आतिशी सहित राखी, प्रमिला टोकास, धनवंती चंदेला, बंदना कुमारी, और सरिता सिंह हैं। बाकि में अंजना पार्च एक नया चेहरा है, जबकि पूजा बाल्यान एमएलए नरेश बाल्यान की पत्नी हैं जिन्हें हाल ही में एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। इसके बरक्स भारतीय जनता पार्टी ने रेखा गुप्ता, पूनम शर्मा, दीप्ती इंदौरा, उर्मिला कैलाश, स्वेता सैनी, नीलम पहलवान, शिखा राय, प्रियंका गौतम एवं कुमारी रिंकू को चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं कांग्रेस भी जानीमानी राजनीतिक शख्सियत अलका लाम्बा के अलावा रागिनी नायक, अरिबा खान, अरुणा कुमारी, हरबनी कौर, सुषमा यादव, पुष्पा सिंह के साथ चुनाव मैदान में है।

2020 में हुये दिल्ली विधानसभा चुनाव में इन तीनों राजनीतिक दलों ने कुल मिलाकर 24 महिलाओं को टिकट दिये थे। इनमें से कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 10 महिलाओं को टिकट दिये थे। वहीं 2015 के चुनावों में कुल 19 महिलाएं चुनाव मैदान में थीं, इनमें से सबसे ज्यादा भाजपा ने 08 महिलाओं को अपना प्रत्याशी बनाया था। चुनाव आयोग के अनुसार दिल्ली में वोटरों की संख्या 1.55 करोड़ है जिनमें से 83.89 लाख पुरुष वोटर एवं 71.74 लाख महिला वोटर हैं। पिछली विधानसभा चुनाव 2020 में 62.5 फीसदी महिलाओं ने वोट किया था। महिला वोटरों की संख्या देखते हुये ही चुनाव के केंद्र में महिलाएं आ गई हैं, लेकिन चुनाव के मैदान में महिलाओं को उतारने में बड़े राजनीतिक दलों में जो हिचकिचाहट है, वह महिलाओं को राजनीति के क्षेत्र में आने से कहीं न कहीं रोक रही है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव, 2020 में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 62 सीटें जीती थीं। 2015 के मुकाबले महिला सीटों में इजाफा हुआ था। 62 विधायकों में आठ महिला विधायक चुनावी जंग जीत कर आई थीं। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की इस धमाकेदार जीत के पीछे महिलाओं के समर्थन को एक बड़ी वजह बताया गया था। चुनाव के बाद हुए सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार आम आदमी पार्टी को 60 फीसदी महिलाओं ने वोट दिये थे। यह 2015 के मुकाबले 07 फीसदी ज्यादा थे। महिला वोटरों ने आम आदमी पार्टी को कई कारणों से वोट किया था। इसमें सबसे बड़ा कारण महिलाओं के लिए उनकी कल्याणकारी योजनाएं थीं। शायद पूर्व मुख्यमंत्री केजरीवाल इस बात को अच्छे से समझते हैं कि महिलाएं एक वोटबैंक के रूप में कितना सशक्त हो चुकी हैं। शायद यही वह कारण भी बना जब अदालती फैसले के बाद मुख्यमंत्री के रूप में काम करने के अयोग्य घोषित होते ही नया मुख्यमंत्री चुनने की बारी आयी तो उन्हें एक योग्य उम्मीदवार के रूप में आतिशी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौप दीं। इस निर्णय के पीछे कहीं न कहीं महिलाओं को अपनी पार्टी के प्रति आकर्षित करना ही था। लेकिन जब बात सत्ता में भागीदारी की आती है, तब वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है।

और यह सब तब है जब सितंबर, 2023 में नारी शक्ति वंदन अधिनियम का कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने समर्थन किया था। इस बिल के पास होते ही अभी तो नहीं भविष्य के लिए महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी जायेगीं। तब से 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से कई राज्यों के विधानसभा चुनावों तक सार्वजनिक क्षेत्रों में काम कर रहीं महिलाओं ने जिस बात की उम्मीद लगा रखी है, उसको पूरा होते नहीं देख रही हैं। खासतौर पर राजनीति में अपना भविष्य देख रही महिलाओं ने तो ऐसा बिलकुल नहीं सोचा होगा कि एक तिहाई सीटों के आरक्षण का समर्थन करने वाली पार्टियां चुनावों में महिलाओं को उतारने में इतना संकोच कर रही हैं। 27 साल की जद्दोजहेद के बाद महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद महिलाओं को ऐसा लग रहा है कि यह कोरा आश्वासन ही बनकर रह गया है।

सवाल उठता है कि राजनीतिक दल स्वतःस्फूर्ति महिलाओं को टिकट देने और राजनीतिक भागीदारी देने में इतना ना-नुकुर क्योंकर करते हैं। कहीं राजनीति में पुरुष वर्चस्व इसका कारण तो नहीं है। 2019 लोकसभा चुनाव के समय सीएसडीएस-लोकनीति-क्विंट ने संयुक्त रूप से एक दिलचस्प सर्वे किया था। इस सर्वे में महिला और पुरुषों की इस प्रवृत्ति पर अध्ययन किया गया कि वे वोट करते समय किन चीजों का ध्यान रखते हैं। इस सर्वे में 68 प्रतिशत युवा महिलाओं ने माना कि महिलाओं को पुरुषों की तरह राजनीति में भाग लेना चाहिए। इसी सर्वे में पांच में से तीन महिलाओं ने कहा कि वे अपने परिवार या पति से प्रभावित हुए बगैर लोकसभा 2019 चुनाव के लिए वोट करेंगी। 65 प्रतिशत पहली बार वोट करने जा रही युवतियों ने नहीं माना कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा अच्छी नेता नहीं होती हैं। साथ ही दो तिहाई युवतियों ने राजनीति में अपनी रुचि भी जाहिर की। अतः कह सकते हैं कि धीरे-धीरे ही सही, राजनीति के प्रति महिलाओं की रुचि-समझ बढ़ रही है। लेकिन राजनीतिक दल इस बात को स्वीकार करने में आना-कानी करते रहते हैं। देखना यह है कि यह आना-कानी कब तक जारी रख सकते हैं, देर-सबेर तो उन्हें उनका हक देना ही होगा।