#VaayaMoodalCampaign यानी #शट योर माउथ कंपेन यानी #अपना मुंह बंद करो। यह मुंह बंद कराने का अभियान केरल में चलाया गया, जिसका परिणाम भी तुरंत दिखा। #मी टू कंपेन में जहां महिलाओं से अपना मुंह खोलने की अपील की गई थी, इसके बरक्स #सट योर माउथ कंपेन में ऐसे व्यक्तियों को अपना मुंह बंद करने को कहा गया, जो महिलाओं पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कर रहे हैं। वैसे यह कंपेन जिसके कारण अस्तित्व में आया वे ‘महाशय’ और कोई नहीं, बल्कि केरल के निर्दलीय विधायक पीसी जॉर्ज हैं। मामला, जालंधर के बिशप फ्रैंको मुलक्कल पर रेप और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली एक नन का है। यह इस समय मीडिया में छाया हुआ है। इस मामले को लेकर पीसी जॉर्ज ने कहा कि ‘नन वेश्या’ है। उसने पहली बार ही शिकायत क्यों नहीं की? (इसके अतिरिक्त जॉर्ज ने कई और आपत्तिजनक बातें कहीं।) उक्त नन के बिशप मुलक्कल पर यौन उत्पीड़न के आरोप के बाद बिशप पर कई और नन ने इसी तरह के आरोप लगाए। इन सभी ननों ने बिपश की गिरफ्तारी और मामले की जांच के लिए धरना और प्रदर्शन भी किया। इस बात पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए पीसी जॉर्ज ने यह आपत्तिजनक बातें कही थीं, इसी की प्रतिक्रिया पर #सट योर माउथ कंपेन सामने आया।
जॉर्ज के इस बयान के दो दिन बाद 10 सितंबर को कलाकार, एक्टिविस्ट और पर्यावरणविद् आयशा महमूद ने फेसबुक पर #शट योर माउथ कंपेन छेड़ दिया। उन्होंने अपील की कि आप लोग जॉर्ज को सेलो टेप भेजकर उनका मुंह बंद करने में मदद करें। उनकी इस अपील का असर तुरंत दिखा। उनका साथ देने के लिए कई लोग सामने आए। केरल और केरल से बाहर की कई हस्तियों ने आयशा की इस मुहिम को आवाज दी। इसके बाद सोशल मीडिया पर पीसी जॉर्ज के मुंह पर टेप लगी कई तस्वीरें हैशटैग सट योर माउथ के साथ तैरने लगीं। इस प्रकरण पर आयशा का कहना है कि उन्हें (पीसी जॉर्ज) अपनी जीभ पर कंट्रोल रखने में समस्या आती है। इसलिए उन्हें हमारी सहायता की जरूरत है। ये बात आयशा व्यंग्य में जरूर कहती हैं, पर इसके अर्थ व्यापक है।
महिलाओं पर ऐसी टिप्पणी करने वाले क्या केवल पीसी जॉर्ज हैं? पीसी जॉर्ज जैसे कई बयानवीर हैं, जो महिलाओं को लेकर ऐसी टिप्पणियां या बयान आए दिन देते रहते हैं। क्या इन सभी के मुंह पर टेप नहीं लगना चाहिए? चाहे राजनीतिज्ञ हों, सेलीब्रिटीज हों, इस तरह के बयान देने से पहले वे क्यों नहीं सोचते? अगर मामला महिला से जुड़ा हो, तो वे उसे ‘वेश्या’ घोषित करने में समय नहीं गंवाते हैं। चारित्रिक प्रमाणपत्र बांटना वे अपना ‘धर्म’ समझते हैं। पीसी जॉर्ज को हाल ही में सीसीटीवी फुटेज में टोल कर्मियों से मारपीट करते हुए देखा गया। पर ऐसे कृत्यों के बावजूद उन्हें चारित्रिक प्रमाणपत्र देने की हिम्मत किसी में नहीं है। एक जिम्मेदारी वाले पद पर बैठे जॉर्ज जैसे व्यक्ति जब ऐसी बातें खुले आम करते हैं, तो इसका समाज में गलत संदेश जाता है। पीसी जॉर्ज पीड़ित नन को ‘वेश्या’ घोषित करने में दिक्क्त नहीं होती है, पर आरोपी बिशप मुलक्कल के लिए कुछ नहीं कहते। क्या पीसी जॉर्ज नहीं जानते कि वेश्याएं बनती कैसे हैं और उन्हें आबाद कौन करता है। ये ऐसे लोग हैं, जो सीधे महिलाओं का चरित्र हनन करना अपना ‘मौलिक कर्तव्य’ मानते हैँ।
जॉर्ज जैसे व्यक्तियों को अपनी गलती का अहसास तब और नहीं होता है, जब उनके इस तरह के बयानों का कोई विरोध नहीं होता। तब ऐसे लोगों की हिम्मत और बढ़ जाती है। और चूंकि हमारे समाज का माइंडसेट भी ऐसी ही कथनों के अनुकूल बना हुआ है, इसलिए हम जैसों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। और हमें फर्क नहीं पड़ता है, तो जॉर्ज जैसों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अंतत: वे और बड़े बयानवीर बनकर उभरते हैँ, जैसा कि पीसी जॉर्ज के मामले में देखा जा सकता है। यह उनका आखिरी और पहला बयान नहीं था।
1996 में केरल के इदुक्की जिले के सूर्यनेल्ली में एक किशोरी के साथ सामूहिक बलात्कार कांड में जब 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस दोबारा ओपन किया गया और पीड़िता ने पूर्व राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन को पुन: आरोपी बनाए जाने के संबंध में शिकायत की, तब यह राजनीतिक रूप से काफी गर्म हो गया। ऐसे में पीड़ित लड़की को कांग्रेस सांसद के. सुधाकरन ने ‘बाल वेश्या’ जैसा बताया। उन्होंने कहा कि वह पैसे लेती थी और गिफ्ट लेती थी। 1996 के इस मामले में किशोरी का अपहरण करके 40 दिनों तक राज्य के अलग-अलग जगहों पर ले जाकर बलात्कार किया गया। विशेष अदालत ने 2000 में इस मामले में 36 में से 35 लोगों को दोषी मानते हुए कड़ी सजा सुनाई, पर हाईकोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। तब पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। किशोरी के इतने सालों के संघर्ष के बावजूद एक ‘जिम्मेदार नेता’ की ऐसी शर्मनाक सोच को क्या कहा जाए?
2013 में पश्चिम बंगाल में लघु-मझोले उद्योग मंत्री स्वप्न देबनाथ ने एक रैली में सीपीएम की महिला नेताओं को लेकर एक शर्मनाक टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा कि सीपीएम की कुछ महिला नेता इतनी गिरी हुई हैं कि वे खुद अपना ब्लाउज फाड़ लेती हैं और हम पर छेड़छाड़ का आरोप लगा देती हैं। जिस पार्टी की मुखिया और राज्य की नेत्री एक महिला (ममता बनर्जी) हों, तब उनकी ही सरकार के एक मंत्री के इस तरह के बयान को क्या समझा जाए। यह किस प्रकार असंवेदनशीलता है, या वहीं माइंडसेट? इसी तरह टीएमसी के नेता तापस पॉल ने विरोधी दल की महिला नेताओं को धमकी देते हुए ‘फर्माया’ था कि वे लड़के (यानी गुंडे) भेजकर रेप करवा देंगे।
ऐसा नहीं है कि यह व्यवहार केवल मजलूम सी महिलाओं के साथ होता है। वास्तविकता यह है कि यह सशक्त कही जाने वाली महिलाओं के साथ भी उसी तत्पर्यता होता है, जैसा उक्त नन और किशोरी के साथ हुआ। इसकी बानगी मशहूर गायक अभिजीत भट्टाचार्य के ट्वीटर अकाउंट के स्थगन से समझा जा सकता है। महिलाओं पर अपनी अभद्र टिप्पणियों को लेकर कुख्यात मशहूर सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य ने अरुंधती राय, शेहला राशिद और स्वाति चतुर्वेदी (सभी जानीमानी महिलाएं) को लेकर सोशल मीडिया पर लिखा यानी चारित्रिक हनन करने की कोशिश की। इसके कारण उनका ट्वीटर अकांउट सस्पेंड कर दिया गया। फिर भी अभिजीत कहते रहे कि उन्हें फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि पूरा देश उनके साथ है। (पूरा देश तो नहीं पता, पर हां, उनका यह आत्मविश्वास कि उनके जैसे लोग उनके साथ अवश्य है, तो यह गलत नहीं है। वास्तव में ऐसा है। उनके आत्मविश्वास का आधार हमारे समाज में ही मौजूद है।) माननीयों की इस तरह की और बानगी लोकतंत्र के मंदिर संसद भवन में भी देखी जाती है। महिला आरक्षण की बहस में दिग्गज नेता शरद यादव का ‘परकटी औरतें’ और बाद में ‘गोरी चमड़ी’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया। जिस पर संसद में ठहाके लगे। यह ठहाके तब भी लगे जब प्रधानमंत्री ने शूर्पनखा की हंसी वाली बात कहीं। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का संघ की आलोचना के लिए महिलाओं को शॉर्ट्स में देखने वाली बात।
कमोबेश यह ट्रेल काफी लंबी है। इसके लिए #सट योर माउथ कंपेन मात्र एक छोटी, पर महत्वपूर्ण पहल हो सकती है। यह एक ऐसा रास्ता है, जो महिलाओं को अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए मजबूत आधार प्रदान करेगा। किसी भी आपत्तिजनक टिप्पणियों पर चुप न रहने की, बल्कि चुप कराने पर जोर देने का वक्त है।
जॉर्ज के इस बयान के दो दिन बाद 10 सितंबर को कलाकार, एक्टिविस्ट और पर्यावरणविद् आयशा महमूद ने फेसबुक पर #शट योर माउथ कंपेन छेड़ दिया। उन्होंने अपील की कि आप लोग जॉर्ज को सेलो टेप भेजकर उनका मुंह बंद करने में मदद करें। उनकी इस अपील का असर तुरंत दिखा। उनका साथ देने के लिए कई लोग सामने आए। केरल और केरल से बाहर की कई हस्तियों ने आयशा की इस मुहिम को आवाज दी। इसके बाद सोशल मीडिया पर पीसी जॉर्ज के मुंह पर टेप लगी कई तस्वीरें हैशटैग सट योर माउथ के साथ तैरने लगीं। इस प्रकरण पर आयशा का कहना है कि उन्हें (पीसी जॉर्ज) अपनी जीभ पर कंट्रोल रखने में समस्या आती है। इसलिए उन्हें हमारी सहायता की जरूरत है। ये बात आयशा व्यंग्य में जरूर कहती हैं, पर इसके अर्थ व्यापक है।
महिलाओं पर ऐसी टिप्पणी करने वाले क्या केवल पीसी जॉर्ज हैं? पीसी जॉर्ज जैसे कई बयानवीर हैं, जो महिलाओं को लेकर ऐसी टिप्पणियां या बयान आए दिन देते रहते हैं। क्या इन सभी के मुंह पर टेप नहीं लगना चाहिए? चाहे राजनीतिज्ञ हों, सेलीब्रिटीज हों, इस तरह के बयान देने से पहले वे क्यों नहीं सोचते? अगर मामला महिला से जुड़ा हो, तो वे उसे ‘वेश्या’ घोषित करने में समय नहीं गंवाते हैं। चारित्रिक प्रमाणपत्र बांटना वे अपना ‘धर्म’ समझते हैं। पीसी जॉर्ज को हाल ही में सीसीटीवी फुटेज में टोल कर्मियों से मारपीट करते हुए देखा गया। पर ऐसे कृत्यों के बावजूद उन्हें चारित्रिक प्रमाणपत्र देने की हिम्मत किसी में नहीं है। एक जिम्मेदारी वाले पद पर बैठे जॉर्ज जैसे व्यक्ति जब ऐसी बातें खुले आम करते हैं, तो इसका समाज में गलत संदेश जाता है। पीसी जॉर्ज पीड़ित नन को ‘वेश्या’ घोषित करने में दिक्क्त नहीं होती है, पर आरोपी बिशप मुलक्कल के लिए कुछ नहीं कहते। क्या पीसी जॉर्ज नहीं जानते कि वेश्याएं बनती कैसे हैं और उन्हें आबाद कौन करता है। ये ऐसे लोग हैं, जो सीधे महिलाओं का चरित्र हनन करना अपना ‘मौलिक कर्तव्य’ मानते हैँ।
जॉर्ज जैसे व्यक्तियों को अपनी गलती का अहसास तब और नहीं होता है, जब उनके इस तरह के बयानों का कोई विरोध नहीं होता। तब ऐसे लोगों की हिम्मत और बढ़ जाती है। और चूंकि हमारे समाज का माइंडसेट भी ऐसी ही कथनों के अनुकूल बना हुआ है, इसलिए हम जैसों को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। और हमें फर्क नहीं पड़ता है, तो जॉर्ज जैसों को कोई फर्क नहीं पड़ता। अंतत: वे और बड़े बयानवीर बनकर उभरते हैँ, जैसा कि पीसी जॉर्ज के मामले में देखा जा सकता है। यह उनका आखिरी और पहला बयान नहीं था।
1996 में केरल के इदुक्की जिले के सूर्यनेल्ली में एक किशोरी के साथ सामूहिक बलात्कार कांड में जब 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केस दोबारा ओपन किया गया और पीड़िता ने पूर्व राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन को पुन: आरोपी बनाए जाने के संबंध में शिकायत की, तब यह राजनीतिक रूप से काफी गर्म हो गया। ऐसे में पीड़ित लड़की को कांग्रेस सांसद के. सुधाकरन ने ‘बाल वेश्या’ जैसा बताया। उन्होंने कहा कि वह पैसे लेती थी और गिफ्ट लेती थी। 1996 के इस मामले में किशोरी का अपहरण करके 40 दिनों तक राज्य के अलग-अलग जगहों पर ले जाकर बलात्कार किया गया। विशेष अदालत ने 2000 में इस मामले में 36 में से 35 लोगों को दोषी मानते हुए कड़ी सजा सुनाई, पर हाईकोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। तब पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। किशोरी के इतने सालों के संघर्ष के बावजूद एक ‘जिम्मेदार नेता’ की ऐसी शर्मनाक सोच को क्या कहा जाए?
2013 में पश्चिम बंगाल में लघु-मझोले उद्योग मंत्री स्वप्न देबनाथ ने एक रैली में सीपीएम की महिला नेताओं को लेकर एक शर्मनाक टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा कि सीपीएम की कुछ महिला नेता इतनी गिरी हुई हैं कि वे खुद अपना ब्लाउज फाड़ लेती हैं और हम पर छेड़छाड़ का आरोप लगा देती हैं। जिस पार्टी की मुखिया और राज्य की नेत्री एक महिला (ममता बनर्जी) हों, तब उनकी ही सरकार के एक मंत्री के इस तरह के बयान को क्या समझा जाए। यह किस प्रकार असंवेदनशीलता है, या वहीं माइंडसेट? इसी तरह टीएमसी के नेता तापस पॉल ने विरोधी दल की महिला नेताओं को धमकी देते हुए ‘फर्माया’ था कि वे लड़के (यानी गुंडे) भेजकर रेप करवा देंगे।
ऐसा नहीं है कि यह व्यवहार केवल मजलूम सी महिलाओं के साथ होता है। वास्तविकता यह है कि यह सशक्त कही जाने वाली महिलाओं के साथ भी उसी तत्पर्यता होता है, जैसा उक्त नन और किशोरी के साथ हुआ। इसकी बानगी मशहूर गायक अभिजीत भट्टाचार्य के ट्वीटर अकाउंट के स्थगन से समझा जा सकता है। महिलाओं पर अपनी अभद्र टिप्पणियों को लेकर कुख्यात मशहूर सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य ने अरुंधती राय, शेहला राशिद और स्वाति चतुर्वेदी (सभी जानीमानी महिलाएं) को लेकर सोशल मीडिया पर लिखा यानी चारित्रिक हनन करने की कोशिश की। इसके कारण उनका ट्वीटर अकांउट सस्पेंड कर दिया गया। फिर भी अभिजीत कहते रहे कि उन्हें फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि पूरा देश उनके साथ है। (पूरा देश तो नहीं पता, पर हां, उनका यह आत्मविश्वास कि उनके जैसे लोग उनके साथ अवश्य है, तो यह गलत नहीं है। वास्तव में ऐसा है। उनके आत्मविश्वास का आधार हमारे समाज में ही मौजूद है।) माननीयों की इस तरह की और बानगी लोकतंत्र के मंदिर संसद भवन में भी देखी जाती है। महिला आरक्षण की बहस में दिग्गज नेता शरद यादव का ‘परकटी औरतें’ और बाद में ‘गोरी चमड़ी’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया। जिस पर संसद में ठहाके लगे। यह ठहाके तब भी लगे जब प्रधानमंत्री ने शूर्पनखा की हंसी वाली बात कहीं। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का संघ की आलोचना के लिए महिलाओं को शॉर्ट्स में देखने वाली बात।
कमोबेश यह ट्रेल काफी लंबी है। इसके लिए #सट योर माउथ कंपेन मात्र एक छोटी, पर महत्वपूर्ण पहल हो सकती है। यह एक ऐसा रास्ता है, जो महिलाओं को अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए मजबूत आधार प्रदान करेगा। किसी भी आपत्तिजनक टिप्पणियों पर चुप न रहने की, बल्कि चुप कराने पर जोर देने का वक्त है।
2 टिप्पणियां:
https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/09/blog-post_30.html
धन्यवाद रश्मि जी
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